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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


जब मैंने पहली दफा रात में खाना खाया तो मुझे वॉमिट हो गई, एक्दम उल्टी हो गई। क्योंकि चौदह साल तक मैंने कभी रात में खाना खाया नहीं था घर पर कभी खाता नहीं था। और रात में खाना पाप था। और जब पहली दफे विद्यार्थियों के साथ पिकनिक पर चला गया और वहां कोई जैन नहीं था, सब हिंदू थे, उनको दिन में कोई फिक्र न थी भोजन बनाने की या खाने की। और मेरे अकेले के लिए मुझे अच्छा भी नहीं लगा कि कुछ खाएं। दिनभर की थकान, पहाड़ी पर चढ़ना, दिनभर की भूख और फिर रात उनका खाना बनाना मेरे साथ। तो भूख भी, उनके खाने की गंध भी, तो मैं राजी हो गया। तो मैने सोचा कि ये लोग इतने दिन से खाते हैं अभी तक नरक नहीं गए थे। एक-दो दिन खा लेने से नरक नहीं चला जाऊंगा। नरक तो नहीं गया, लेकिन रात मै तकलीफ में पड़ गया; मैं नरक में ही रहा। क्योंकि मुझे उल्टी हो गई खाने के बाद। चौदह साल तक जिस बात को पाप समझा हो उसको एकदम से भीतर ले जाना बहुत मुश्किल है। उस दिन उल्टी हो गई तो मैंने यही सोचा कि बात पाप की है, नहीं तो उल्टी कैसे हो जाती।

तो विशियस सर्किल है, विचार के भी दुष्ट-चक्र हैं। जिस चीज को हम पाप मान लेते हैं उसमें सुख नहीं मिलता दुःख मिलने लगता है। और जब दुःख मिलने लगता है तो उसे और भी पाप मान लेने का गहरा भाव हो जाता है। जितना गहरा पाप मानते हैं उतना ज्यादा दुःख मिलने लगता है।

इस भांति पांच हजार साल से त्यागवादी आदमी की गर्दन पकड़े हुए है। और वे बीमार लोग हैं रुग्ण हैं। जीवन को जो भोग नहीं सकते, क्योंकि जीवन को भोगने के लिए जो अनिवार्य शर्त है, उसको वे पूरी नहीं कर सकते। उनका अहंकार बाधा बनता है। तब फिर वे कहना शुरू कर देते हैं कि सब अंगूर खट्टे हैं। और यह इतना प्रचार किया हुआ है अगर खट्टे होने का कि अगर खट्टे हैं या नहीं जब आप उनको मुंह में डालते हैं तो आपके दांत कहते हैं कि खट्टे हैं। प्रचार इतना बढ़ा है।

इन सारे लोगों ने स्त्री-पुरुष के बीच बहुत तरह की बाधाएं खड़ी की हैं। और चूंकि इनमें अधिक लोग पुरुष थे, इसलिए स्वभावतः स्त्री को उन्होंने बुरी तरह निंदित किया। ये सब शास्त्र रचने वाले चूंकि अधिकतर पुरुष थे, इसलिए सी को उन्होंने बिल्कुल नरक का द्वार बना दिया। तो नरक के द्वार को छूने में खतरा तो है ही, फिर नरक के द्वार के पास आने में भी खतरा है। और जितना इन लोगों ने यह भाव पैदा किया कि स्त्री नरक का द्वार है, स्त्री-पुरुष के संबंध पाप हैं अपराध है-ये भी सामान्य मनुष्य थे, इनके भीतर भी सी के प्रति वही आकर्षण था, जो किसी और के मन में है। और जब इन्होंने इतना विरोध किया तो यह आकर्षण और बढ़ गया निषेध से आकर्षण बढ़ता है।
जिस चीज का इंकार किया जाए, उसमें एक तरह का रस पैदा होना शुरू हो जाता है।
तो ये दिन-रात इंकार करते रहे तो इनका रस भी बढ़ गया। और जब इनका रस बढ़ गया-तो अगर इस तरह के लोग ध्यान करने बैठें, प्रार्थना करने बैठें-तो सी ही उनको दिखाई पड़ने वाली है। वे भगवान को देखना चाहते हैं लेकिन दिखाई खी पड़ती है! तब स्वभावतः उनको और भी पक्का होता चला गया कि स्त्री ही नर्क का द्वार है। हम भगवान को जल्दी पाना चाहते हैं तभी सी बीच में आ जाती है।

सारे ऋषि-मुनियों को स्त्रियां सताती हैं। इसमें स्त्रियों का कोई कसूर नहीं है, इसमें ऋषि-मुनियों के मन की भाव-दशा है। ये त्ररषि-मुनि स्त्री के खिलाफ लड़
रहे हैं। कोई ऊपर इंद्र बैठा हुआ नहीं है, जौ अप्सराएं भेजता है। मगर इन सबको अप्सराएं भेज दी थीं? नग्न स्त्रियां, सुंदर स्त्रियां-ये इनके मन के रूप है? जो इन्होंने दबाया है। और जिसको निषेध किया है, वह इतना प्रगाढ़ हो गया है। वह इतना प्रगाढ़ हो गया है कि अब वह बिल्कुल उनको वास्तविक मालूम पड़ता है।

तो इनके कहने मैं भी गलती नहीं है कि उन्होंने जो अप्सराए देखी, बिल्कुल वास्तविक है। यह अत्यत रुग्ण व्यक्ति की दशा है, विक्षिप्त चित्त की दशा हे। जब कोई वासना इतनी प्रगाढ़ हो जाती है कि उस वासना से जो स्वप्न खड़ा होता है, वह वास्तविक मालूम होता है, ये पागल मन की हालत है, और सबको स्त्रियां हीं सताती हैं। क्योंकि इनके पूरे जीवन का सारा संघर्ष ही स्त्री से है। जिससे संघर्ष है, वह सताएगा।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga