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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


श्रेष्ठ आत्माओं की पुकार के लिए श्रेष्ठ संभोग का अवसर और सुविधा चाहिए तो श्रेष्ठ आत्माएं जन्मती हैं और जीवन ऊपर उठता है!
इसलिए मैंने कहा कि जिस दिन आदमी संभोग के पूरे शास्त्र में निष्णात होगा जिस दिन हम छोटे-छोटे बच्चों से लेकर सारे जगत् को उस कला और विज्ञान के संबंध में सारी बात कहेंगे और समझा सकेंगे, उस दिन हम बिल्कुल नए मनुष्य को जिसे नीत्से सुपरमैन कहता था जिसे अरविंद अतिमानव कहते थे, जिसको महान् आत्मा कहा जा सके, वैसा बच्चा, वैसी संतति, वैसा जगत् निर्मित किया जा सकता है। और जब तक हम ऐसा जगत् निर्मित नहीं कर लेते है, तब तक न शांति हो सकती है विश्व में, न युद्ध रुक सकते हैं, न घृणा रुकेगी, न अनीति रुकेगी, न दुश्चरित्रता रुकेगी, न व्यभिचार रुकेगा, न जीवन का यह अंधकार रुकेगा।

लाख राजनीतिज्ञ चिल्लाते रहें....मत फिक्र करें, यह पांच मिनिट के पानी गिरने से कोई फर्क न पड़ेगा बंद कर लें छाते, क्योंकि दूसरे लोगों के पास छाते नही हैं। यह बहुत अधार्मिक होगा कि कछ लोग छाते खोल लें। उसे बंद कर लें। सबके पास छाते होते तो ठीक था। और लोगों के पास नहीं है और आप खोलकर बैठेंगे तो कैसा बेहूदा होगा कैसा असंस्कृत होगा। उसको बंद कर ले। मैं जरूर मेरे ऊपर छप्पर है, तो जितनी देर आप पानी में बैठे रहेंगे, मीटिग के बाद उतनी देर मैं पानी में खड़ा हो जाऊंगा।

नहीं मिटेंगे युद्ध, नहीं मिटेगी अशांति नही मिटेगी हिंसा, नहीं मिटेगी ईर्ष्या। कितने दिन हो गए। दस हजार साल हो गए। मनुष्य-जाति के पैगबर, तीर्थंकर, अवतार समझा रहे हैं कि मत लड़ो, मत करो हिंसा, मत करो क्रोध, लेकिन किसी ने कभी नहीं सुना। जिन्होंने हमे समझाया कि मत करो हिंसा, मत करो क्रोध उनको हमने सूली पर लटका दिया।
यह उनकी शिक्षा का फल हुआ। गांधी हमें समझाते थे कि प्रेम करो, एक हो जाओ, हमने गोली मार दी। यह कुल उनकी शिक्षा का फल हुआ।
दुनिया के सारे मनुष्य, सारे महापुरुष हार गए है, यह समझ लेना चाहिए।

असफल हो चुके हैं। आज तक कोई भी मूल्य जीत नहीं सका। सब मूल्य हार गए। सब मूल्य असफल हो गए। बड़े-से-बड़े पुकारने वाले लोग भले मे भले लोग भी हार गए और समाप्त हो गए। और आदमी रोज अंधेरे और नरक में चला जाता रहा है। क्या इससे यह पता नहीं चलता कि हमारी शिक्षाओं में कहीं कोई बुनियादी भूल है।
अशांत आदमी इसलिए अशांत है कि वह अशांति में कमता है। उसके पास अशांति के कीटाणु हैं। उसके प्राणों की गहराई में अशांति का रोग है। जन्म के पहले दिन वह अशांति करे, दुःख और पीड़ा को लेकर पैदा हुआ है। जन्म के पहले क्षण में ही उसके जीवन का सारा स्वरूप निर्मित हो गया है। इसलिए बुद्ध हार जाएंगे, महावीर हारेंगे, कृष्ण हारेंगे, क्राइस्ट हारेंगे। हार चुके है। हम शिष्टतावश यह न कहते हों कि वे नहीं हारे हैं तो दूसरी बात है लेकिन वे सब हार चुके है।
और आदमी रोज बिगड़ता चला गया है, रोज बिगड़ता गया है। अहिंसा की इतने दिन की शिक्षा और हम छुरी से एटम और हाइड्रोजन बम पर पहुंच गए हैं। यह अहिंसा की शिक्षा की सफलता होगी?

पिछले पहले महायुद्ध में तीन करोड़ लोगों की हमने हत्या की थी और उसके बाद शांति और प्रेम की बातें करने के बाद दूसरे महायुद्ध में हमने सादे सात करोड़ लोगों की हत्या की। और उसके बाद भी चिल्ला रहे हैं बर्ट्रेड रसल से लेकर विनोबा भावे तक सारे लोग कि 'शांति चाहिए, शांति चाहिए' और हम तीसरे महायुद्ध की तैयारी कर रहे है। और तीसरा महायुद्ध दूसरे महायुद्ध को बच्चों का खेल बना देगा।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga