ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर संभोग से समाधि की ओरओशो
|
4 पाठकों को प्रिय 248 पाठक हैं |
संभोग से समाधि की ओर...
प्रकृति तो एक हारमनी है, एक संगीतपूर्ण लयबद्धता है।
लेकिन आदमी ने जो-जो निसर्ग के ऊपर इंजीनियरिग की है, जो-जो उसने अपनी
यांत्रिक धारणाओ को ठोकने की और बिठाने की कोशिश की है, उससे गंगाएं रुक गई
हैं जगह-जगह अवरुद्ध हो गई हैं। और फिर आदमी को दोष दिया जाता है। किसी बीज
को दोष देने की जरूरत नही है। अगर वह पौधा न बन पाया तो हम कहेंगे कि जमीन
नहीं मिली होगी ठीक, पानी नहीं मिला होगा ठीक, सूरज की रोशनी नहीं मिली होगी
ठीक।
लेकिन आदमी के जीवन में खिल न पाए फूल प्रेम का तो हम कहते हैं कि तुम हो
जिम्मेदार। और कोई नहीं कहता कि भूमि नहीं मिली होगी ठीक पानी नही मिला होगा
ठीक, सूरज की रोशनी नही मिली होगी ठीक। इसलिए यह आदमी का पौधा अवरुद्ध रह
गया, विकसित नहीं हो पाया, फूल तक नही पहुंच पाया।
मैं आपसे कहना चाहता हूं कि बुनियादी बाधाएं आदमी ने खड़ी की हैं। प्रेम की
गंगा तो बह सकती है और परमात्मा के सागर तक पहुंच सकती है। आदमी बना इसलिए है
कि वह बहे और प्रेम बढ़े और परमात्मा तक पहुंच जाए। लेकिन हमने कौन-सी बाधाएं
खड़ी कर ली?
पहली बात, आज तक मनुष्य की सारी संस्कृति ने सेक्स का काम का, वासना-का विरोध
किया है। इस विरोध ने, मनुष्य के भीतर प्रेम के जन्म की संभावना तोड दी, नष्ट
कर दी। इस निषेध ने...क्योंकि सच्चाई यह है कि प्रेम की सारी यात्रा का
प्राथमिक बिंदु काम है, सेक्स है।
प्रेम की यात्रा का जन्म, गंगोत्री-जहां से गंगा पैदा होगी प्रेम की-वह सेक्स
है, वह काम है।
और उसके सब दुश्मन हैं। सारी संस्कृतियां, और सारे धर्म और सारे गुरु और सारे
महात्मा-तो गंगोत्री पर ही चोट कर दी। वही रोक दिया। पाप है काम, अधम है काम,
जहर है काम। हमने सोचा भी नहीं कि काम की ऊर्जा ही, सेक्स एनर्जी ही, अंततः
प्रेम में परिवर्तित होती और रूपांतरित होती है।
प्रेम का जो विकास है, वह काम की शक्ति का ही ट्रांसफामेंशन है। वह उसी का
रूपांतरण है।
एक कोयला पड़ा हो और आपको ख्याल भी नहीं आएगा कि कोयला ही रूपांतरित होकर हीरा
बन जाता है। हीरे और कोयले में रूप में कोई फर्क नहीं है। हीरे में भी वे ही
तत्व हैं जो कोयले में हैं। कोयला ही हजारों वर्ष की प्रक्रिया से गुजरकर
हीरा बन जाता है। लेकिन कोयले की कोई कीमत नहीं है, उसे कोई घर में रखता भी
है तो ऐसी जगह जहां कि दिखाई न पड़े। और हीरे को लोग छातियों पर लटकाकर घूमते
हैं कि वह दिखाई पड़े। और हीरा और कोयला एक ही हैं लेकिन कोई दिखाई नहीं पड़ता
है कि इन दोनों के बीच अंतर- संबंध है, एक यात्रा है। कोयले की शक्ति ही हीरा
बनती है और अगर आप कोयले के दुश्मन हो गए-जो कि हो जाना बिल्कुल आसान है,
क्योंकि कोयले में कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता है-तो हीरे के पैदा होने की
संभावना भी समाप्त हो गई, क्योंकि कोयला ही हीरा बन सकता था।
|