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संभोग से समाधि की ओर...
सौ डिग्री पर पहुंच गया है आदमियत का पागलपन। अब वह भाप बनकर उड़ना शुरू हो
रहा है। मत चिल्लाइए मत परेशान होइए। बनने दीजिए भाप। आप उपदेश देते रहिए और
आपके साधु-संत समझाया करें। अच्छी-अच्छी बातें और गीता की टीकाएं करते रहें।
करते रहो प्रवचन-टीका गीता पर, और दोहराते रहो पुराने शब्दों को। ये भाप बननी
बंद नहीं होगी। ये भाप बननी तब बंद होगी, जब जीवन की पूरी प्रक्रिया को हम
समझेंगे कि कहीं कोई भूल हो रही है, कहीं कोई भूल हुई है।
और वह कोई आज की भूल नहीं है। चार-पांच हजार साल की भूल है, जो शिखर
क्लाइमैक्स पर पहुंच गयी है; इसलिए मुश्किल खड़ी हुई जा रही है। ये प्रेम
रिक्त बच्चे जन्मते हैं और प्रेम से रिक्त हवा में पाले जाते हैं। फिर यही
नाटक ये दोहराएंगे-मम्मी और डैडी का पुराना खेल। वे फिर बड़े हो जाएंगे, फिर
वे यह नाटक दोहराएंगे, फिर वे विवाह में बांधे जाएंगे; क्योंकि समाज प्रेम को
आज्ञा नहीं देता। न मां पसंद करती है कि मेरी लड़की किसी को प्रेम करे। न बाप
पसंद करते हैं कि मेरा बेटा किसी को प्रेम करे। न समाज पसंद करता है कि कोई
किसी को प्रेम करे। वह कहता है प्रेम तो होना ही नहीं चाहिए। प्रेम तो पाप
है। वह तो बिल्कुल ही योग्य बात नहीं है। विवाह होना चाहिए। फिर प्रेम नहीं
होगा। सिर्फ फिर विवाह होगा। वही पहिया पूरा-का-पूरा घूमता रहेगा।
आप कहेंगे कि जहां प्रेम होता है, वहां भी कोई बहुत अच्छी हालत नहीं मालूम
होती। नहीं मालूम होगी, क्योंकि प्रेम को आप जिस भांति मौका देते हैं उसमें
प्रेम एक चोरी की तरह होता है, प्रेम एक सीक्रेसी की तरह होता है। प्रेम करने
वाले डरते हुए प्रेम करते हैं, घबराए हुए प्रेम करते हैं। चोरों की तरह प्रेम
करते हैं। अपराधी की तरह प्रेम करते हैं। सारा समाज उनके विरोध में है, सारे
समाज की आंखें उन पर लगी हुई हैं। सारे समाज के विद्रोह में वे प्रेम करते
हैं। यह प्रेम भी स्वस्थ नहीं है। प्रेम के लिए स्वस्थ हवा नहीं है। इसके
परिणाम भी अच्छे नहीं हो सकते।
प्रेम के लिए समाज को हवा पैदा करनी चाहिए। मौका पैदा करना चाहिए। अवसर पैदा
करना चाहिए। प्रेम की शिक्षा दी जानी चाहिए, दीक्षा दी जानी चाहिए।
प्रेम की तरफ बच्चों को विकसित किया जाना चाहिए, क्योंकि वही उनके जीवन का
आधार बनेगा, वही उनके पूरे जीवन का केंद्र बनेगा। उसी केद्र से उनका जीवन
विकसित होगा।
लेकिन अभी प्रेम की कोई बात ही नहीं है, उससे हम दूर खड़े रहते हैं आंखे बंद
किए खड़े रहते हैं। न मां बच्चे से प्रेम की बात करती है, न बाप। न उन्हें कोई
सिखाता है कि प्रेम जीवन का आधार है। न उन्हें कोई निर्भय बनाता है कि तुम
प्रेम के जगत में निर्भय होना। न कोई उनसे कहता है कि जब तक तुम्हारा किसी से
प्रेम न हो, तब तक तुम विवाह मत करना, क्योंकि वह विवाह गलत होगा, झूठा होगा,
पाप होगा। वह सारी कुरूपता की जड़ होगा और सारी मनुष्यता को पागल करने का कारण
होगा।
अगर मनुष्य-जाति को परमात्मा के निकट लाना है, तो पहला काम परमात्मा की बात
मत करिए। मनुष्य-जाति को प्रेम के निकट ले आइए। जीवन जोखिम भरा है। न मालूम
कितने खतरे हो सकते हैं। जीवन की बनी-बनायी व्यवस्था में न मालूम कितने
परिवर्तन करने पड़ सकते हैं। लेकिन न करेंगे परिवर्तन, तो यह समाज अपने ही हाथ
मौत के किनारे पहुंच गया है, इसलिए मर जाएगा। यह बच नहीं सकता। प्रेम से
रिक्त लोग ही युद्धों को पैदा करते हैं। प्रेम से रिक्त लोग ही अपराधी बनते
हैं। प्रेम से रिक्तता ही अपराध, क्रिमीनलिटी की जड है और सारी दुनिया में
अपराधी फैलते चले जाते हैं।
जैसे मैंने आपसे कहा कि अगर किसी दिन जन्म-विज्ञान पूरा विकसित होगा, तो हम
शायद पता लगा पाएं कि कृष्ण का जन्म किन स्थितियों में हुआ। किस समस्वरता
हारमनी में कृष्ण के मां-बाप ने, किस प्रेम के क्षण में गर्भ-स्थापन,
कंसेप्शन किया इस बच्चे का। किस प्रेम के क्षण में यह बच्चा अवतरित हुआ। तो
शायद हमें दूसरी तरफ यह भी पता चल जाए कि हिटलर किस अप्रेम के क्षण में पैदा
हुआ होगा। मुसोलिनी किस क्षण पैदा हुआ होगा। तैमूरलग, चंगेज खां किस अवसर पर
पैदा हुए होंगे।
हो सकता है यह पता चले कि चंगेज खां संघर्ष, घृणा और क्रोध से भरे मां-बाप से
पैदा हुआ हो। जिदगी भर फिर वह क्रोध से भरा हुआ है। वह जो क्रोध का मौलिक वेग
ओरिजिनल मोमेंटम है वह, उसको, जिंदगी भर दौड़ाए चला जा रहा है। चंगेज खां जिस
गांव में गया, लाखों लोगों को कटवा दिया।
तैमूरलंग जिस राजधानी मैं जाता, दस-दस हजार बच्चों की गर्दनें कटवा देता,
भाले में छिदवा देता। जुलूस निकालता तो दस हजार बच्चों की गर्दनें लटकी हुई
हैं भालों के ऊपर। पीछे तैमूर जा रहा है। लोग पूछते, यह तुम क्या करते हो? तो
वह कहता कि ताकि लोग याद रखें कि तैमूर कभी इस नगरी में आया था। इस पागल को
याद रखने की और कोई बात समझ नहीं पड़ती थी!
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