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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


कोई भी संबंध नहीं है। तीन काल में कोई संबंध नहीं है। लेकिन एसोसिएशन हो जाता है। रोटी के साथ घंटी जुड़ गई। जब रोटी मिली तो घंटी बजी, जब घंटी बजी तब रोटी मिली। रोटी और घंटी मन में कहीं एक साथ हौ गई। अब सिर्फ घंटी बज रही है, लेकिन रोटी का खयाल साथ में आ रहा है और तकलीफ शुरू हो गई है।
मनुष्य कुछ खतरनाक संयोग भी बना सकता है। भगवान और भय का संयोग ऐसा ही खतरनाक है। पावलव का प्रयोग बहुत खतरनाक नहीं है। घंटी और रोटी में संबंध हो जाए हर्ज क्या है? लेकिन भगवान और भय में संबंध हो जाए तो मनुष्यता बूढ़ी हो जाएगी।
अतीत का मनुष्य बूढ़ा मनुष्य था। अतीत का इतिहास वृद्ध मनुष्यता का इतिहास है, 'ओल्ड माइंड का' बूढ़े मन का इतिहास है, क्योंकि वह भय पर खड़ा हुआ है।
धर्म...भय पर खड़े हुए मंदिर हैं, हाथ जोड़े हुए भयभीत लोग! यह फासला, भय, डर कि भगवान मिटा देगा! वह तो तैयार बैठा हुआ है। भगवान तैयार बैठा हुआ है आदमियों को सताने को, डराने को। आदमी जरा ही इंकार करेगा और भगवान बर्बाद कर देगा और नरकों में सड़ा देगा।
नरक के कैसे-कैसे भय पैदा हमने किए हैं भगवान के साथ? कैसे अद्भुत भय पैदा किए हैं? क्रिमिनल माइंड भी, अपराधी से अपराधी आदमी भी ऐसी
योजना नहीं बना सकता है जैसी, जिन्हें हम ऋषि-कहते हैं उन्होंने नरक की योजना बनाई है! नरक की योजना देखने लायक।
और ध्यान रहे, नरक की योजना कोई बहुत सौंदर्य को, सत्य को प्रेम को, परमात्मा को खयाल में रखनेवाला बना नहीं सकता है। यह असंभव है कि अगर वास्तव में परमात्मा हो तो नरक भी हो सके। ये दोनों बातें एक साथ संभव नहीं हैं। या तो परमात्मा नहीं होगा तो नरक हो सकता है। और अगर नरक है, तो फिर परमात्मा को विदा करो। वह नहीं हो सकता है। ये दोनों चीजें एक साथ संभव नहीं हैं। उनका को-इग्जिस्टेंश नहीं हो सकता है। उनका सह-अस्तित्व संभव नहीं है।

नरक की क्या-क्या योजना है, सोचा है आपने कभी? कितना डराया होगा आदमी को? और आदमी इतना कम जानता था कि डराया जा सकता है। इतना कम जानता था कि घबड़ाया जा सकता है। आदमी एक अर्थ में अबोध था। वह बहुत भयभीत किया जा सकता था।

