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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


वक्त हो गया है, जहर आना चाहिए। सुकरात उठकर बाहर जाता है और पूछता है मित्र, कितनी देर और?
उस आदमी ने कहा, तुम पागल हो गए हो सुकरात, मैं देर लगा रहा हूं इसलिए कि थोड़ी देर तुम और रह लो, थोड़ी देर सांस तुम्हारे भीतर और आ जाए थोड़ी देरे सूरज की रोशनी और देख लो, थोड़ी देर खिलते फूलों को, आकाश को, मित्रों की आंखों को और झांक लो, बस थोड़ी देर और। नदी भी समुद्र में गिरने के पहले पीछे लौटकर देखती है। तुम थोड़ी देर लौटकर देख लो। मैं देर लगाता हूं, तुम जल्दी क्यों कर रहे हो? तुम इतनी उतावली क्यों किए जा रहे हो?
सुकरात ने कहा, मैं जल्दी क्यों किए जा रहा हूं! मेरे प्राण तड़पे जा रहे हैं मौत को जानने को। नयी चीज को जानने की मेरी हमेशा से इच्छा रही है। मौत बहुत बड़ी नयी चीज है; सोचता हूं, देखूं क्या चीज है!
यह आदमी जवान है, यह बूढ़ा नहीं है। मौत को भी देखने के लिए इसकी आतुरता है।

मित्र कहने लगा कि थोड़ी देर और जी लो।
सुकरात ने कहा, जब तक मैं जिंदा हूं मैं यह देखना चाहता हूं कि जहर पीने से मरता हूं कि जिंदा रहता हूं।
लोगों ने कहा कि अगर मर गए तो?
उसने कहा कि यदि मर ही गए तो फिक्र ही खत्म हो गयी। चिंता का कोई कारण न रहा और जब तक जिंदा हूं जिदा हूं! जब मर ही गए चिंता की कोई बात नहीं, खत्म हो गयी बात। लेकिन जब तक मैं जिंदा हूं जिदा हूं: तब तक मै मरा हुआ नहीं हूं और पहले सै क्यों मर जाऊं?
मित्र सब डरे हुए बैठे हैं पास, रो रहे हैं जहर की घबराहट आ रही है।
वह सुकरात प्रसन्न है! वह कहता है, जब तक मैं जिदा हूं, तब तक मैं जिदा हूं, तब तक जिदगी को जानूं। और सोचता हूं कि शायद मौत भी जिंदगी में एक घटना है।
सुकरात को बूढ़ा नहीं किया जा सकता। मौत सामने खड़ी हो जाए तो भी यह बूढ़ा नहीं होता।
और हम?...जिदगी सामने खड़ी रहती है और बूढ़े हो जाते हैं। यह रुख भारत में युवा मस्तिष्क को पैदा नहीं होने देता है। जीवन का विषादपूर्ण चित्र फाड़कर फेंक दो। और उसमें जिदगी के दुःख और जिंदगी के विषाद को बढ़ा-चढ़ा कर बतलाते हैं; वे जिदगी के दुश्मन हैं, देश में युवा को पैदा होने देने में दुश्मन है। वह युवक को पैदा होने कें पहले बूढ़ा बना देते हैं।

अभी मैं कुछ दिन पहले भावनगर में था। एक छोटी-सी लड़की ने, तेरह-चौदह साल उम्र थी, उसने मुझे आकर कहा कि मुझे आवागमन में छुटकारे का रास्ता बताइए! तेरह-चौदह साल की लड़की कहती है कि आवागमन में कैसे छूटुं फिर इस मुल्क में कैसे जवानी पैदा होगी? तेरह-चौदह साल की लड़की बूढ़ी हो गयी! वह कहती है, मैं मुक्त कैसे होऊं? जीवन से छूटने का विचार करने लगी है!ॉ
अभी जीवन के द्वार पर थपकी भी नहीं दी, अभी जीवन की खिड़की भी नहीं खुली, अभी जीवन की वीणा भी नहीं बजी, अभी जीवन के फूल भी नहीं खिले! वह द्वार के बाहर ही पूछने लगी, छुटकारा, मुक्ति, मोक्ष कैसे मिलेगा?
जहर डाल दिया होगा किसी ने उसके दिमाग में। मां-बाप ने, गुरुओं ने, शिक्षकों ने उसको पायजन बना दिया। उसकी जवानी पैदा नहीं होगी अब। अब वह बूढ़ी ही जिएगी। उसका विवाह भी होगा तो वह एक बूढ़ी औरत का विवाह है, जवान लड़की का नहीं। उसके घर के द्वार पर शहनाइयां बजेगी तो एक बूढ़ी
औरत सुनेगी उन शहनाइयों को, एक जवान लड़की नहीं। उन शहनाइयों से भी मौत की आवाज सुनाई पड़ेगी, जीवन का संगीत नहीं? वह बूढ़ी हो गई!
पहली बात, अगर बूढ़ा होना है तो मौत का ध्यान रखना जीवन पर नहीं। और अगर जवान होना है तो मौत को लात मार देना। वह जब आएगी, तब मुकाबला कर लेंगे। जब तक जीते हैं, तब तक पूरी तरह से जिएंगे, तब मुकाबला कर लेंगे। जब तक जीते हैं तब तक पूरी तरह से जिएंगे, उसकी टोटलिटी में जीवन के रस को खोजेंगे, जीवन के आनंद कौ खोजेंगे।
रवीद्रनाथ मर रहे थे। एक बूढ़े मित्र आए और उन्होंने कहा, अब मरते वक्त तो भगवान से प्रार्थना कर लो कि अब दुबारा जीवन में न भेजे। अब आखिरी वक्त प्रार्थना कर लो कि अब आवागमन सें छुटकारा हो जाए। अब इस ख्वाब, इस गंदगी के चक्कर में न आना पड़े।
रवींद्रनाथ ने कहा, क्या कहते हैं आप? मैं और यह प्रार्थना करूं? मैं तो मन ही मन यह कह रहा हूं कि हे प्रभु अगर तूने मुझे योग्य पाया हो, तो बार-बार तेरी पृथ्वी पर भेज देना। बड़ी रंगीन थी, बड़ी सुंदर थी; ऐसे फूल नहीं देखे, ऐसा चांद, ऐसे तारे, ऐसी आंखें, ऐसा सुंदर चेहरा! मैं दंग रह गया हूं मैं आनंद से भर गया हूं। अगर तूने मुझे योग्य पाया हो तो हे परमात्मा, बार-बार इस दुनिया में मुझे भेज देना। मैं तो यह प्रार्थना कर रहा हूं मैं तो डरा हुआ हूं कि कहीं मैं अपात्र न सिद्ध हो जाऊं कि दोबारा ने भेजा जाऊं।
रवींद्रनाथ को बूढ़ा बनाना बहुत मुश्किल है। शरीर बूढ़ा हो जाएगा, लेकिन इस आदमी के भीतर जो आत्मा है, वह जवान है, वह जीवन की मांग कर रही है। रवींद्रनाथ ने मरने के कुछ ही घड़ी पहले, कुछ कड़ियां लिखवाई। उनमे दो कड़ियां हैं। देखा तो मैं नाचने लगा! क्या प्यारी बात कही है!
किसी मित्र ने रवीद्रनाथ को कहा कि तुम तो महाकवि हो, तुमने छह हजार गीत लिखे, जो संगीत में बांधे जा सकते है!' शेली को लोग पश्चिम में कहते है उसके तो सिर्फ दो हजार गति संगीत में बांध सकते है, तुम्हारे तो छह हजार गीत! तुमसे बड़ा कोई कवि दुनिया में कभी नहीं हुआ।
रवीद्रनाथ की आंखों से आंसू बहने लगे। रवींद्रनाथ ने कहा क्या कहते हो, मैं तो भगवान से कह रहा हूं कि अभी मैंने गीत गाए कहां थे, अभी तो साज बिठा पाया था और विदा का क्षण आ गया। अभी तो ठोक- पीटकर तंबूरा ठीक किया था, सिर्फ, अभी मैंने गीत गाया ही कहां था। अभी तो मैने तंबुरे की तैयारी की थी, ठोक-पिटकर तैयार हो गया था, साज बैठ गया था। अब मैं गाने की चेष्टा करता और यह तो विदा का क्षण आ गया। और मेरे तंबूरे के ठोकने-पीटने से लोगों ने
समझ लिया है कि यह महाकवि हो गया है! भगवान से कह रहा हूं कि संगीत का साज तैयार हो गया और मुझे विदा कर रहे हो? मरते हुए रवीद्रनाथ कहते हैं कि अभी तो मौका आया है कि मैं गीत गाऊं।
वह यह कह रहे थे कि अभी मौका आया था कि मैं जवान हुआ था। वह यह कह रहे हैं कि अब तो मौका आया था कि सारी तैयारी हो गई था और मुझे विदा कर रहे हो। बूढ़ा आदमी यह कह सकता है फिर वह आदमी बूढ़ा नहीं है।

अगर जवान होना है तो जिंदगी को उसको सामने से पकड़ लेना पड़ेगा। एक-एक क्षण जिंदगी भागी चली जा रही है, उसको मुट्ठी में पकड़ लेना पड़ेगा, उसे जीने की चेष्टा करनी पड़ेगी। और जी केवल वे ही सकते हैं जो उसमें रस का दर्शन करते हैं। और वहां दोनों चीजे हैं जिदगी के रास्ते पर, कांटे भी हैं और फूल भी। जिन्हें बूढ़ा होना हो वे कांटों की गिनती कर लें। जिन्हें जवान होना हो वे फूल को गिन लें।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga