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मनोविश्लेषण

सिगमंड फ्रायड

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :392
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8838
आईएसबीएन :9788170289968

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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद


यह मत समझिए कि भावों के विषय में मैं जो कुछ बता रहा हूं, वह प्रकृत मनोविज्ञान की सामान्य सम्पत्ति है। इसके विपरीत, ये अवधारणा-मनोविश्लेषण की भूमि पर पैदा हुए हैं और ये वही देशज1 हैं। मनोविज्ञान भावों के विषय में जो कुछ कहता है-उदाहरण के लिए, जेम्स लांगे सिद्धान्त-वह बाह्य मनोविश्लेषकों को बिलकुल समझ में नहीं आता, और हमारे लिए उसका विचार करना असम्भव है। पर हम भावों के विषय में जो कुछ जानते हैं, वह कोई अन्तिम रूप से निर्णीत बात नहीं है। यह तो इस रहस्यमय क्षेत्र में अपना पैर जमाने का आधार प्राप्त करने की पहली कोशिश है। अच्छा तो, हम समझते हैं कि हम यह जानते हैं कि इस चिन्ताभाव में पुनरावृत्ति के रूप में पुनरुत्पादित होने वाला यह आदि संस्कार क्या है। हम समझते हैं कि यह जन्म का अनुभव है-यह ऐसा अनुभव है जिसमें दुःखात्मक भावनाओं का, उत्तेजन के विसर्जनों का, और शारीरिक संवदेनों का ऐसा गुंफन हो जाता है कि यह उन सब अवसरों के लिए, जिनमें जीवन को खतरा होता है, एक मूल रूप बन जाता है, और फिर सदा हमारे अन्दर त्रास या 'चिन्ता' की अवस्था के रूप में बार-बार पुनरुत्पादित होता है। रक्त के बदलते रहने में (अर्थात् भीतरी श्वसन में) रुकावट से उद्दीपन में अत्यधिक वृद्धि के कारण जन्म के समय में चिन्ता अनुभव हुई थी; इसलिए पहली चिन्ता टाक्सिक अर्थात् विषीय कारण से पैदा हुई थी (जर्मन का) अंग्स्ट शब्द (चिन्ता) अंगुस्टीओ, अंगे-संकरा स्थान-सांस लेने में होने वाले कसाव पर बल देता है; यह कसाव उस समय एक वास्तविक स्थिति के परिणामस्वरूप पैदा हुआ था, और बाद में किसी भी भाव से इसकी प्रायः सदा पुनरावृत्ति होती है। यह बात भी बड़ी व्यंजनापूर्ण है कि पहली चिन्ता-अवस्था माता से अलग होने के मौके पर हुई। स्वभावतः हम यह मानते हैं कि इस पहली चिन्ताअवस्था को पुनरुत्पादित करने की प्रवृत्ति या स्वभाव जीव-पिण्ड में इतनी गहराई से आत्मसात हो गया है कि असंख्य पीढ़ियों में कोई एक मनुष्य भी चिन्ता-भाव से नहीं बच सकता, चाहे वह किंवदन्तियों में आने वाला मैकडफ ही क्यों न हो, जो अपनी माता के गर्भ से, चीरकर, असमय में ही निकाल लिया गया था, और इसलिए जिसने जन्म-काल का स्वयं अनुभव नहीं किया। स्तनपायी प्राणियों के अलावा, दूसरे प्राणियों के लिए चिन्ता-अवस्था का मूल रूप क्या होगा, यह हम नहीं कह सकते।

हम यह नहीं जानते हैं कि उनमें संवेदनों का वह संकुलन कौन-सा है जो हमारे भय के तुल्य है।

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1. Indigenous

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