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संभोग से समाधि की ओर...
मेरे एक शिक्षक थे हाईस्कूल में। उनको जब भी मौका मिल जाए वे अपनी बहादुरी की
बात कहे बिना नहीं रहते थे कि मैं अकेला ही मरघट चला जाता हूं। अंधेरी रात
में, और बिल्कुल अकेले। मैंने एक दिन उनसे कहा कि आप ऐसी बातें न किया करें।
लड़कों को शक होता है कि आप कुछ डरपोक आदमी हैं। इन बातों का क्या बहादुर आदमी
भी कहेगा? मैं अकेला ही अंधेरी रात में चला जाता हूं यह तो सिर्फ भयभीत आदमी
ही कह सकता है। जिसको भय नहीं है, उसको पता ही नहीं चलता कि कब अंधेरी रात है
और कब सूरज निकला। वह बस चला जाता है और हिसाब नहीं रखता!
पीछे गिंसबर्ग मुझे कभी मिले तो उससे मैं कहना चाहूंगा कि तुमने बहादुरी नहीं
बताई, तुमने सिर्फ मुंह बिचकाया। वह आदमी कपड़े पहने हुए है, तुमने कपड़े निकाल
दिए कुछ बहादुरी न हो गई। और इससे उल्टा भी हो सकता है कि कल पांच सौ आदमी
नंगे बैठे हों और मैं कपड़े पहने पहुंच जाऊं। और मैं कहूं कि मैं बहादुर हूं।
क्योंकि मैं कपड़े पहने हूं। तब भी कोई कठिनाई नहीं है।
मैंने एक घटना सुनी है-नैतिक साहस, मॉरल करेज की। मैंने सुना है एक स्कूल में
एक पादरी नैतिक साहस मॉरल करेज क्या है, यह समझा रहा है। उसने कहा कि 3०
बच्चे पिकनिक पर गए हैं। वे दिनभर में थक गए फिर साँझ को आकर उन्होंने भोजन
किया। 29 बच्चे तो तत्काल अपने बिस्तर में चले गए एक बच्चा ठंडी रात
थका-मांदा उसके बाद भी घुटने टेक कर उसने प्रार्थना की। उस पादरी ने कहा इस
बच्चे में 'मॉरल करेज' है, इसमें नैतिक साहस है। रात कह रही है सो जाओ, ठंड
कह रही है सो जाओ, थकान कह रही है सो जाओ। 29 लड़के कंबलों के भीतर हो गए हैं
और एक लड़का बैठकर रात की आखिरी प्रार्थना कर रहा है।
महीने भर बाद वह वापस लौटा। उसने कहा, नैतिक साहस पर मैंने तुम्हें कुछ
सिखाया था। तुम्हें कुछ याद हो तो मुझे तुम कुछ घटना बताओ। एक लड़के ने कहा,
मैं भी आपको एक काल्पनिक घटना बताता हूं। आप जैसे 3० पादरी पिकनिक पर गए दिन
भर थके, भूखे-प्यासे वापस लौटे। 29 पादरी प्रार्थना करने लगे, एक पादरी कंबल
ओढ़कर सो गया। तो हम उसको नैतिक साहस कहते हैं। जहां 29 पादरी प्रार्थना कर
रहे हों और एक-एक की आंखें कह रही हों कि नरक जाओगे, अगर प्रार्थना न की; वहा
एक पादरी कंबल ओढ़कर सो जाता है।
लेकिन नैतिक साहस का क्या मतलब इतना ही है कि जो सब कर रहे हों, उससे विपरीत
करना नैतिक साहस हो जाएगा? सिर्फ विपरीत होना साहस हो जाएगा? नहीं विपरीत
होने से साहस नहीं हो जाता। विपरीत होना जरूरी रूप से सही होना नहीं है।
और अकसर तो यह होता है कि गलत के विपरीत जब कोई होता है, तब दूसरी गलती करता
है और कुछ भी नहीं करता। अकसर दो गलतियों के बीच में वह जगह होती है, जहां
सही होता है। एक गलती से आदमी पेंडुलम की तरह दूसरी गलती पर चला जाता है। बीच
में ठहरना बड़ा मुश्किल होता है।
मुझे लगता है, हिप्पी जिसे विद्रोह कह रहे हैं वह विद्रोह तो है-होना चाहिए
वैसा विद्रोह, लेकिन वह प्रतिक्रिया ज्यादा है। और प्रतिक्रिया से मेरा विरोध
है।
एक रिबेलियस, विद्रोही आदमी बहुत और तरह का आदमी है। एक विद्रोही आदमी इसलिए
'नहीं' नहीं कहता कि नहीं कहना चाहिए। अगर नहीं कहना चाहिए इसलिए कोई नहीं
कहता है तो यह 'हां-हुजूरी' है। इसमें कोई फर्क न हुआ। वह 'नहीं' इसलिए कहता
है कि उसे लगता है कि नहीं कहना उचित है। और अगर उसे लगता है कि 'हां' कहना
उचित है तो दस हजार 'नहीं' कहने वालों के बीच में भी वह 'हां' कहेगा, यानी वह
सोचेगा।
मेरा कहना यह है कि विद्रोह अनिवार्य रूप से विवेक है और प्रतिक्रिया अविवेक
है।
तो हिप्पी विद्रोह की बात करके प्रतिक्रिया की तरफ चला जाता है। वहां सब
बातें व्यर्थ हो जाती हैं।
दूसरी बात मैंने कही कि हिप्पी कह रहा है : सहज जीवन। लेकिन सहज जीवन क्या
है? जो मेरे लिए सहज है, वह जरूरी नहीं है कि आपके लिए भी सहज हो। जो आपके
लिए सहज है, वह मेरे लिए जरूरी नहीं है कि सहज हो। जो एक के लिए जहर हो, वह
दूसरे के लिए अमृत हो सकता है। असल में एक-एक व्यक्ति का अपना-अपना होने का
यही अर्थ है। लेकिन हिप्पी कह रहा है कि सहज जीवन, और सहज जीवन के भी नियम
बनाए ले रहा है! वह कह रहा है सहज जीवन यही है, जहां पाखाना किया है, उसी के
बगल में बैठकर खाना खा लो!
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