हर मुल्क को नरक की अलग-अलग कल्पना करनी पड़ी। क्यों? क्योंकि हर मुल्क में भय का अलग-अलग उपाय खोजा गया है। स्वाभाविक था। कुछ चीजें, जिनसे हम भयभीत हैं दूसरे लोग भयभीत नहीं हैं। जैसे तिब्बत में ठंड भय पैदा करती है, हिंदुस्तान में पैदा नहीं करती। ठंड अच्छी लगती है। तो हमारे नरक में ठंड का बिल्कुल इंतजाम नहीं है। हमारे नरक में आग जल रही है और धूप और गरमी हमें परेशान करती है, भयभीत करती है। और हमने नरक में आग के अखंड कुंड जला रखे हैं! यज्ञ ही यज्ञ हो रहे हैं नरक में! आग ही आग जल रही है और अनंत काल से उसमें घी डाला जा रहा होगा! भड़कता ही चली जा रही है। और उस आग का कभी बुझना नहीं होगा। वह इटर्नल फायर है, और वह कभी बुझती नहीं है, अनंत आग है। और उसमें पापियों को डाला जा रहा है, सडाया जा रहा है। मजा एक है कि कोई मरेगा नही उस आग में डालने से, क्योंकि मर गए तो दुःख खत्म हो जाएगा। इंतजाम यह है, आग में डाले जाएंगे। जलेंगे, सड़ेंगे, गलेंगे मरेंगे भर नहीं। जिंदा तो रहना ही पड़ेगा।
नरक में कोई मरता नहीं है, खयाल रखना!
क्योंकि मरना भी एक राहत हो सकती है, किसी स्थिति में। मरना भी कंफटेंबल हो सकता है किसी हालात में। किसी क्षण में आदमी चाह सकता है, मर जाऊं।
वहां कोई आत्महत्या नहीं कर सकता है। पहाड़ से गिरो, गर्दन टूट जाएगी, आप बच जाओगे। फांसी लगाओ, गला कट जाएगा, आप बच जाओगे। छुरा मारो, छुरा धुप जाएगा, आप बच जाओगे। जहर पिओ, फोड़े-फुंसियां पैदा हो जाएंगी, जहर उगाने लगेगा शरीर लेकिन आप नहीं मरोगे। नरक में आत्महत्या का उपाय नहीं है! आग जल रही है, जिसे हम जला रहे हैं।
तिब्बत में...और तिब्बत के नरक में आग नहीं जलती, क्योंकि तिब्बत में आग बड़ी सुखद है। तो तिब्बत में आग की जगह शाश्वत बर्फ जमा हुआ है, जो कभी नहीं पिघलता है! वह बर्फ में दबाए जाएंगे, तिब्बत के पापी। वह बर्फ में दबाया जाएगा। तिब्बत के स्वर्ग में आग है। सूरज चमकता है तेज धूप है, बर्फ बिल्कुल नहीं जमती।
हिंदुस्तान के स्वर्ग बिल्कुल एयरकंडीशंड हैं, वातानुकूलित हैं। शीतल मंद पवन हमेशा बहती रहती है। कभी ऐसा नहीं होता कि ठंडक में कमी आती हो। ठंडक ही बनी रहती है। सूरज भी निकलता है तो किरणें तपानेवाली नहीं हैं, बड़ी शीतल हैं।
दुःख भय, आदमी को नरक का, पापों का, पापों के कर्मों का...लंबे-लंबे भय, हमने मनुष्य के मानस में निर्धारित किए हैं! और किसलिए? यह आदमी धार्मिक है? यह आदमी धार्मिक नहीं हुआ सिर्फ बूढ़ा हो गया है, सिर्फ वृद्ध हो गया है। इतना भयभीत हो गया है कि वृद्ध हो गया है।
भय बड़ी तेजी से वार्धक्य लाता है।
यहां तक घटनाएं संग्रहीत की गई हैं कि एक आदमी को कोई तीन सौ वर्ष पहले हालैडं में फांसी की सजा दी गई। वह आदमी जवान था। जिस दिन उसे फांसी की सजा सुनाई गई, सांझ वह जाकर अपनी कोठरी में सोया। सुबह उठकर पहरेदार उसे पहचान न सके कि यह आदमी वही है। जिसके सारे बाल सफेद हो गए हैं! उसके चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई हैं वह आदमी बूढ़ा हो गया है!
ऐसी कुछ घटनाएं इतिहास में संग्रहीत हैं, जब आदमी क्षणभर में बूढ़ा हो गया हो। इतनी तेजी से! भयभीत अगर हो गया होगा, तो हो सकता है। जो रस स्त्रोत तीस वर्ष में सूखते, वह भय के क्षण में, एक ही क्षण में सूख गए हों। कठिनाई क्या है? निश्चित, बाल सफेद होंगे ही। तीस-चालीस वर्ष, पचास वर्ष का समय लगता है उनके बाल सफेद होने में। यह हो सकता है कि इतनी तीवता से भय ने पकड़ा हो कि भीतर के जिन रस-स्त्रोतों से बालों में कालिख आती हो, वे एक ही भय के धक्के में सूख गए हों। बाल सफेद हो गए हों।
आदमी एकक्षण में बूढ़ा हो सकता है, भय से।
और अगर दस हजार साल की पूरी संस्कृति भय पर ही खड़ी है। सिवाय भय के कोई आधार ही न हो, तो अगर आदमी का मन बूढ़ा हो जाए, तो आश्चर्य नहीं है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga