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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


और मैं कहता हूं कि करोड़ कांटे भी फूल की एक पंखुड़ी के मुकाबले कम हैं। एक गुलाब की छोटी-सी पंखुड़ी इतना बड़ा मिरेकल हैं, इतना बड़ा चमत्कार है कि करोड़ों कांटे इकट्ठे कर लो, उससे और कुछ सिद्ध नहीं होता। उससे सिर्फ इतना ही सिद्ध होता है कि बड़ी अद्भुत है यह दुनिया। जहां इतने कांटे हैं वहां मखमल जैसा गुलाब का फूल पैदा हो सका है। उससे सिर्फ इतना सिद्ध होता है और कुछ भी सिद्ध नहीं होता। लेकिन यह देखने की दृष्टि पर निर्भर है कि हम कैसे देखते हैं।

पहली बात, जिंदगी पर ध्यान चाहिए। मेडीटेशन आन लाइफ, मौत पर नहीं। तो आदमी जवान से जवान होता चला जाता है। बुढ़ापे के अंतिम क्षण तक मौत द्वार पर भी खड़ी हो तो वैसा आदमी जवान होता है।
दूसरी बात जो आदमी जीवन मे सुंदर को देखता है, जो आदमी जवान है,; वह आदमी असुंदर को मिटाने के लिए लड़ता भी है। जवानी फिर देखती नहीं, जवानी लड़ती भी है। जवानी स्पेक्टेटर नहीं, जवानी तमाशबीन नहीं है कि तमाशा देख रहे हैं खड़े होकर।
जवानी का मतलब है जीना, तमाशगिरी नहीं।
जवानी का मतलब है सृजन।
जवानी का मतलब है सम्मिलित होना, पार्टिसिपेशन। दूसरा सूत्र है।
खड़े होकर रास्ते के किनारे अगर देखते हो जवानी की यात्रा को, तूम तमाशबीन हो; तुम जवान नहीं हो, एक निष्क्रिय देखनेवाले। निष्क्रिय देखनेवाले आदमी जवान नहीं हो सकता। जवान सम्मिलित होता है जीवन में।

और जिस आदमी को सौंदर्य से प्रेम है, जिस आदमी को जीवन का आह्लाद है, वह जीवन को आह्लादित बनाने के लिए श्रम करता है, सुंदर बनाने के लिए श्रम करता है। वह जीवन की कुरूपता से लड़ता है, वह जीवन को कुरूप करने वालों के खिलाफ विद्रोह करता है। कितनी कुरूपता है समाज में और जिंदगी में?

अगर तुम्हें प्रेम है सौंदर्य से...तो एक युवक एक सुंदर लड़की की तस्वीर लेकर बैठ जाए और पूजा करने लगे? एक युवती एक सुंदर युवक की तस्वीर लेकर बैठ जाए और कविताएं करने लगे? इतने से जवानी का काम पूरा नहीं हो जाता?
सौंदर्य से प्रेम का मतलब है : सौंदर्य को पैदा करो, क्रिएट करो; जिदगी को सुदर बनाओ। आनंद की उपलब्धि और आनंद की आकांक्षा और अनुभूति के बिखराओ। फूलों को चाहते हो तो फूलों को पैदा करने की चेष्टा में सलग्न हो जाओ। जैसा तुम चाहते हो जिदगी को वैसी बनाओ।
जवानी मांग करती है कि तुम कुछ करो, खड़े होकर देखते मत रहो।
हिंदुस्तान की जवानी तमाशबीन है। हम ऐसे रहते हैं खड़े होकर जीवन में, जैसे कोई जुलूस जा रहा है। वैसे रुके हैं देख रहे हैं; कुछ भी हो रहा है! शोषांग हो रहा है, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! बेवकूफियां हो रही हैं जवान खड़ा देख रहा है! बुद्धिहीन लोग देश को नेतृत्व दे रहे है जवान खड़ा देख रहा है। जड़ता धर्मगुरु बनकर बैठी है, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! सारे मुल्क के हितों को नष्ट किए जा रहे हैं जवान खड़ा हुआ देख रहा है! यह कैसी जवानी है?
कुरूपता से लड़ना पड़ेगा, असौंदर्य से लड़ना पड़ेगा, शोषण से लड़ना पड़ेगा, जिदगी को विकृत करने वाले तत्त्वों से लड़ना पड़ेगा। जो आदमी जवान होता है, वह सागर की लहरों और तूफानों में जीता है, फिर आकाश में उसकी उड़ान होनी शुरू होती है। लेकिन लड़ोगे तुम? व्यक्तिगत लड़ाई ही नहीं है यह, सामूहिक लड़ाई की बात है। कोई फाइट नहीं!

और बिना फाइट के, बिना लड़ाई के, जवानी निखरती नहीं? जवानी 'सदा लड़ाई के बिना निखरती नहीं। जवानी सदा लड़ती है और निखरता है, जितनी लड़ती है, उतनी निखरती है। सुंदर के लिए सत्य के लिए जवानो जितनी लड़ती है, उतनी निखरती है। लेकिन क्या लड़ोगे?
तुम्हारे पिता आ जाएंगे, तुम्हारी गर्दन में रस्सी डालकर कहेंगे इस लड़का से विवाह करो और तुम घोड़े पर बैठ जाओगे! तुम जवान हो? और तुम्हारे बात जाकर कहेंगे कि दस हजार रुपार लेंगे इस लड़की के पिता से उसे तुम मजे में करोगे कि दस हजार में स्कूटर खरीदें कि क्या करें? तुम जवान तो हो?

ऐसी जवानी दो कौड़ी की जवानी है।
जिस लड़की को तुमने कभी चाहा नहीं, जिस लड़की को तुमने कभी प्रेम नहीं किया जिस लड़की को तुमने कभी छुआ नहीं, उस लड़की से विवाह करने के लिए तुम पैसे के लिए राजी हो रहे हो? समाज की व्यवस्था के लिए राजी हो रहे हो? तो तुम जवान नहीं हो। तुम्हारी जिंदगी में कभी भी वे फल नहीं खिलेंगे जो युवा मस्तिष्क छूता है। तुम हो ही नहीं; तुम एक मिट्टी के लौंदे हो, जिसको कही भी सरकाया जा रहा हो, कहीं पर भी लिया जा रहा हो। कुछ भी नहीं तुम्हारे मन में, न संदेह है, न जिज्ञासा है, न संघर्ष है, न पूछ है, न इंक्वायरी है कि यह क्या हो रहा है! कुछ भी हो रहा है, हम देख रहे हैं खड़े होकर! नहीं, ऐसे जवानी नहीं पैदा होती है।
इसलिए दूसरा सूत्र तुमसे कहता हूं और वह यह कि जवानी संघर्ष से पैदा होती है। संघर्ष गलत के लिए भी हो सकता है और तब जवानी कुरूप हो जाती है। संघर्ष बुरे के लिए भी हो सकता है, तब जवानी विकृत हो जाती है। संघर्ष अधूरे के लिए भी हो सकता है, तब जवानी आत्मघात कर लेती है।
लेकिन संघर्ष जब सत्य के लिए सुंदर के लिए श्रेष्ठ के लिए होता है, संघर्ष जब परमात्मा के लिए होता है, संघर्ष जब जीवन के लिए होता है; तब जवानी सुंदर, स्वस्थ, सत्य होती चली जाती है।
हम जिसके लिए लड़ते हैं, अंततः वही हम हो जाते हैं।
लड़ो सुंदर के लिए और तुम सुंदर हो जाओगे। लड़ो सत्य के लिए और तुम सत्य हो जाओगे। लड़ो श्रेष्ठ के लिए तुम श्रेष्ठ हो जाओगे।
और मरो-सड़ों तुम....खड़े-खड़े सड़ोगे और मर जाओगे और कुछ भी नहीं होओगे।
जिंदगी संघर्ष है और संघर्ष से ही पैदा होती है। जैसा हम संघर्ष करते हैं वैसे ही हो जाते हैं।
हिंदुस्तान में कोई लड़ाई नहीं है, कोई फाइट नहीं है! कुछ हो रहा है, अजीब हो रहा है। हम सब जानते हैं देखते हैं सब हो रहा है और होने दे रहे हैं! अगर हिदुस्तान की जवानी खड़ी हो जाए तो हिंदुस्तान में फिर ये सब नासमझिया नहीं हो सकती हैं जो हो रही हैं। एक आवाज के टूट जाएंगी। क्योंकि जवान नहीं है. इसलिए कुछ भी हो रहा है।
मैं यह दूसरी बात कहता हूं। लड़ाई के मौके खोजना सत्य के लिए ईमानदारी के लिए।
अगर अभी न लड़ सकोगे तो बुढ़ापे में कभी नहीं लड़ सकोगे। अभी तो मौका है कि ताकत है, अभी मौका है कि शक्ति है, अभी मौका है कि अनुभव ने तुम्हे बेईमान नहीं बनाया है। अभी तुम निर्दोष हो, अभी तम लड़ सकते हो, अभी तुम्हारे भीतर आवाज उठ सकती है, यह गलत है। जेसे-जैसे उम्र बढ़ेगी, अनुभव बढ़ेगा, चालाकी बढ़ेगी।
अनुभव से जान नहीं बढ़ता है, सिर्फ कनिगनेस बढ़ती है, चालाकी बढ़ती है। अनुभवी आदमी चालाक हो जाता है, उसकी लड़ाई कमजोर हो जाती है, वह अपना हित देखने लगता है। हमें क्या मतलब है, अपनी फिक्र करो, इतनी बड़ी दुनिया के झंझट में मत पड़ो।
जवान आदमी जूझ सकता है, अभी उसे कुछ पता नहीं। अभी उसे अनुभुव नहीं है चालाकियों का।
इसके पहले कि चालाकियों में तुम दीक्षित हों जाओ और तुम्हारे उपकुलपति और तुम्हारे शिक्षक और तुम्हारे मां-बाप दीक्षांत समारोह मे तुम्हें चालाकियों के सर्टिफिकेट देंगे, उसके पहले लड़ना। शायद लड़ाई तुम्हारी जारी रहे, तो तुम चालाकियों में नहीं जीवन के अनुभव में दीक्षित हो जाओ। और शायद लड़ाई तुम्हारी जारी रहे, तो वह जो छिपी है भीतर आत्मा, वह निखर जाए वह प्रकट हो जाए। और जैसे आदमी अपने भीतर छिपे हुए जीवन का पूरा अनुभव करता हे, उसी दिन पूरे अर्थों मे जीवित होता है।
और मैं कहता हूं कि जो आदमी एक क्षण को भी पूरे अर्थो में जीवन का रस जान लेता है, उसकी फिर कोई मृत्यु कभी नहीं होती। वह अमृत से संबंधित हो जाता है।
युवा होना अमृत से संबंधित होने का मार्ग है। युवा होना आत्मा की खोज है। युवा होना परमात्मा के मंदिर पर प्रार्थना है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga