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मनोविश्लेषण

सिगमंड फ्रायड

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :392
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8838
आईएसबीएन :9788170289968

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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद


अब मान लो कि यह बात सिद्ध हो जाए कि बोलने की गलतियों और दूसरी सामान्य गलतियों में से कुछ का ही नहीं, बल्कि उनके बहुत बड़े भाग का कुछ अर्थ होता है तो गलती का अर्थ ही, जिसकी ओर अब तक हमने कोई ध्यान नहीं दिया, हमारे लिए सबसे बड़ी दिलचस्पी का विषय हो जाएगा, और यह उचित ही है कि तब और सब प्रश्न गौण हो जाएगे। तब सब कायिकीय और मनोकायिकीय दशाओं को नजरअंदाज किया जा सकता है, और गलतियों के अभिप्राय अर्थात अर्थ या आशय, की शुद्ध मनोवैज्ञानिक जांच-पड़ताल की ओर सारा ध्यान दिया जा सकता है। इसलिए इस दृष्टि से हम कुछ और उदाहरणों पर विचार करेंगे।

पर इस रास्ते पर चलना शुरू करने से पहले मैं आपका ध्यान एक और बात की ओर खींचना चाहता हूं। बहुत बार कोई कवि बोलने की गलती या किसी दूसरी गलती का, कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में प्रयोग करता है। इस तथ्य से ही यह सिद्ध होता है कि वह यह समझता है कि गलती, उदाहरण के लिए बोलने की गलती, का कुछ अर्थ होता है; क्योंकि वह जान-बूझकर ऐसी रचना करता है। यह सम्भव नहीं, कि कवि से अचानक लिखने की गलती हो गई हो और इसे उसने बोलने की गलती के रूप में अपनी रचना में बना रहने दिया हो। गलती के द्वारा वह कुछ बात प्रगट करना चाहता है; और हम यह पूछ सकते हैं कि वह इसके द्वारा क्या बात प्रगट करना चाहता है; शायद वह यह संकेत करना चाहता है कि गलती करने वाला व्यक्ति बहुत थका हुआ है, या उसका ध्यान बंटा हुआ है, या उसे सिरदर्द शुरू होने की संभावना है। पर यदि कवि लोग अपना अर्थ प्रकट करने के लिए गलतियों का उपयोग करते ही हैं तो भी हमें इसके महत्त्व को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश न करना चाहिए। हो सकता है कि असल में गलतियां अर्थहीन हों, वे मानसिक जगत् की आकस्मिक घटनाएं हों, या उनका कभी-कभी ही अर्थ होता हो, और कवियों को तब भी यह अधिकार होगा कि वे अपने प्रयोजन के लिए उनमें कोई अभिप्राय भरकर उन्हें परिष्कृत कर लें। तो भी, यदि बोलने की गलतियों के बारे में हम भाषातत्त्ववेत्ताओं और मनश्चिकित्सकों की अपेक्षा कवियों से कुछ अधिक सीख सकें तो आश्चर्य न करना चाहिए।

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