ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर संभोग से समाधि की ओरओशो
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संभोग से समाधि की ओर...
स्वास्थ्य हमारा स्वभाव है।
प्रेम हममें है, प्रेम हमारा स्वभाव है।
इसलिए यह बात गलत है कि मनुष्य को समझाया जाए कि तुम प्रेम पैदा करो। सोचना
यह है कि प्रेम पैदा क्यों नहीं हो पा रहा है, बाधा क्या है, अड़चन क्या है,
कहां रुकावट डाल दी गई है? अगर कोई भी रुकावट न हो तो प्रेम प्रकट होगा ही,
उसे सिखाने की और समझाने की कोई भी जरूरत नहीं है।
अगर मनुष्य के ऊपर गलत संस्कृति और गलत संस्कार की धाराएं और बाधाएं न हों,
तो हर आदमी प्रेम को उपलब्ध होगा ही। यह अनिवार्यता है। प्रेम से कोई बच ही
नही सकता। प्रेम स्वभाव है।
गंगा बहती है हिमालय से। बहेगी गंगा, उसके प्राण हैं उसके पास जल है। वह
बहेगी और सागर को खोज ही लेगी। न किसी पुलिसवाले से पछेगी, न किसी पुरोहित से
पूछेगी कि सागर कहां है? देखा किसी गंगा को चौरीस्ते पर खड़े होकर पछते कि
सागर कहां है? उसके प्राणों में है छिपी सागर की खोज। और ऊर्जा हैं तो पहाड़
तोड़ेगी, मैदान तोड़ेगी और पहुंच जाएगी सागर तक। सागर कितना ही दूर हो, कितना
ही छिपा हो, खोज ही लेगी। और कोई रास्ता नहीं है, कोई गाइड-बुक नहीं है कि
जिससे पता लगा ले कि कहां से जाना है, लेकिन पहुंच जाती है।
लेकिन बांध बांध दिए जाएं चारों तरफ परकोटे उठा दिए जाएं? प्रकृति की बाधाओं
को तोड़कर गंगा सागर तक पहुंच जाती है, लेकिन अगर आदमी की इंजीनियरिंग की
बाधाएं खड़ी कर दी जाएं तो हो सकता है कि गंगा सागर तक न पहुंच पाए। यह भेद
समझ लेना जरूरी है।
प्रकृति की कोई भी बाधा असल में बाधा नहीं है, इसलिए गंगा सागर तक पहुंच जाती
है, हिमालय को काटकर पहुंच जाती है। लेकिन अगर आदमी ईजाद करे तो, इंतजाम करे
तो गंगा को सागर तक नहीं पहुंचने दे सकता है।
प्रकृति का तो एक सहयोग है, प्रकृति तो एक हारमनी है। वहां जो बाधा भी दिखाई
पड़ती है, वह भी शायद शक्ति को जगाने के लिए चुनौती है। वहा जो विरोधी भी
दिखाई पड़ता है, वह भी शायद भीतर प्राणों में जो छिपा है, उसे प्रगट करने के
लिए बुलावा है। वहां शायद कोई बाधा नहीं है। वहां हम बीज को दबाते हैं जमीन
में। दिखाई पड़ता है कि जमीन की एक पर्त बीज के ऊपर पडी है, बाधा दे रही है।
लेकिन वह बाधा नहीं दे रही है। अगर वह पर्त न होगी, तो बीज अंकुरित भी नहीं
हो पाएगा। ऐसे दिखाई पड़ता है कि एक पर्त जमीन की बीज को नीचे दबा रही है,
लेकिन वह पर्त दबा इसलिए रही है, ताकि बीज दबे, गले और टूट जाए और अंकुर बन
जाए। ऊपर से दिखाई पड़ता है कि वह जमीन बाधा दे रही है, लेकिन वह जमीन मित्र
है और सहयोग कर रही है बीज को प्रकट करने में।
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