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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


एक आदमी मेरे पास आता था, कुछ समय हुआ। उसने कहा मुझे बहुत क्रोध आता है। आप कहते हैं जागो, जागो। मुझसे नहीं होता है यह जागना। जब वह आता है, तब आ ही जाता है।
तो मैंने एक कागज पर उसको लिखकर बड़े-बड़े अक्षरों में दे दिया, ''अब मुझे क्रोध आ रहा है" और कहा इसको खीसे में रख लो। और जब भी क्रोध आए तो निकाल कर एक दफा पढ़ कर इसी खीसे में वापिस रख लेना और जो तुम्हें समझ में आए करना।
वह आदमी पंद्रह दिन बाद आया और कहने लगा बड़ी हैरानी की बात है। इस कागज में न-जाने कैसा मंत्र है! जब भी क्रोध आता है, हाथ ले जाता हूं खीसे की तरफ कि क्रोध का जान निकल जाती है! क्रोध आ रहा है, जैसे ही यह खयाल आया कि हाथ भीतर खीसे की तरफ बढ़ने लगते हैं और क्रोध वापिस लौट जाता है!
बस थोड़ी-सी समझ की जरूरत है जीवन के प्रति। जीवन छोटे-छोटे राजों पर निर्भर है।

और, बड़े से बड़ा राज यह है कि सोया हुआ आदमी भटकता चला जाता है चक्कर में, और जागा हुआ आदमी चक्कर के बाहर हो जाता है।

जागने की कोशिश ही धर्म की प्रक्रिया है।
जागने का मार्ग ही योग है।
जागने की विधि का नाम ही ध्यान है।
जागना ही एकमात्र प्रार्थना है।
जागना ही एकमात्र उपासना है।
जो जागते हैं वे प्रभु के मंदिर को उपलब्ध हो जाते हैं।
जागते ही वृत्तियां, व्यर्थताएं, कचरा, कूड़-करकट चित्त से गिरना शुरू हो जाता है। धीरे-धीरे चित्त निर्मल होता चला जाता है जागे हुए आदमीं का। और जब चित्त निर्मल हो जाता है, तो चित्त दर्पण बन जाता है।

जैसे, झील निर्मल हो, तो उसमें चांद-तारों की प्रतिछवि बनती है, और आकाश में भी चांद-तारे उतने सुंदर नहीं मालूम पड़ते, जितने कि निर्मल झील की छाती पर चमक कर मालूम पड़ते है-वैसे ही, जब चित्त निर्मल हो जाता है जागे हुए आदमी का, तो चित्त की निर्मलता में परमात्मा की छवि दिखाई पड़नी शुरू हो जाती है। फिर वह निर्मल-चित्त आदमी कहीं भी जाए-फूल में भी उसे परमात्मा मिलता है, पत्थर में भी, मनुष्यों में भी; पक्षियों में भी; पदार्थों में भी। फिर उसके लिए पूरा जीवन ही परमात्मा हो जाता है। जीवन की क्रांति का अर्थ है, 'जागरण की क्रांति'।
इन तीन दिनों में इस जागरण के बिंदु को समझाने के लिए मैंने ये सारी बातें कहीं। लेकिन, इससे जागरण समझ में नहीं आ सकता है। वह तो आप जागेंगे तो ही समझ में आ सकता है।
और, कोई दूसरा आपको नहीं जगा सकता आप ही-बस, सिर्फ आप ही अपने को जगा सकते हैं।
तो देखें अपने भीतर और एक-एक चीज के प्रति जागना शुरू करें। जैसे-जैसै जागरण बढ़ेगा वैसे-वैसे जीवन बढ़ेगा-मृत्यु कम होगी। जिस दिन जागरण पूर्ण होगा उस दिन मृत्यु विलीन हो जाएगी; जैसे थी ही नहीं। जैसे कोई अंधेरे कमरे में एक आदमी दीया लेकर पहुंचता है कि अँधेरा खो जाता है। जैसे था ही नहीं। ऐसे ही जो आदमी जागरण का दीया लेकर भीतर जाता है, उसकी मृत्यु खो जाती है, दुःख खो जाता है, अशांति खो जाती है और उसे अमृत उपलब्ध हो जाता है। और वह-जिसका कोई अंत नहीं; वह-जिसका कोई प्रारंभ नहीं; वह-जो असीम है; वह-जो प्रभु है, उसके मंदिर में प्रवेश हो जाता है।

अंत में यही प्रार्थना करता हूं कि उस मंदिर में सबका प्रवेश हो जाए। लेकिन, किसी की कृपा से नहीं होगा यह; किसी के प्रसाद से, आशीर्वाद सै नहीं होगा। 

अपने ही श्रम, अपने ही संयम, अपनी ही साधना से होगा।

जो जागते हैं, वे पा लेते हैं। जो सोए रहते है, वे खो देते हैं।
मेरी बातों को इन चार दिनों में प्रेम और शांति से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें।



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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga