श्रंगार - प्रेम >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
|
10 पाठकों को प्रिय 235 पाठक हैं |
तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
नया पल्टन के मोड़ पर उससे होगी, मेरी मुलाक़ात!
किसके संग, पता है?
एक सुदर्शन नौजवान के संग!
उसकी तरफ़ देखते हुए-
जैसे टूटती है, नदी की कगार,
पम्पाई की ज्वालामुखी में ध्वंस हो जाते हैं शहर,
जैसे जाड़े के मौसम में,
उतरती है बर्फ की बारिश, साइबेरिया में,
मैं भी झर जाती हूँ, बर्फ़ के चूरे की तरह,
चिन्दी-चिन्दी! झर-झर!
वह नौजवान मेरी तरफ़ मुड़ कर भी नहीं देखता,
नौजवान के पास वक़्त नहीं, देखे-सुने इन्सान का दुख!
फिर भी जाती हूँ नया पलटन, हर दिन!
क्यों जाती हूँ, पता है?
अगर कहीं वह सुदर्शन नौजवान दिख जाये
अगर वह नौजवान मुड़ कर देखे मेरी तरफ़! एक बार!
लेकिन, सच ही, मैं नया पलटन गयी। 'लुक' वीडिओ की मेम्बर बन गयी। ख़ाला ने खुद ही मुझे मेम्बर बनने के लिए पैसे दिये।
उन्होंने कहा, 'अच्छी-अच्छी फ़िल्में देखना, क्लासिक फ़िल्में! धूपधड़क्कावाली फ़िल्में हरगिज़ मत देखना। ऐसे तो फ़रहाद जो ले जाता है, वही तुम लोगों को हज़म करना पड़ता है। लेकिन, अब अपनी रुचि तैयार कर! तुझसे मुझे ढेरों उम्मीदें हैं।'
ख़ाला का बर्ताव देख कर मैं मुग्ध हो गयी।
खाला मुझे छुटपन से ही वेहद प्यार करती हैं। सुना है, वे खुद ही मुझे झूला झुलाती थीं। मुझे बोलना सिखाया! उँगली पकड़-पकड़ कर चलना सिखाया। एकाध बार मेरे मन में आया कि उन्हें मैं अपने प्यार की दास्तान सुना दूं। ख़ाला भी तो किसी से प्यार करती हैं। वे जरूर मुझे डाँटेंगी-डपटेंगी नहीं। बस, मैं सोचती रही, जुबान से कभी कुछ नहीं कहा। मारे संकोच के मेरी आवाज़ अवरुद्ध हो आयी।
|