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संभोग से समाधि की ओर...
वितान ने ब्रह्मचर्य की जगह एक नया उपाय दिया है, जो सर्वसुलभ हो सकता है। वह
है संतति नियमन के कृत्रिम साधन, जिससे व्यक्ति को ब्रह्मचर्य में बंधने की
कोई जरूरत नहीं। जीवन के द्वार खुले रह सकते हैं अपने को सप्रेस, दमित करने
की कोई जरूरत नहीं।
और यह भी ध्यान रहे कि जो व्यक्ति एक बार अपनी यौन प्रवृत्ति को जोर से दबा
देता है, वह व्यक्ति सदा के लिए किन्ही अर्थों में रुग्ण हो जाता है। यौन की
वृत्ति से मुक्त हुआ जा सकता है, लेकिन यौन की वृत्ति को दबा कर कोई कभा
मुक्त नहीं हो सकता। यौन की वृत्ति से मुक्त हुआ जा सकता है, अगर यौन में
निकलने वाली शक्ति किसी और आयाम में, किसी और दिशा में प्रवाहित हो जाए तो
मुक्त हुआ जा सकता है।
एक वैज्ञानिक मुक्त हो जाता है बिना किसी ब्रह्मचर्य के, बिना राम-राम का पाठ
किए बिना हनुमान चालीसा पढ़े। एक वैज्ञानिक मुक्त हो जाता है, क्योंकि उसकी
सारी शक्ति. सारी ऊर्जा विज्ञान की खोज में लग जाती है। एक चित्रकार भी मुक्त
हो सकता है, एक संगीतज्ञ भी मुक्त हो सकता है, एक परमात्मा का खोजी भी मुक्त
हो सकता है।
ध्यान रहे, लोग कहते हैं ब्रह्मचर्य जरूरी है, परमात्मा की खोज के लिए। मैं
कहता हूं, यह बात गलत है। हां, परमात्मा की खोज पर जाने वाला ब्रह्मचर्य को
उपलब्ध हो जाता है। अगर कोई परमात्मा की खोज में पूरी तरह चला जाए तो उसकी
सारी शक्तियां इतनी लीन हो जाती हैं कि उसके पास यौन की दिशा मे जाने के लिए
न शक्ति का बहाव बचता है और न ही आकांक्षा।
ब्रह्मचर्य से कोई परमात्मा की तरफ नहीं जाता, लेकिन परमात्मा की तरफ जाने
वाला ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाता है।
लेकिन अगर हम किसी से कहें कि वह बच्चे रोकने के लिए ब्रह्मचर्य का उपयोग
करे, तो यह अव्यावहारिक है।
गांधीजी निरंतर यही कहते रहे, इस मुल्क के और भी महात्मा यही कहते हैं कि
ब्रह्मचर्य का उपयोग करो। लेकिन, गांधीजी जैसे महान् आदमी भी ठीक-ठीक अर्थों
में ब्रह्मचर्य को कभी उपलब्ध नहीं हुए। वे भी कहते हैं कि मेरे स्वप्न में
कामवासना उतर आती है। वे भी कहते हैं कि दिन में तो मैं संयम रख पाता हूं, पर
स्वप्नों में सब संयम टूट जाता है। और जीवन के अंतिम दिनों मे एक सी बिस्तर
पर लेकर, सोकर वे प्रयोग करते थे कि अभी भी कही कामवासना शेष तो नहीं रह गयी!
सत्तर साल की उम्र में एक युवती को रात में बिस्तर पर लेकर सोते-थे, यह जानने
के लिए कि कही काम-वासना शेष तो नहीं रह गयी। पता नहीं क्या परिणाम हुआ! वे
क्या जान पाए! लेकिन, एक बात पक्की है कि उन्हें सत्तर वर्ष की उम्र तक शक
रहा होगा कि ब्रह्मचर्य उपलब्ध नहीं हुआ, अन्यथा इस परीक्षा की कोई जरूरत न
थी।
ब्रह्मचर्य की बात एकदम अवैज्ञानिक और अव्यावहारिक है। कृत्रिम साधनों का
उपयोग किया जा सकता है और मनुष्य के चित्त पर बिना दबाव दिए उनका उपयोग किया
जा सकता है।
कुछ प्रश्न उठाए जाते है। यहां उनके उत्तर देना पसंद करूंगा।
एक मित्र ने पूछा है कि अगर यह बात समझायी जाए तो जो समझदार हैं, बुद्धिजीवी
हैं, इंटेलिजेन्सिया हैं, मुल्क का जो अभिजात वर्ग है, बुद्धिमान और समझदार
हैं वह तो मान जाएगा, वह तो संतति नियमन कर लेगा, परिवार नियोजन कर लेगा।
लेकिन जो गरीब हैं दीन-हीन हैं बे-पढे-लिखे ग्रामीण हैं, जो कुछ समझते ही
नहीं, वे बच्चे पैदा करते ही चले जाएगे और लम्बे अरसे मे परिणाम यह होगा कि
बुद्धिमानों के बच्चे कम हो जाएंगे और गैर-बुद्धिमानों के बच्चों की संख्या
बढ़ती जाएगी।
इसे दूसरी तरह से धर्म-गुरु भी उठाते हैं, वे कहते हैं कि मुसलमान सुनते
नहीं, ईसाई सुनते नहीं, कैथालिक सुनते नहीं वे कहते हैं कि 'संतति नियमन'
हमारे धर्म के विरोध में है। मुसलमान फिक्र नहीं करता तो हिंदु क्यों फिक्र
करेगा। हिदू धर्म-गुरु कहते हैं कि हिदू सिकुड़े और मुसलमान, ईसाई बढ़ते चले
जाएंगे। पचास साल में मुश्किल हो जाएगी, हिदू नगण्य हो जाएंगे, मुसलमान और
ईसाई बढ़ जाएंगे। इस बात में भी थोड़ा अर्थ है।
इन दोनों के संबंध में कुछ कहना चाहूंगा।
पहली बात तो यह है कि संतति नियमन कम्पलसरी, अनिवार्य होना चाहिए, वालेंटरी,
ऐच्छिक नहीं।
जब तक हम एक-एक आदमी को समझाने की कोशिश करेंगे कि तुम्हें संतति नियमन
करवाना चाहिए, तब तक इतनी भीड़ हो चुकी होगी कि संतति नियमन का कोई अर्थ नहीं
रह जाएगा।
एक अमेरिकी विचारक ने लिखा है कि इस वक्त सारी दुनिया में जितने डाक्टर
परिवार नियोजन में सहयोगी हो सकते हैं, अगर वे सब के सब एशिया में लगा दिए
जाएं और वे बिल्कुल न सोए चौबीस घंटे ऑपरेशन करते रहें, तो भी उन्हें एशिया
को उस स्थिति में लाने के लिए जहां जनसंख्या नियंत्रण में आ जाए पांच सौ वर्ष
लगेंगे। और पांच सौ वर्ष में तो हमने इतने नए बच्चे पैदा कर लिए होंगे, जिसका
कोई हिसाब नही रह जाएगा।
ये दोनों संभावनाएं नहीं हैं। दुनिया के सभी डाक्टर एशिया में लाकर लगाए नहीं
जा सकते। और पांच सौ वर्ष में हम खाली थोड़े ही बैठे रहेंगे। पांच सौ वर्षों
में तो हम जाने क्या कर डालेंगे? नहीं, यह संभव नहीं होगा। समझाने-बुझाने के
प्रयोग से तो सफलता दिखाई नहीं पड़ती।
संतति नियमन तो अनिवार्य करना पड़ेगा और यह अलोकतांत्रिक नहीं है।
एक आदमी की हत्या करने में जितना नुकसान होता है, उससे हजार गुना नुकसान एक
बच्चे को पैदा करने से होता है। आत्महत्या से जितना नुकसान होता है, एक बच्चा
पैदा करने से उससे हजार गुना नुकसान होता है।
संतति नियमन अनिवार्य होना चाहिए।
तब गरीब व अमीर और बुद्धिमान व गैर बुद्धिमान का सवाल नहीं रह जाएगा। तब
हिंदू मुसलमान और ईसाई का सवाल नहीं रह जाएगा।
यह देश बड़ा अजीब है। हम कहते हैं कि हम धर्मनिरपेक्ष हैं और फिर भी सब चीजों
मे धर्म का विचार करते हैं। सरकार भी विचार रखती है! 'हिंदू कोड बिल' बना हुआ
है, वह सिर्फ हिदू स्त्रियों पर ही लागू होता है! यह बड़ी अजीब बात है। सरकार
जब धर्म-निरपेक्ष है तो मुसलमान स्त्रियो को अलग करक सोच, यह बात ही गलत है।
सरकार को सोचना चाहिए लियो के संबंध में?
मुसलमान को हक है कि वह चार शादियां करे, किंतु हिंदू को हक नही! तो मानना
क्या होगा? यह धर्म-निरपेक्ष राज्य कैसे हुआ?
हिंदुओं के लिए अलग नियम और मुसलमान के लिए अलग नियम नहीं होना चाहिए।
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