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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
शायद आपको यह जानने में दिलचस्पी होगी कि इस तरह के विचार पर हम कैसे पहुंचे
कि जन्म चिन्ता-भाव का मूल स्रोत और मूल रूप है। इसमें परिकल्पना का कोई
कार्य नहीं था। इसके विपरीत, मैंने आम जनता के प्रतिभ ज्ञान सम्पन्न मन से एक
विचार लिया। बहुत वर्ष पहले कुछ तरुण चिकित्सक, जिनमें मैं भी था, भोजन के
लिए मेज़ के इर्द-गिर्द बैठे थे, और गर्भ-चिकित्सालय का डाक्टर हमें दाइयों
की हाल में हुई परीक्षा की मनोरंजक बातें बता रहा था। एक परीक्षार्थी से जब
यह पूछा गया कि जन्म के समय मेकोनियम (शिशु का मल) पानी में मौजूद हो तो इसका
क्या अर्थ है, तो उसने तुरन्त उत्तर दिया, 'बालक डर गया है। उसका मज़ाक
उड़ाया गया, और उसे फेल कर दिया गया; पर मैं मन-ही-मन उसके पक्ष में हो गया,
और मुझे यह सन्देह होने लगा कि उस बेचारी अनपढ़ औरत के निर्मूल अवबोधन ने एक
बहुत महत्त्वपूर्ण सम्बन्धसूत्र का उद्घाटन किया।
अब स्नायविक चिन्ता पर विचार कीजिए। स्नायविक व्यक्तियों की चिन्ता में
कौन-कौन-सी विशेष बातें और अवस्थाएं होती हैं? इस विषय में बहुत कुछ वर्णन
करना होगा। सबसे पहले तो उनमें एक व्यापक भय का भाव दिखाई देता है, जिसे हम
'मुक्त उड़ती हुई' चिन्ता कहते हैं, जो ज़रा भी उपयुक्त दीखने वाले किसी भी
विचार से अपने को जोड़ने को तैयार रहती है, और निर्णय पर असर डालती है,
भविष्य की आशंका पैदा कर देती है और यह प्रतीक्षा करती रहती है कि उसका
औचित्य सिद्ध करने वाला कोई अवसर आए। इस अवस्था को हम 'साशंक त्रास' या सचिंत
आशंका कहते हैं। इस तरह की चिन्ता से पीड़ित लोग सदा सब सम्भव परिणामों में
से सबसे बुरे परिणाम की कल्पना करते हैं, प्रत्येक आकस्मिक घटना को अपशकुन
समझते हैं, और प्रत्येक अनिश्चितता का बुरे से बुरा अर्थ लगाते हैं। बुरा
होने की इस तरह की आशंका की प्रवृत्ति कुछ लोगों में चरित्र के गुण के रूप
में होती है, जिन्हें और किसी रूप में रोगी नहीं कहा जा सकता, और उन्हें हम
'अतिचिन्तित', 'अतित्रस्त' या निराशावादी कहते हैं। पर जिस स्नायु-रोग को
मैंने चिन्ता-स्नायु-रोग कहा है, उसके साथ सदा साशंक चिन्ता बहुत मात्रा में
होती है। इस चिन्ता-स्नायु-रोग को मैं 'असली स्नायु-रोगों'1 में रखता हूं।
चिन्ता के इस प्ररूप के मुकाबले में दूसरी ओर इसका एक दूसरा रूप भी है, जो मन
में बहुत अधिक सीमित क्षेत्र में घिरा हुआ होता है, और कुछ निश्चित वस्तुओं
और स्थितियों से जुड़ा हुआ रहता है। यह चिन्ता बड़ी विविध और विचित्र
'फोबिया' या 'भीतियों' की चिन्ता है। प्रसिद्ध अमेरिकन वैज्ञानिक स्टेनलीहाल
ने हाल में इन बहुत सारी भीतियों या 'फोबिया' को बड़े-बड़े यूनानी नाम देने
का परिश्रम किया है। वे सुनने में मिस्र के दस जिन्नों जैसे मालूम होते हैं;
फर्क इतना ही है कि ये दस से बहुत अधिक हैं। ज़रा देखिए कि भीति का आलम्बन
कौनकौन-सी चीज़ हो सकती है : अंधेरा, खुली हवा, खुले स्थान, बिल्लियां,
मकड़े, टिड्डे, सांप, चूहे, बिजली की गरज, तेज़ नोक, खून, घिरी हुई जगह,
भीड़, एकान्त, पुलों को पार करना, धरती या समुद्र पर यात्रा इत्यादि। इस
गड़बड़झाले को कुछ काबू में लाने के लिए हम उन्हें तीन समूहों में बांट देते
हैं : भय पैदा करने वाली बहुत-सी वस्तुएं और स्थितियां तो हम प्रकृत या
स्वस्थ लोगों के लिए भी भयानक हैं। उनका खतरे से कुछ सम्बन्ध है और वे
भीतियां या फोबिया हमें कुछ हद तक समझ में आती हैं, हालांकि उनकी तीव्रता
अतिरंजित मालम होती है। उदाहरण के लिए हममें से अधिकतर लोगों में सांप देखकर
परे हट जाने की भावना पैदा होती है। यह कहा जा सकता है कि सांप-भीति मानव
जाति में सब जगह मौजूद है। चार्ल्स डारविन ने इस बात का बड़ा सजीव वर्णन किया
है कि किस तरह वह अपनी ओर तेज़ी से आने वाले सांप को देखकर अपने त्रास को
नियन्त्रित नहीं कर सका, यद्यपि वह यह जानता था कि एक मोटे शीशे के भीतर वह
सुरक्षित है। दूसरे समूह में वे स्थितियां हैं, जिनका अब भी खतरे से कुछ
सम्बन्ध है, पर वह खतरा आमतौर से बहुत मामूली समझा जाता है। अधिकतर
स्थिति-भीतियां इस समूह में आती हैं। हम जानते हैं कि घर में रहने के समय की
अपेक्षा रेलगाड़ी में विनाश, अर्थात् टक्कर का सामना होने का अधिक मौका है।
हम यह भी जानते हैं कि जहाज़ डूब सकता है और ऐसा होने पर आमतौर से आदमी डूब
जाते हैं, पर हम इन खतरों पर सोचते नहीं रहते, और बिना चिन्ता के रेल और
जहाज़ में सफर करते हैं। यह भी निश्चित है कि यदि कोई पुल ऐसे समय टूट जाए जब
हम उसे पार कर रहे हैं तो हम जलधारा में जा पड़ेंगे। पर ऐसी घटनाएं इतनी कम
होती हैं कि हम इन्हें विचार करने योग्य खतरा नहीं समझते। एकान्त में भी खतरे
हैं, और कुछ परिस्थितियों में हम इनसे बचना चाहते हैं, पर यह नहीं कि हम किसी
भी अवस्था में क्षण-भर के लिए भी इसे सहन नहीं कर सकते। यह बात भीड़, घिरी
हुई जगह, बिजली की गरज आदि पर लागू होती है। इन भीतियों में हमारे लिए
अपरिचित बात उनकी वस्तु उतनी नहीं है जितनी कि उनकी तीव्रता। किसी भीति या
फोबिया के साथ जो चिन्ता होती है, वह निश्चित रूप से अवर्णनीय होती है। और
कभी-कभी हमें यह मालूम होता है कि स्नायु-रोगी उन वस्तुओं से सचमुच ज़रा भी
नहीं डरते, जिनसे हमारे अन्दर कुछ परिस्थितियों में चिन्ता पैदा हो जाती है
और जिसे वे उन्हीं नामों से पुकारते हैं।
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