ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर संभोग से समाधि की ओरओशो
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संभोग से समाधि की ओर...
मैंने सुना है कि न्यूयार्क की सौवीं मंजिल से एक आदमी गिर रहा था। सौवीं
मंजिल से वह आदमी गिर रहा था। जब वह पचासवी मंजिल के पास से गुजरा था, तो
खिड़की से एक आदमी ने चिल्लाकर उससे पूछा कि दोस्त क्या हाल है?
उसने कहा कि अभी तक तो सब ठीक है। यह आदमी गड़बड़ आदमी है। यह आदमी जवान होने
का ढंग जानता है। लेकिन यह ठीक नहीं है। उस आदमी ने कहा अभी तक सब ठीक है,
अभी जमीन तक पहुंचे नहीं हैं, जब पहुंचेगे तब देखेंगे। अभी पचासवीं खिड़की तक
सब ठीक चल रहा है ओ० के०। यह आदमी जवान होने की तरकीब जानता है।
लेकिन हमको ऐसी तरकीबें कभी नहीं सीखनी चाहिए। हमें तो बूढ़े होने के रास्ते
पर चलना चाहिए। बूढ़ा होने का रास्ता-कभी जिंदगी में जो सुंदर हो, उसकी तरफ
ध्यान मत देना जो असुंदर हो उसकी खोज-बीन करना। और कोई आदमी आकर आपको कहे कि
फलां आदमी बहुत बड़ा संगीतज्ञ है, कितनी अद्भुत बांसुरी बजाता है। तो फौरन
उसको कहना कि वह बांसुरी क्या खाक बजाएगा। वह आदमी चोर है, बेईमान है, वह
बांसुरी कैसे बजा सकता है। आप धोखे में पड़ गए होंगे, वह आदमी पक्का बेईमान
है, वह बांसुरी नहीं बजा सकता। यह बूढ़े होने की तरकीब है।
अगर जवान आदमी उस गांव में जाएगा और कोई उससे कहेगा उस आदमी को जानते हो? वह
बड़ा चोर, बेईमान है? तो वह जवान आदमी कहेगा कि यह कैसे हो सकता है कि वह चोर
है, बेईमान है। मैंने उसे बड़ी सुंदर बांसुरी बजाते देखा है। इतनी अद्भुत
बांसुरी जो बजाता है, वह चोर नहीं हो सकता।
बूढ़े का जिंदगी को देखने का ढंग है-दुःखद को देखना अंधेरे को देखना. मौत को
देखना कांटे को देखना।
हिंदुस्तान हजारों साल से दुःखद को देख रहा है। जन्म भी दुःख है, जीवन भी
दुःख है, मरण भी दुःख है! प्रियजन का बिछुड़ना दुःख है, अप्रियजन का मिलना
दुःख है, सब दुःख है! मां के पेट का दुःख झेलो, फिर जन्म का दुःख झेलो, फिर
बड़े होने का दुःख झेलो, फिर जिंदगी में गृहस्थी के चक्कर झेलो, फिर बुढ़ापे की
बिमारियां झेलो, फिर मौत झेलो, फिर जलने की आग में अंतिम पीड़ा झेलो! ऐसे जीवन
की एक दुःख की लंबी कथा है। बूढ़ा होना हो तो इसका स्मण करना चाहिए।
बूढ़ा होना है तो बगीचे में नहीं जाना चाहिए, हमेशा मरघट पर बैठकर ध्यान करना
चाहिए, जहां आदमी जलाए जाते हों। सुंदर से बचना चाहिए, असुंदर को देखना
चाहिए। विकृत को देखना चाहिए, स्वस्थ को छोड़ना चाहिए। सुख मिले तो कहना चाहिए
क्षणभंगुर है, अभी खत्म हो जाएगा। दुःख मिले तो छाती से लगाकर बैठ जाना
चाहिए। और सदा आंखें रखनी चाहिए जीवन के उस पार, कभी इस जीवन पर नहीं।
इस जीवन को समझना चाहिए एक वेटिंग रूम है।
जैसे बड़ौदा के स्टेशन पर वेटिंग रूम हो, उसमें बैठते हैं आप थोड़ी देर। वही
छिलके फेंक रहे हैं वहीं पान थूक रहे हैं क्योंकि हमको क्या करना है, अभी
थोड़ी देर में हमारी ट्रेन आएगी और फिर हम चले जाएंगे। तुमसे पहले जो बैठा था,
वह भी वेटिंग रूम के साथ यही सद्व्यवहार कर रहा था, तुम भी वही सद्व्यवहार
करो, तुम्हारे बाद वाला भी वही करेगा।
वेटिंग रूम गंदगी का एक घर बन जाएगा, क्योंकि किसी को क्या मतलब है। हमको
थोड़ी देर रुकना है तो आंख बंद करके राम-राम जप के गुजार देंगे! अभी ट्रेन आती
है चली जाएगी।
ज़िंदगी के साथ जिन लोगों की आंखें मौत के पार लगी है उनका व्यवहार वेटिंग रूम
का व्यवहार है। वे कहते हैं क्षणभर की तो जिंदगी है; अभी जाना है, क्या करना
है हमें। हिंदुस्तान के संत-महात्मा यही समझा रहे हैं लोगों को-क्षणभंगुर है
जिंदगी, इसके मायामोह में मत पड़ना। ध्यान वहां रखना आगे, मौत के बाद। इस छाया
मे सारा देश बूढ़ा हो गया है।
अगर जवान होना है तो जिंदगी को देखना, मौत को लात मार देना। मौत से क्या
प्रयोजन है? जब तक जिंदा हैं तब तक जिंदा हैं। तब तक मौत नहीं है। सुकरात मर
रहा था। ठीक मरते वक्त जब उसके लिए बाहर जहर घोला जा रहा था। वह जहर
घोलनेवाला धीरे-धीरे घोल रहा है। वह सोचता है, जितने देर सुकरात और जिंदा रह
ले, अच्छा है। जितनी देर लग जाए।
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