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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


संतति नियमन का अंतिम परिणाम यह होने वाला है कि हम वीर्य-कणों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था कर सकेंगे। आइंस्टीन का वीर्य-कण उपलब्ध हो सकता था।
एक आदमी के पास कितने वीर्य-कण है-कभी आपने सोचा है? एक संभोग में एक आदमी कितने वीर्य-कण खोता है? एक संभोग में एक आदमी इतने वीर्य-कण खोता है कि उनसे एक करोड़ बच्चे पैदा हो सकते हैं। और एक आदमी अंदाजन जिंदगी में चार हजार बार संभोग करता है। याने एक आदमी चार हजार बच्चों का बाप बन सकता है।

एक आदमी के वीर्य-कण अगर संरक्षित हो सकें तो एक आदमी चार करोड़ बच्चों का बाप बन सकता है। एक आइंस्टीन चार हजार बच्चों को जन्म दे सकता है। एक बुद्ध चार हजार बच्चों को जन्म दे सकता है।

क्या यह उचित न होगा कि हम आदमी के बाबत विचार करें, और हम इस बात की खोज करें? संतति नियमन ने पहली घटना शुरू कर दी, हमने सेक्स को तोड़ दिया। अब हम कहते हें कि बच्चे की फिक्र छोड़ दो; संभोग किया जा सकता है, संभोग का सुख लिया जा सकता है, बच्चे की चिंता की कोई जरूरत नहीं। जैसे ही यह बात स्थापित हो जाएगी, दूसरा कदम भी उठाया जा सकेगा।
और वह यह कि-अब जिससे संभोग करते हों, उससे ही बच्चा पैदा हो, तुम्हारे संभोग से बच्चा पैदा हो, यह भी अवैज्ञानिक है।
और अच्छी व्यवस्था की जा सकती है, और वीर्य-कण उपलब्ध किया जा सकता है, वैज्ञानिक व्यवस्था की जा सकती है और तुम्हें वीर्य-कण मिल सकता है। चूंकि अब तक हम उसको सुरक्षित नहीं रख सकते थे, अब तो उसको सुरक्षित रखा जा सकता है। अब जरूरी नहीं कि आप जिंदा हों, तभी आपका बेटा पैदा हो। आपके मरने के 5० साल बाद भी आपका बेटा पैदा हो सकता है।

इसलिए यह जल्दी करने की जरूरत नहीं है कि मेरा बेटा मेरे जिंदा रहने में ही पैदा हो जाए, वह बाद में 10 हजार साल भी पैदा हो सकता है। अगर मनुष्यों ने समझा कि आपका बेटा पैदा करना जरूरी है, तो वह आपके लिए सुरक्षा कर सकता है। आपका बच्चा कभी भी पैदा हो सकता है। अब बाप और बेटे का अनिवार्य संबंध उस हालत में नहीं रह जाएगा। जिस हालत में अब तक था वह टूट जाएगा।

एक क्रांति हो रही है। लेकिन इस देश में हमारे पास समझ बहुत कम है। अभी तो हम संतति नियमन को ही नहीं समझ पा रहे है। यह पहला कदम है, यह सेक्स मारेलिटी के संबंध में पहला कदम है। और एक दफा सेक्स की पुरानी मारेलिटी, पुरानी नीति टूट जाए तो इतनी क्रांति होगी कि जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। क्योंकि, हमें पता भी नहीं कि जो भी हमारी नीति है, वह किसी पुरानी यौन व्यवस्था से संबंधित है। यौन व्यवस्था पूरी तरह टूट जाए तो पूरी नीति बदल जाएगी।
धर्म-गुरु इसलिए भी डरा हुआ है। गांधीजी और विनोबाजी इसलिए भी डरे हुए हैं कि अगर यह कदम उठाया गया तो यह पुरानी नैतिक व्यवस्था को तोड़ देगा, नयी नीति विकसित हो जाएगी। क्योंकि, पुरानी नीति का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
अब तक स्त्री को निरंतर दबाया जा सकता था। पुरुष अपने सेक्स के संबंध में स्वतंत्रता बरत सकता था क्योंकि उसको पकड़ना बड़ा मुश्किल था।
इसलिए, पुरुष ने ऐसी व्यवस्था बनायी थी, जिसमें स्त्री की पवित्रता और अपनी स्वतंत्रता का पूरा इंतजाम रखा था। इसलिए स्त्री को सती होना पड़ता था पुरुष को नहीं।
इसलिए स्त्री के कुंवारे रहने पर भारी बल था, पुरुष के कुंवारे रहने की कोई चिंता न थी। इसलिए अभी भी माताएं और स्त्रियां कहती हैं कि लड़के तो लड़के हैं लेकिन लड़कियों के संबंध में हिसाब अलग हैं।
अगर संतति नियमन की बात पूरी होगी, होनी ही पड़ेगी, तो लडकियां भी लड़कों जैसी मुक्त हो जाएंगी। उनको फिर बांधने और दबाने का उपाय नहीं रहेगा। लड़कियां उपद्रव में पड़ सकती थी, क्योंकि उनको गर्भ रह जा सकता था। पुरुष उपद्रव में नहीं पड़ता था, क्योंकि उसको गर्भ का कोई डर न था।

नयी व्यवस्था ने लड़कियों को भी लड़कों की स्थिति में खड़ा कर दिया है। पहली दफा स्त्री और पुरुष की समानता सिद्ध हो सकेगी। अब तक सिद्ध न हो सकती थी, चाहे हम कितना भी चिल्लाते कि स्त्रियां और पुरुष समान हैं। वे इसलिए समान नहीं हो सकते थे, क्योंकि पुरुष स्वतंत्रता बरत सकता था। पकड़े जाने के भय से स्त्री स्वतंत्रता नहीं बरत सकती थीं।
विज्ञान की व्यवस्था ने स्त्री को पुरुष के निकट खड़ा कर दिया है। अब वे दोनों बराबर स्वतंत्र हैं। अगर पवित्रता निश्चित करनी है, तो दोनों को ही निश्चित
करनी पड़ेगी। अगर स्वतंत्रता तय करनी है, तो दोनों समान रूप से स्वतंत्र होंगे।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga