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संभोग से समाधि की ओर...
अगर पक्का पता चल जाए कि ईश्वर मर गया है-उसकी खबरें तो बहुत आती हैं लेकिन
पक्का नहीं हो पाता कि ईश्वर मर गया है। तो जिसको हम धार्मिक आदमी कहते हैं
वह एक क्षण में अधार्मिक हो जाए। अगर इसकी गारंटी हो जाए कि ईश्वर मर गया है,
तो जिसको हम धार्मिक आदमी कहते हैं मंदिर कभी न जाए। फिर सच्चाई, सत्य और
गीता और कुरान और बाइबिल की बातें वह भूलकर भी न करें। वह फिर टूट पड़े जीवन
पर, पागल की तरह! उसने भगवान को एक बहुत बड़ा सुप्रीम कांस्टेबल की तरह समझा
हुआ है। हैड कांस्टेबल सबके ऊपर बैठा हुआ पुलिसवाला, वह उसको डराए हुए है।
पुराना शब्द है 'गॉड फियरिंग', ईश्वर भीरू! धार्मिक आदमी को हम कहते
हैं-ईश्वर भीरू!
परसों मैं एक मित्र के घर गया था बड़ौदा में, उन्होंने कहा, मेरे पिता बहुत
'गॉड फियरिग' हैं बड़े धार्मिक आदमी हैं। सुन लिया मैंने! लेकिन गॉड फिंयरिग
धार्मिक कैसे हो सकता है? 'गॉड लविंग : ईश्वर को प्रेम करनेवाला धार्मिक हो
सकता है। ईश्वर से डरनेवाला कैसे धार्मिक हो सकता है?
और ध्यान रहे, जो डरता है, वह प्रेम कभी नहीं कर सकता है। जिससे हम डरते हैं
उसको हम प्रेम कर सकते हैं? उसको हम घृणा कर सकते हैं, प्रेम नहीं कर सकते!
हां, प्रेम दिखा सकते हैं। भीतर होगी घृणा, बाहर दिखाएंगे प्रेम! प्रेम
एक्टिंग होगा अभिनय होगा!
जो भगवान से डरा हुआ है, उसकी प्रार्थना झूठी है। उसके प्रेम की सब बातें
झूठी हैं? क्योंकि जिससे हम डरे हैं उससे प्रेम असंभव है। उससे प्रेम का
संबंध पैदा ही नहीं होता है।
कभी आपको खयाल है, जिससे आप डरे हैं उसे आपने प्रेम किया है? लेकिन यह
भ्रांति गहरी है। वह ऊपर बैठा हुआ पिता भी इस तरह पेश किया गया है कि उससे हम
डरे हैं। नीचे भी जिसको हम पिता कहते हैं मां कहते हैं, गुरु कहते हैं वे सब
डरा रहे हैं। और सब सोचते हैं कि डर से प्रेम पैदा हो जाए।
बाप बेटे को डरा रहा है। डराकर सोच रहा है कि प्रेम पैदा होता है। नहीं!
दुश्मनी पैदा हो रही है। हर बेटा बाप का दुश्मन हो जाएगा। जो बाप भी बेटे को
डराएगा दुश्मनी पैदा हो जाना निश्चित है। और बेटा आज नहीं कल, बदले में बाप
को डराका। थोड़ा वक्त लगेगा थोड़ा समय लगेगा। बाप जब बूढ़ा हो जाएगा बेटा जब
जवान होगा तो बाप ने जब जवान था और बेटा जब बच्चा था, जिस भांति डराया था
पहलू बदल जाएगा, अब बेटा बाप को डराका! और बाप चिल्लाका बेटे बिल्कुल बिगड़ गए
हैं!
