श्रंगार - प्रेम >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
बिना किसी कारण के ही, एक दिन मैं मृदुल'दा के घर जा पहुँची। मेरे घर का बग़ल का ही घर। यहाँ अकेले ही आने-जाने की अनुमति है। मृदुल'दा की छोटी बहन, तुलसी ने मुझे ले जा कर, अन्दर कमरे में बिठाया। चाय-मुरमुरों का नाश्ता करते हुए, उससे मेरी गपशप चलती रही। तुलसी मेरी हम उम्र है। लिखाई-पढ़ाई में वह ज़रूर मुझसे दो वर्ष पीछे है। उसमें एक किस्म का लड़कियानापन है।
उसने कहा, 'इश्श शीला, दिनों दिन तू कितनी खूबसूरत होती जा रही है!'
मैं हँस पड़ी, 'कल्लू लड़की में किसी को, कोई खूबसूरती नज़र नहीं आती। तुझे नज़र आयी, दिल बड़ा खुश हो गया।'
'क्यों जी, अब तक तुमसे किसी ने नहीं कहा-तुम इतनी हसीन हो, इसीलिए मैं तुम्हें निहारता रहता हूँ, प्रिय?'
'नहीं! बल्कि मैं ही औरों की खूबसूरती की तरफ़ टकटकी बाँधे देखती रहती हूँ।'
'कौन है वह ? ज़रा मैं भी सुनें।'
'यह बात ऐसी है कि पकड़ में नहीं आती, छुयी नहीं जाती, बतायी नहीं जाती।' –यह कहते हुए मैं हँस पड़ी।
'अच्छा, तुलसी, मृदुल'दा का मंसूर नामक एक दोस्त है न? वह रहता कहाँ है?' मैंने पूछ ही लिया।
'नया पल्टन में! गानों का एक स्कूल है! उसके बग़ल में।'
'घर का नम्बर जानती है?'
'क्यों? तू जायेगी?'
'अरे नहीं, एक ज़रूरी काम है। तुझे बाद में बताऊँगी।'
तुलसी ने मृदुल की, नाम-पतेवाली कॉपी से मंसूर का नम्बर खोज कर मुझे पकड़ा दिया।
'यह मंसूर किस किस्म का लड़का है, तुलसी?'
'बेहद भला! बेहद शरीफ़! अदभुत! मंसूर भाई जैसा इन्सान नहीं होता! देखने में जितना खूबसूरत, गाने की आवाज़ उतनी सुरीली! दौलतमंद का बेटा! बहुत बड़ा निजी बिज़नेस! बर्ताव बेहद भला!'
'इसी उम्र में बिज़नेस करता है?'
'एम. ए. का इम्तहान देने वाला है, वर्ना फूफाजी बहोत नाराज होंगे।'
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