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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


अभी डाक्टरों को हमने उल्टा काम सौंपा हुआ है कि वह लोगों की बीमारी मिटाए। अतः उनकी भीतरी आकांक्षा यह है कि लोग ज्यादा बीमार हों, क्योंकि उनका व्यवसाय बीमारी पर खड़ा है।
इसलिए रूस ने क्रांति के बाद जो काम किए उनमें एक काम यह था कि उन्होंने डाक्टर के काम को नेशनलाइज कर दिया। उन्होंने कहा कि डाक्टर का काम व्यक्तिगत निर्धारित करना खतरनाक है, क्योंकि वह ऊपर से बीमार को ठीक करना चाहेगा और भीतर आकांक्षा करेगा कि 'बीमार' बीमार ही बना रहे। कारण उसका धंधा तो किसी के बीमार रहने से ही चलेगा। इसलिए उन्होंने डाक्टर का धंधा, प्राइवेट प्रेक्टिस बिछल बंद कर दी। वहां डाक्टर को वेतन मिलता है। बल्कि, उन्होंने एक नया प्रयोग भी किया है। हर डाक्टर को एक क्षेत्र दिया जाता है, उसमें यदि लोग ज्यादा लोग बीमार होते हैं तो उससे एक्सप्लेनेशन मांगा जाता है, 'इस क्षेत्र में ज्यादा लोग बीमार कैसे हुए?' वहां डाक्टर को यह चिता करनी पड़ती है कि कोई बीमार न पड़े।

चीन में माओ ने आते ही वकील के धंधे को नेशनलाइज कर दिया, क्योंकि वकील का धंधा खतरनाक है। क्योंकि वकील का धंधा कांट्राडिक्टरी है। है तो वह इसलिए कि न्याय उपलब्ध कराए। और उसकी सारी चेष्टा यह रहती है कि उपद्रव हों, चोरियां हों, हत्याएं हों, क्योंकि उसका धंधा इसी पर निर्भर करता है।

धर्म-गुरु का धंधा भी बड़ा विरोधी है। वह चेष्टा करता है कि लोग शांत हों, आनंदित हों, सुखी हों, लेकिन उसका धंधा इस पर निर्भर करता है कि लोग अशांत रहें, दुःखी रहें, बेचैन और परेशान रहें। कारण, अशांत लोग ही उसके पास यह जानने आते हैं कि हम शांत कैसे रहें? दुःखी लोग उसके पास आते है कि हमारा दुःख कैसे मिटे? दीन-दरिद्र उसके पास आते हैं कि हमारी दीनता का अंत कैसे हो।
धर्म-गुरु का धंधा लोगों के बढ़ते हुए दुःख पर निर्भर है।
इसलिए जब भी दुनिया में दुःख बढ़ जाता है, तब धर्म-गुरु एकदम प्रभावी हो जाते हैं। अनैतिकता बढ़ जाए तो धर्म-गुरु एकदम प्रभावी हो जाता है, क्योंकि वह नीति का उपदेश देने लगता है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga