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संभोग से समाधि की ओर...
लेकिन ये दो-चार हिप्पियों की बात है। बाकी जो बड़ा समूह है, वह भीड़-भाड़ है।
वह सिर्फ घर से भागे हुए छोकरों का समूह है। कोई पढ़ना नहीं चाहता है, कोई बाप
से क्रोध में है। कोई किसी लड़की से विवाह करना चाहता है। कोई गांजा पीना
चाहता है। कोई कैसे भी रहना चाहता है। कोई सुबह दस बजे तक सोना चाहता है। इन
सारे लोगों का समूह है। इसलिए मैं दो बातें अंत में कह दूं।
एक यह कि हिप्पी में जो श्रेष्ठतम फूल हैं उनसे तो मुझे आशा बंधती है कि उनसे
एक नए तरह के मिस्टिसिज्म एक नए तरह के रहस्य का जन्म होगा।
लेकिन हिप्पियों में जो नीचे का वर्ग है, उनसे कोई आशा नहीं बंधती। वे सिर्फ
घर-भगोड़े हैं। हिप्पी शब्द भी 'हिप' से ही बनता है, अर्थात् पीठ दिखाकर भाग
जाने वाले। ऐसे भगोड़े थोड़े दिन में वापिस भी लौट जाते हैं। वे घर लौट जाएंगे
ही।
इसलिए आपको 35 साल से ऊपर का हिप्पी मुश्किल से मिलेगा, नीचे का ही मिलेगा।
अधिकतर तो टीन एजर्स, उन्नीस वर्ष के भीतर के हैं। क्योंकि जैसे ही उनको एक
बच्चा हुआ और प्रेम हो गया एक सी से कि घर बनाने का सवाल शुरू हो जाता है।
फिर उन्हें नौकरी चाहिए। फिर वे वापस लौट आते हैं। स्कवॉयर लोगों की दुनिया
में चौखटे लोगो की दुनिया में वे फिर वापस आ जाते हैं। फिर किसी दफ्तर में
नौकरी। फिर घर है, फिर गृहस्थी है, फिर सब चलने लगता है।
लेकिन ऐसा मैं जरूर सोचता हूं कि हिप्पियों ने एक सवाल खड़ा किया है सारी
मनुष्य संस्कृति पर और उस सवाल के उत्तर में भविष्य के लिए बड़े संकेत हो सकते
है। इसलिए सोचने योग्य है हमारे लिए बहुत। हिंदुस्तान तो अभी हिप्पी नहीं
पैदा कर सकता।
गरीब कौम हिप्पी पैदा नहीं करती। समृद्धि ही हिप्पी पैदा करती है।
गौतम बुद्ध राजा के बेटे हैं। महावीर राजा के बेटे हैं। जैनियों के सब
तीर्थंकर राजाओं के बेटे हैं। राम, कृष्ण, सब राजाओं के बेटे हैं। जहां सब
मिल जाता है, वहां से बगावती और आगे जाने वाला आदमी पैदा होता है।
हिप्पी का अभी यहां भारत में सवाल नहीं है। अभी हम हिप्पी भी पैदा करेंगे तो
वह सिर्फ बाल बढ़ाने वाला आदमी होगा और कुछ भी नहीं। उसको कहो कि एक आदमी दस
हजार रुपए दे रहा है, लड़की की शादी के लिए तो वह कहेगा, फिर घोड़ा कहां है!
गरीब कौम हिप्पी पैदा नहीं कर सकती, समद्ध कौम ही कर सकती है। असल में इसका
मतलब यह हुआ कि 'वी केन नाट अफर्ड'-यह हमारे लिए महंगा सौदा है। यह दुःखद है।
यह सुखद नहीं' है। हम अभी हिप्पी पैदा नहीं कर सकते, यह बड़े दुःख की बात है।
हम गरीब हैं बहुत। अभी हम उस जगह नहीं हैं, जहां कि हमारे लड़के कुछ भी न
करें, तो जी सकें।
अगर दो लाख आदमी बिना कुछ किए जी रहे हैं, तो उसका मतलब है कि समाज समृद्ध
एफ्ल्युअट है, समाज में बहुत पैसा है। एक हिप्पी है, वह दो दिन काम कर आता है
गांव में, और महीने भर के लिए कमा लेता है। वह 28 दिन पड़ा रहता है, एक वृक्ष
के नीचे ढोल बजाता रहता है। हरि भाजन करता रहता है। हरि कीर्तन करता रहता है।
गरीब कौम ऐसा विद्रोह नहीं पैदा कर सकती। लेकिन सदा के लिए तो हम गरीब नहीं
रहेंगे। इसलिए जब छात्रों ने आकर कहा कि हिप्पियों पर कुछ कहें तो मैंने कहा
अच्छा है, आज नहीं कल हिप्पी हम भी तो पैदा करेंगे ही। तो उसके पहले साफ हो
जाना चाहिए कि हिप्पी याने क्या?
वैसे इस देश ने अपनी समृद्धि के दिनों में बहुत तरह के हिप्पी पैदा किए।
जिनका पश्चिम को कुछ पता भी नहीं। गिंसबर्ग जब काशी आया तो एक
संन्यासी से उसको मिलाने ले गए। उस संन्यासी से जब कहा गया कि गिंसबर्ग
हिप्पी है तो वह संन्यासी खूब हंसा और उसने कहा, तुम तो सिर्फ हिप्पी हो, हम
महाहिप्पी हैं। हम काशीवासी हैं। और काशी है नामी महाहिप्पी भगवान शंकर की
भूमि। शंकर जैसे परम स्वतंत्र व्यक्तित्व भारत न कभी पैदा किए थे। लेकिन वह
समृद्ध दिनों की पुरानी याददाश्त है। भविष्य में हम फिर कभी हिप्पी पैदा कर
सकते हैं।
लेकिन सोचना तो बहुत जरूरी है। और सोचकर यह देखना जरूरी है कि हिप्पियों की
इस घटना में क्या मूल्यवान घटित हो रहा है मनुष्य की चेतना के लिए।
मनुष्य-चेतना क्रांति के एक कगार पर खड़ी है और एक निर्णायक छलांग अति निकट
है।
बाह्य विस्तार अब सार्थक नहीं है। अंतस विस्तार की खोज बेचैनी से चल रही है
अनेक आयामों में। आदमी स्वयं भी भावी चेतना को खोज रहा है। सुबह होने के पहले
अंधेरा भी निश्चय ही गहन हो गया है, लेकिन उससे स्वर्ण-प्रभात की योजना भी
मिल रही है।
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