ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर संभोग से समाधि की ओरओशो
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संभोग से समाधि की ओर...
हम दिखायी पड़ रहे हैं कि अकेले खड़े हैं, हमारे सिर पर कुछ भी नहीं है। लेकिन
जरा गौर से देखना किसी के सिर पर गांधी बैठे हैं, किसी के सिर पर मोहम्मद
बैठे हैं, किसी के सिर पर महावीर बैठे हैं, और अकेले नहीं बैठे हैं, अपने
चेले चाटियों के साथ बैठे हुए हैं! और एक-दो दिन से नहीं बैठे हुए हैं,
हजारों, लाखों साल से बैठे हुए हैं!
सिर भारी हो गया है, कतार लग गयी है, कतार आकाश को छू रही है; इतने सारे लोग
ऊपर बैठे हुए हैं। इन सबको उतार देने की जरूरत है।
अगर अपने को पाना है, तो अपने सिर से सबको उतार देने की जरूरत'है, कोई हक
नहीं है किसी को कि किसी की आत्मा पर पत्थर होकर बैठ जाए।
लेकिन वे बेचारे नहीं बैठे हैं, आप ही उन्हें बिठाए हुए हैं। उनका कोई कसूर
नहीं है। वह तो घबराए हुए हैं कि यह आदमी कब तक ढोता रहेगा! हमारे प्राण
निकले जा रहे हैं कितने दिन से बिठाए हुए है यह आदमी, हमें छोड़ता ही नहीं! आप
ही उन्हें बिठाए हुए हैं। जागते ही टूट जाएगा यह मोह। फिर सिर हल्का हो
जाएगा; मन हल्का हो जाएगा। उड़ने की तैयारी शुरू हो जाएगी। पंख खुल जाएंगे।
और, तीसरी बात : जागना है, दमन के प्रति।
लोग सोचते है-दमन छोड़ देंगे तो भोग शुरू हो जाएगा। लोग सोचते हैं-अगर क्रोध
नहीं दबाया तो क्रोध हो जाएगा और झंझट हो जाएगी।
अगर मालिक की गर्दन पकड़ लेंगे, तो और दिक्कत की बात हो जाएगी। पत्नी की गर्दन
पकड़ना ज्यादा कंवीनयएंट, ज्यादा सुविधापूर्ण है। यह झँझट की बात हो जाएगी।
इसके आर्थिक दुष्परिणाम हो जाएंगे-अगर मालिक की गर्दन पकड़ेंगे। और मालिक की
गर्दन पकड़ने के लिए पत्नी भी कहेगी, 'उसकी गर्दन मत पकड़ना; मेरी ही पकड़ना;
क्योंकि मालिक की गर्दन पकड़ी तो बच्चों का क्या होगा? पत्नी का क्या होगा?
बहुत दिक्कत में पड़ जाएंगे। तुम तो मेरी ही गर्दन पकड़ लेना।' पत्नी भी यही
कहेगी। 'यही ज्यादा सुविधापूर्ण, ज्यादा समझदारी का काम है कि मालिक को
छोड़कर, आकर मुझ पर टूट पड़ना।'
नहीं, मैं आपसे कहना चाहता हूं-क्रोध को दबाने की जरूरत नहीं है; क्रोध को भी
देखने, और जानने की जरूरत है। जब किसी के प्रति मन में क्रोध पकड़े, तो जागकर
देखना कि क्रोध पकड़ रहा है; होश से भर जाना कि क्रोध आ रहा है; देखना अपने
भीतर कि क्रोध का धुआं उठ रहा है। क्रोध क्या-क्या कर रहा है भीतर-देखना। और
एक अद्भुत अनुभव होगा जीवन में पहली बार; कि देखते ही क्रोध विलीन हो जाता
है; न दबाना पड़ता है, न करना पड़ता है।
आज तक दुनिया में कोई आदमी जागकर क्रोध नहीं कर पाया है।
बुद्ध एक गांव से गुजरते थे। कुछ लोगों ने भीड़ लगा ली और बहुत गालियां दीं
बुद्ध को...।
अच्छे लोगों को हमने सिवाय गालियां देने, के और कुछ भी नहीं दिया। जब वे मर
जाते हैं तो पूजा वगैरह भी करते हैं; लेकिन वह मरने के बाद की बात है। जिंदा
बुद्ध को तो गाली देनी ही पड़ेगी। लेकिन ऐसे लोग थोड़े डिसटर्बिंग होते हैं;
थोड़ी गड़बड़ कर देते हैं; नींद तोड़ देते। हैं। इसलिए गुस्सा आ जाता है। तो आदमी
गाली देने लगता है। कसूर भी क्या है।
...गांव के लोगों ने घेरकर बुद्ध को बहुत गालियां दीं। बुद्ध ने उनसे कहा,
''मित्रो, बात अगर पूरी हो गयी हो तो अब मैं जाऊं, मुझे दूसरे गांव जल्दी
पहुंचना।''
वे लोग कहने लगे, ''बात? हम गालियां दे रहे हैं सीधी-सीधी समझ में नहीं आती
आपको क्या बुद्धि बिल्कुल खो दी है, हम सीधी-सीधी गालियों दे रहे हैं बात
नहीं कर रहे हैं।''
बुद्ध ने कहा, ''तुम गालियां दे रहे हो, वह मैं समझ गया। लेकिन मैंने तो
गालियां लेना बंद कर दिया है; तुम्हारे देने से क्या होगा जब तक मैं ले न
सकूं? और मैं ले नहीं सकता। क्योंकि जब से जाग गया हूं, तब से गाली देना
असंभव हो गया है। जागकर कोई गलत चीज कैसे ले सकता है?
आप बेहोशी में चलते हैं इसलिए पैर में कोई कांटा गड़ जाता है; अगर देखकर चलते
हों, तो कैसे कांटा गड़ सकता है! गलती से आदमी दीवाल से टकरा सकता है; जब
आंखें खुली हों तो दरवाजे से निकलता है।''
बुद्ध ने कहा, ''मैं आंखें खोलकर, जागकर, जब से जीने लगा हूं, तब से गालियां
लेने का मन ही नहीं करता। अब मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। कोई दस साल
पहले तुम्हें आना चाहिए था। तुम जरा देर से आए हो। दस साल पहले आते, तो मजा आ
जाता। तुमको बहुत मजा आ जाता, लेकिन हमको तो बहुत तकलीफ होती। हमको तो मजा आ
रहा है। लेकिन तब तुम्हें बहुत मजा आ जाता; क्योंकि मैं भी दुगने वजन से गाली
तुम्हें देता। लेकिन अब बड़ी मुश्किल है। होश से भरा हुआ आदमी
गाली नहीं दे सकता है।...तो मैं जाऊं?''
वे लोग बड़े हैरान हो गए। बुद्ध ने कहा, ''जाते वक्त एक बात और तुमसे कह दूं,
पिछले गांव में कुछ लोग मिठाइयां लेकर आ रहे थे। मैंने कहा कि मेरा पेट भरा
है। वह भी जागा हुआ था, इसलिए कह सका; क्योंकि सोया हुआ आदमी मिठाइयां देखकर
भूल जाता है कि पेट भरा है। बेहोश आदमी भूख देखकर, नहीं खाता, बेहोश आदमी
चीजें देखकर खाता है। होश से भरा आदमी पेट की भूख
देखकर खाता है।
''मेरा पेट भरा हुआ था। वह भी होश की वजह से। दस साल पहले अगर वे भी आए होते,
तो उनकी थालियां उन्हें वापस न ले जानी पड़तीं। मैं उन्हें जरूर खा लेता।
लेकिन जब से होश आ गया है, जागकर देखता रहता हूं। इसलिए गलती करनी बहुत हो गई
है। वे बेचारे थालियां वापस ले गए। तो मैं तुमसे पूछता हूं' उन मिठाइयों का
क्या किया होगा''?
उस गाली देने वाली भीड़ में से एक आदमी ने कहा, ''क्या किया होगा? घर में जाकर
मिठाइयां बांट दी होगी।''
बुद्ध ने कहा, ''यही मुझे चिंता हो रही है कि तुम क्या करोगे? तुम गालियों की
थालियां लेकर आए हो-और मैं लेता नहीं; अब तुम उन गालियों का क्या करोगे;
किसको बांटोगे?
बुद्ध कहने लगे, ''मुझे बड़ी दया आती है तुम पर। अब तुम करोगे क्या? इन
गालियों का क्या करोगे? मैं लेता नहीं; मैं ले सकता नहीं। चाहूं भी तो नहीं
ले सकता। मुश्किल में पड़ गया हूं, जाग जो गया हूं।''
कोई आदमी जाग कर क्रोध नहीं कर सकता।
दमन निद्रा में चलता है और जागृत आदमी को दमन की जरूरत नहीं रहती।
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