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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

कामिनी ने दरवाजे की झिरी से झाँका, राजू के दोनों हाथ अत्यंत फुर्ती से चल रहे थे।

थोड़ी देर पंखे की हवा खाने के बाद उसने गर्मी से बचने के लिए बिना किसी पैड वाली ब्रा, हल्के कपड़े की कुर्ती और सलवार चढ़ा ली। इतनी गर्मी में चड्ढी की कोई विशेष आश्यकता या उपयोगिता नहीं थी। दरवाजा खोलकर वह बाहर चली गई और राजू से बोली, "मेरे साथ खेलोगे?"

राजू उसकी बात सुनकर चौंका। लेकिन उसकी आँखे टीवी पर गड़ी रहीं और हाथ बदस्तूर चलते रहे। राजू ने पलटकर पूछा, "मेरे पास तो कंट्रोलर है नहीं, क्या आपके पास एक और कंट्रोलर है?"

कामिनी बोली, "क्यों नहीं?"

कामिनी ने आगे बढ़ काँच के दरवाजे वाली अलमारी को खोला और उसमें रखे एक डिब्बे से एक और कंट्रोलर निकाला। इस कँट्रोलर की बैटरी मरी हुई थी। उसने बैटरी डाली कर कंट्रोलर तैयार कर लिया तथा राजू के खेल को पूरा होने का इंतजार करती रही। कुछ ही मिनटों में राजू का खिलाड़ी अपनी आखिरी लाइफ खो बैठा। कामिनी ने राजू से पूछा-"तुम्हारे खिलाड़ी कौन है?"

राजू बोला-"मुझे तो ड्राई बोन्स अच्छा लगता है।"

कामिनी बोली-"मेरी पसन्दीदा खिलाड़ी तो पीच है। उसके अटैक भी अच्छे हैं और फुर्ती भी गजब की है।"

कामिनी और राजू दोनों की उंगलियाँ कंट्रोलरों पर नाचने लगीं और टीवी स्क्रीन पर प्लेयर इधर-उधर नाचने लगे। खेल का बैकग्राउण्ड म्यूजिक और पीच तथा ड्रायबोन्स के अटैक की आवाजें गूँजने लगी।

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