बेटे कभी नहीं बिगड़ते। पहले बाप को बिगड़ना पड़ता है। तब बेटे बिगड़ते हैं।
बाप पहले बिगड़ गया। उसने बचपन में बेटे के साथ वह सब कर लिया है, जो बेटे को
बुढ़ापे में उसके साथ करना पड़ेगा। सब चक्के घूमकर अपनी जगह आ जाते हैं।
अगर भय हमने पैदा किया है तो परिणाम में भय लौटेगा, घृणा लौटेगी, दुश्मनी
लौटेगी। प्रेम नहीं लौटता।
और हमने जो ईश्वर बनाया था, वह भय का साकार रूप था। भय ही भगवान था।
स्वाभाविक रूप से आदमी उससे डरा। डरकर धार्मिक बना तो धार्मिकता झूठी ही
थोपी! एकदम ऊपरी। भीतर भय था। भीतर डर था।
आज एक युवती ने मुझे आकर कहा कि बचपन से मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर मुझे मिल
जाए तो उसे मार डालूं। मैंने कहा, यह सब खयाल है तेरे मन में? लेकिन जो भी
डराने वाला है, उसको मारने का ख्याल है मन में पैदा होगा ही। उस युवती को ठीक
ही खयाल पैदा हुआ है। हिम्मत है, उसने कह दिया है। हममें हिम्मत नहीं है, हम
नहीं कहते। वैसे हर आदमी इस खोज ने है कि ईश्वर को कैसे खत्म कर दें, कैसे
मार डालें।
दोस्तोवस्की ने अपने उपन्यास में कहा है कि अगर ईश्वर न हो, 'देन एवरी थिंग
इस कमिटेड'। एक बार पक्का हो जाए, ईश्वर नहीं है तो हर चीज की आज्ञा मिल जाए।
फिर हमें जो करना है, हम कर सकते हैं। फिर कोई डर न रह जाए। वही तो निश्चित
है। बाद में उसने कहा कि तुम छोड़ दो भय। खबर नहीं मिली तुम्हें-गॉड इज नाउ
डैड मैन इज फ्री, ईश्वर मर चुका है और आदमी मुक्त है!
ईश्वर बंधन था कि उसके मरने से आदमी मुक्त होगा? इसमें ईश्वर का कसूर नहीं
है। इसमें धर्म के नाम पर जो परंपराए बनी उन्होंने भय का बंधन दिया था। जरूरी
हो गया था कि ईश्वर के बेटे किसी दिन उसे कर कर दें।
आज दुनिया भर के बेटे ईश्वर का कत्ल कर दे रहे हैं। रूस ने कत्ल किया है, चीन
ने कल्ल किया है; हिंदुस्तान में भी कत्ल करेंगे। बचाना बहुत मुश्किल है।
नक्सलवादी ने शुरू किया है, बंगाल में शुरू किया है। गुजरात थोड़ा पीछे जाएगा।
थोड़ा गणित बुद्धि का है, थोड़ी देर में; लेकिन आएगा, बच नहीं सकता।
ईश्वर पृथ्वी के कोने-कोने में कत्ल किया जाएगा। उसका जिम्मा नास्तिकों का
नहीं होगा गौर रखना। उसका जिम्मा उनका होगा, जिन्होंने ईश्वर के साथ भय को
जोड़ा है, प्रेम को नहीं। इसके लिए जिम्मेदार तथाकथित धार्मिक लोग होंगे-वे
चाहे हिंदू हों, चाहे मुसलमान हों, चाहे ईसाई हों; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
जिन्होंने भी, मनुष्य-जाति के मन में ईश्वर और भय का एसोसिएशन करवा दिया है,
दोनों को जुड़वा दिया है, उन्होंने इतनी खतरनाक बात पैदा की है कि आदमी के
धार्मिक होने में सबसे बड़ी बाधा बन गई है। या तो ईश्वर को भय से मुक्त करो-या
ईश्वर आदमी को बूढ़ा करने या मारने का कारण हो गया है-क्योंकि भय बूढ़ा करता है
और मारता है।
और ध्यान रहे, चीजें संयुक्त हो जाती हैं। विपरीत चीजें भी सयुक्त हो सकती
हैं। मन के नियम हैं। अब भय से भगवान का कोई संबंध नहीं है। अगर इस पृथ्वी
पर, इस जगत में, इस जीवन में कोई एक चीज है, जिससे निर्भय हुआ जा सकता है तो
वह भगवान है। कोई एक तत्व है, जिससे निर्भय हुआ जा सकता है पूरा, तो वह
परमात्मा है; क्योंकि बहुत गहरे में हम उसकी ही किरणे हैं उसके ही हिस्से
हैं। उसके ही भाग हैं उससे ही लगे हैं। उससे भय का सवाल क्या है? उससे भयभीत
होना अपने से भयभीत होने का मतलब रखेगा। लेकिन हम जोड़ सकते हैं चीजों को।
पावलव ने रूस में बहुत प्रयोग किए हैं एसोसिएशन पर, संयोग पर। एक कुत्ते को
पावलव रोज रोटी खिलाता है। रोटी सामने रखता है, कुत्ते की लार टपकने लगती है।
फिर रोटी के साथ वह घंटी बजाता है। रोज रोटी देता है, घंटी बजाता है। रोटी
देता है, घंटी बजाता है। पंद्रह दिन बाद रोटी नही देता है, सिर्फ घंटी बजाता
है। और कुत्ते की लार टपकनी शुरू हो जाती है! अब घंटी से लार टपकने का कोई भी
संबंध कभी सुना है? घंटी बजने से कुत्ते की लार टपकने का क्या संबंध है?
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