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संभोग से समाधि की ओर...
जैसे एक घर में दीया जल रहा हो और उस दीए से हम हिसाब लगाना चाहें कि सूरज की
रोशनी में कितने दीए जल रहे हैं हिसाब लगाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। एक दीया
बहुत छोटी बात है। सूरज बड़ी बात है। सूरज पृथ्वी से साठ हजार गुना बड़ा है। दस
करोड़ मील दूर है, तब भी हमें तपाता है, तब भी हमें झुलसा देता है। उतने बड़े
सूरज को एक छोटे-से दीए से हम तौलने जाएं तो कैसे तोल सकेंगे?
लेकिन नही, एक दीए से सूरज को तौला जा सकता है। क्योंकि दीया भी सीमित है और
सूरज भी सीमित है। दीए में एक कैंडल का लाइट है तो अरबों-खरबों कैंडल का लाइट
होगा सूरज में। लेकिन सीमा आकी जा सकती है, तौली जा सकती है!
लेकिन संभोग में जो आनंद है और समाधि में जो आनंद है, उसे फिर भी नही तौला जा
सकता। क्योंकि संभोग अत्यंत क्षणिक दो क्षुद्र व्यक्तियो का मिलन है और समाधि
बूंद का अनत के सागर से मिल जाना है। उसे कहीं भी नहीं तौला जा सकता है। उसे
तौलने का कोई भी उपाय नही है। उसे...कोई मार्ग नहीं कि हम जांचें कि वह कितना
होगा।
इसलिए जब वह उपलब्ध होता है, जब वह उपलब्ध हो जाता है तो फिर कहां सेक्स, फिर
कहां संभोग, फिर कहां कामना? जब इतना अनंत मिल गया तब कोई कैसे सोचेगा, कैसे
विचार करेगा उस क्षणभर के सुख को पाने के लिए। तब वह सुख दुःख जैसा प्रतीत
होता है। तब वह सुख पागलपन जैसा प्रतीत होता है। तब वह सुख शक्ति का अपव्यय
प्रतीत होता है और ब्रह्मचर्य सहज फलित हो जाता है।
लेकिन संभोग और समाधि के बीच एक सेतु है, एक ब्रिज है, एक यात्रा हैं, एक
मार्ग है। समाधि जिसका अंतिम छोर है आकाश में जाकर, संभोग उस सीढ़ी का पहला
सोपान है, पहला पाया है। और जो इस पाए के ही विरोध में जाते हैं वे आगे नहीं
बढ़ पाते। यह मैं आपसे कह देना चाहता हूं, जो इस पहले पाए को इंकार करने लगते
हैं, वे दूसरे पाए पर पैर नही रख सकते हैं। मैं आपसे यह कह देना चाहता हूं।
इस पहले पाए पर भी अनुभव से, ज्ञान से, बोध से पैर रखना जरूरी है। इसलिए नहीं
कि हम उसी पर रुके रह जाएं। बल्कि इसलिए कि हम उस पर पैर रखकर आगे निकल जा
सकें।
लेकिन मनुष्य-जाति के साथ एक अद्भुत दुर्घटना हो गई। जैसा मैंने कहा, वह पहले
पाए के विरोध में हो गया है और अंतिम पाए पर पहुंचना चाहता है! उसे पहले पाए
का ही अनुभव नहीं उसे दीए का भी अनुभव नहीं और वह सूरज के अनुभव की आकांक्षा
करता है। यह कभी भी नहीं हो करता। जो दीया मिला है, प्रकृति की तरफ से, पहले
उस दीए की रोशनी को समझ लेना जरूरी है, पहले उस दीए की हल्की-सी रोशनी को, जो
क्षण-भर मे जीती है और बुझ जाती है, जरा-सा हवा का झोंका जिसे मिटा देता है,
उस रोशनी को भी जान लेना जरूरी है, ताकि सूरज की आकांक्षा की जा सके, ताकि
सूरज तक पहुंचने के लिए कदम उठाया जा सके, ताकि सूरज की प्यास, असंतोष,
आकांक्षा और अभीप्सा भीतर पैदा हो सके।
संगीत के छोटे-से अनुभव से उस परम संगीत की तरफ जाया जा सकता है। प्रकाश के
छोटे-से अनुभव से अनंत प्रकाश की तरफ जाया जा सकता है। एक बूंद को जान लेना,
पूरे सागर को जान लेने के लिए पहला कदम है। एक छोटे-से अणु को जानकर हम
पदार्थ की सारी शक्ति को जान लेते हैं।
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