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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


हिटलर ने जर्मनी में साठ लाख यहूदियों की हत्या की! पांच सौ यहूदी रोज़ मारता रहा! स्टैलिन ने रूस में साठ लाख लोगों की हत्या की!
जरूर इनके जन्म के साथ कोई गड़बड़ हो गयी। जरूर ये जन्म के साथ ही पागल पैदा हुए। उन्माद इनके जन्म के साथ इनके खून मे आया और फिर वे इसको फैलाते चले गए।
पागलों में बड़ी ताकत होती है! पागल कब्जा कर लेते हैं और दौड़कर हावी हो जाते है-धन पर, पद पर, यश पर फिर वे सारी दुनिया को विकृत करते हैं। पागल ताकतवर होते हैं।
यह जो पागलों ने दुनिया बनायी है, यह दुनिया तीसरे महायुद्ध के करीब आ गयी है। सारी दुनिया मरेगी। पहले महायुद्ध मैं साढ़े तीन करोड़ लोगो की हत्या की गयी, दूसरे महायुद्ध में साढ़े सात करोड़ लोगों की हत्या की गयी, अब तीसरे में कितनी की जाएगी?

मैंने, सुना है, जब आइंस्टीन भगवान के घर पहुंच गया तो भगवान ने उससे पूछा कि मैं बहुत घबराया हुआ हूं। तीसरे महायुद्ध के संबंध में कुछ बताओगे? क्या होगा? उसने कहा, तीसरे के बाबत कहना मुश्किल है, चौथे के संबंध में कुछ जरूर बता सकता हूं। भगवान ने कहा, तीसरे के बाबत नहीं बता सकते तो चौथे के बाबत कैसे बताओगे? आइंस्टीन ने कहा एक बात बता सकता हूं, चौथे के बाबत, कि चौथा महायुद्ध कभी नहीं होगा; क्योंकि तीसरे में सब आदमी समाप्त हो जाएंगे। चौथे के होने की कोई संभावना नहीं है। और तीसरे के बाबत कुछ भी कहना मुश्किल है कि साढ़े तीन अरब पागल आदमी क्या करेंगें? तीसरे महायुद्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या स्थिति होगी!
प्रेम से रहित मनुष्य मात्र एक दुर्घटना है-मैं अंत में यह बात निवेदन करना चाहता हूं।
मेरी बातें बड़ी अजीब लगी होंगी; क्योंकि त्ररषि-मुनि इस तरह की बातें करते ही नहीं। मेरी बात बहुत अजीब लगी होगी। आपने सोचा होगा कि भजन-कीर्तन का कोई नुस्खा बताऊंगा। आपने सोचा होगा कि मैं कोई माला फेरने की तरकीब बताऊंगा। आपने सोचा होगा कि मै कोई आपको ताबीज दे दूंगा, जिसको बांधकर आप परमात्मा से मिल जाएं। ऐसी कोई बात मैं आपको नहीं' बता सकता हूं। ऐसे बताने सब वाले बेईमान हैं धोखेबाज हैं। समाज को उन्होंने बहुत बर्बाद किया है।

समाज की जिंदगी को समझने के लिए मनुष्य के पूरे विज्ञान को समझना जरूरी है। परिवार को, दंपत्ति को, समाज को-उसकी पूरी व्यवस्था को समझना जरूरी है कि कहां क्या गड़बड़ हुई है। अगर सारी दुनिया यह तय कर ले कि हम पृथ्वी में एक प्रेम का घर बनाएंगे, झूठे विवाह का नहीं। हां, प्रेम से विवाह निकले तो वह सच्चा विवाह होगा। हम सारी दुनिया को प्रेम का एक मंदिर बनाएंगे। जितनी कठिनाइयां होंगी, मुश्किले होंगी, अव्यवस्था होगी, उसको सभालने का हम कोई उपाय खोजेंगे। उस पर विचार करेंगे। लेकिन दुनिया से हम यह अप्रेम का जो जाल है, इसको तोड़ देंगे। और प्रेम की एक दुनिया बनाएंगे, तो शायद पूरी मनुष्य-जाति बच सकती है और स्वस्थ हो सकती है।

जोर देकर मैं आपको यह कहना चाहता हूं कि अगर सारे जगत में प्रेम के केंद्र पर परिवार बन जाए तो अति-मानव सुपरमैन की कल्पना जो हजारों वर्षों में रही है, आदमी को महामानव बनाने की-वह जो नीत्शे कल्पना करता है, अरविंद कल्पना करते है-यह कल्पना पूरी हो सकती है। लेकिन न तो अरविंद की प्रार्थनाओं से और न नीत्शे के द्वारा पैदा गए सिद्धांत से वह सपना पूरा हो सकता है।

अगर पृथ्वी पर हम प्रेम की प्रतिष्ठा को वापस लौटा लाएं, अगर प्रेम जीवन में वापस लौट आए सम्मानित हो जाए, अगर प्रेम एक आध्यात्मिक मूल्य ले ले, तो नए मनुष्य का निर्माण हो सकता है-नयी संतति का, नयी पीढ़ियों का, नए आदमी का। और वह आदमी, वह बच्चा, वह भ्रूण जिसका पहला अणु प्रेम से जन्मेगा विश्वास किया जा सकता है, आश्वासन दिया जा सकता है कि उसकी अंतिम सांस परमात्मा में निकलेगी।
प्रेम है प्रारंभ। परमात्मा है अंत। वह अंतिम सीढ़ी है।
जो प्रेम को ही नहीं पाता है, वह परमात्मा को पा ही नहीं सकता, यह असंभावना है।
लेकिन जो प्रेम में दीक्षित हो जाता है और प्रेम में विकसित हो जाता है और प्रेम की सांसों में चलता है और प्रेम के फूल जिसकी सांस बन जाते हैं और प्रेम जिसका अणु-अणु बन जाता है और जो प्रेम में बढ़ता जाता है, फिर एक दिन वह पाता है कि प्रेम की जिस गंगा में वह चला था वह गंगा अब किनारे छोड़ रही है और सागर बन रही है। एक दिन वह पाता है कि गंगा के किनारे मिटते जाते हैं
और अनंत सागर आ गया सामने। छोटी-सी गंगा की धारा थी गंगोत्री में छोटी-सी प्रेम की धारा होती है शुरू में। फिर वह बढ़ती है, फिर वह बड़ी होती है, फिर वह पहाड़ों और मैदानों को पार करती है और एक वक्त आता है कि किनारे छूटने लगते हैं।
जिस दिन प्रेम के किनारे छूट जाते हैं उसी दिन प्रेम परमात्मा बन जाता है। जब तक प्रेम के किनारे होते हैं तब तक वह परमात्मा नहीं होता है। गंगा नदी होती है, जब तक कि वह इस जमीन के किनारे से बंधी होती है। फिर किनारे छूटते हैं और वह सागर से मिल जाती है। फिर वह परमात्मा से मिल जाती है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga