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संभोग से समाधि की ओर...
संभोग का एक छोटा-सा अणु है, जो प्रकृति की तरफ से मनुष्य को मुफ्त में मिला
हुआ है, लेकिन हम उसे जान नही पाते हैं। आंख बंद करके जी लेते हैं किसी तरह,
पीठ फेरकर जी लेते हैं किसी तरह। उसकी स्वीकृति नहीं हमारे मन में, स्वीकार
नहीं हमारे मन में। आनंद और अहोभाव सै उसे जानने और जीने और उसमें प्रवेश
करने की कोई विधि नहीं हमारे हाथ में।
मैंने जैसा आपसे कहा, जिस दिन आदमी इस विधि को जान पाएगा, उस दिन हम दूसरे
तरह के मनुष्य को पैदा करने में समर्थ हो जाएंगे।
मैं इस संदर्भ में आपसे कहना चाहता हूं कि स्त्री और पुरुष दो निगेटिव पोल्स
हैं विद्युत के-पाजिटिव और निगेटिव, विधायक और नकारात्मक दो छोर हैं। उन
दोनों के मिलन से एक संगीत पैदा होता है। विद्युत का पूरा चक्र पैदा होता है।
मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूं कि अगर गहराई और देर तक संभोग स्थिर रह जाए तो
दो जोड़ा...स्त्री और पुरुष का एक जोड़ा अगर आधे घंटे के पार तक संभोग में रह
जाए तो दोनों के पास प्रकाश का एक वलय, दोनो के पास प्रकाश का एक घेरा
निर्मित हो जाता है। दोनों की विद्युत जब पूरी तरह मिलती है तो आस-पास अंधेरे
में भी एक रोशनी दिखाई पड़ने लगती है।
कुछ अद्भुत खोजियों ने उस दिशा में काम किया है और फोटोग्राफ भी लिए हैं। जिस
जोड़े को उस विद्युत का अनुभव उपलब्ध हो जाता है, वह जोड़ा सदा के लिए संभोग से
बाहर हो जाता है।
लेकिन यह हमारा अनुभव नही है और ये बातें अजीब लगेंगी। ये तो हमारे अनुभव में
नहीं है बात। अगर अनुभव में नहीं है तो उसका मतलब है कि आप फिर से सोचें, फिर
से देखें और जिदगी को, कम-से-कम सेक्स की जिंदगी को क ख ग से फिर से शुरू
करें।
समझने के लिए बोधपूर्वक जीने के लिए-मेरी अपनी अनुभूति यह है, मेरी अपनी
धारणा यह है कि महावीर या बुद्ध या क्राइस्ट और क्या आकस्मिक रूप से पैदा
नहीं हो जाते हैं। यह उन दो व्यक्तियों के परिपूर्ण मिलन का परिणाम है।
मिलन जितना गहरा होगा, जो संतति पैदा होगी, वह उतनी ही अद्भुत होगी। मिलन
जितना अधूरा होगा, जो संतति पैदा होगी वह उतनी ही कचरा और दलित होगी।
आज सारी दुनिया में मनुष्यता का स्तर रोज नीचे चला जा रहा है। लोग कहते हैं
कि कलिका आ गया है, इसलिए स्तर नीचे जा रहा है। लोग कहते हैं कि नीति बिगड़
गयी है, इसलिए स्तर नीचे जा रहा है। गलत बेकार की और फिजूल की बातें कहते
हैं।
सिर्फ एक फर्क पड़ा है। मनुष्य के संभोग का स्तर नीचे उतर गया है। मनुष्य के
संभोग ने पवित्रता खो दी है, मनुष्य के संभोग ने वैज्ञानिकता खो दी है सरलता
और प्राकृतिकता खो दी है। मनुष्य का संभोग जबरदस्ती, एक नाइट मेयर, एक दुःखद
स्वभ जैसा हो गया है। मनुष्य के संभोग ने हिसात्मक स्थिति ले ली है। वह एक
प्रेमपूर्ण कृत्य नही है, वह एक पवित्र और शांत कृत्य नहीं है, वह एक
ध्यानपूर्ण कृत्य नहीं है। इसलिए मनुष्य नीचे उतरता चला जाएगा।
एक कलाकार कुछ चीज बनाता हो, कोई मूर्ति बनाता हो और कलाकार नशे में हो, तो
आप आशा करते हैं कि कोई सुंदर मूर्ति बन पाएगी? एक नृत्यकार नाच रहा हो,
क्रोध से भरा हो, अशांत हो, चिंतित हो, तो आप आशा करते हैं कि नृत्य सुंदर हो
सकेगा?
हम जो भी करते हैं वह हम किस स्थिति में हैं इस पर निर्भर होता है। और सबसे
ज्यादा उपेक्षित निग्लेक्टेड, सेक्स है, संभोग है।
और बड़े आश्चर्य की बात है, उसी संभोग से जीवन की सारी यात्रा चलती है, नए
बच्चे, नई आत्माएं जगत् में प्रवेश करती हैं।
शायद आपको पता न हो, संभोग तो एक सिचुएशन है, जिसमें एक आकाश में उड़ती हुई
आत्मा अपने योग्य स्थिति को समझकर प्रविष्ट होती है। आप सिर्फ एक अवसर पैदा
करते हैं। आप बच्चे के जन्मदाता नही हैं सिर्फ एक अवसर पैदा करते हैं। वह
अवसर जिस आत्मा के लिए जरूरी, उपयोगी और सार्थक मालूम होता है, वह आत्मा
प्रविष्ट होती है।
अगर आपने एक रुग्ण अवसर पैदा किया है, अगर आप क्रोध में, दुःख में, पीड़ा में
और चिंता में हैं तो जो आत्मा अवतरित होगी वह आत्मा इमी तल की हो सकती है।
इससे ऊँचे तल की नहीं हो सकती है।
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