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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


मां बच्चे को प्रेम नहीं कर सकती, जब तक उसने अपने पति को नहीं चाहा हो पूरे प्राणों से। क्योंकि वह बच्चे उसके पति की प्रतिकृतियां है, वह उसकी प्रतिध्वनिया हैं, यह पति ही फिर वापस लौट आया है। यह नया जन्म है उसके पति का। यह पति फिर पवित्र और नया होकर वापस लौट आया है।
लेकिन पति के प्रति अगर प्रेम नहीं है तो बच्चे के प्रति प्रेम कैसे होगा? ये बच्चे उपेक्षित हो गए हैं।

बाप भी तभी कोई बनता है, जब वह अपनी पत्नी को इतना प्रेम करता है कि पत्नी भी उसे परमात्मा दिखायी देती है, तब बच्चा फिर उसकी पत्नी का ही लौटता हुआ रूप है। पत्नी को जब उसने पहली दफा देखा था, तब वह जैसी निर्दोष थी, तब वह जैसी शांत थी, तब जैसी सुंदर थी, तब उसकी आंखें जैसी झील की तरह थीं; इन बच्चों में फिर वही आंखें वापस लौट आयी हैं। इन बच्चों में फिर वही चेहरा वापस लौट आया है। ये बच्चे फिर उसी छवि में नए होकर आ गए हैं-जैसे पिछले बसंत में फूल खिले थे, पिछले बसंत में पत्ते आए थे। फिर साल बीत गया। पुराने पत्ते गिर गए हैं। फिर नयी कोंपलें निकल आयी हैं। फिर नए पत्तों से वृक्ष भर गया है। फिर लौट आया बसंत। फिर सब नया हो गया है। लेकिन जिसने पिछले बसंत को ही प्रेम नहीं किया था वह इस बसंत को कैसे प्रेम कर सकेगा?
जीवन निरंतर लौट रहा है। निरंतर जीवन का पुनर्जन्म चल रहा है। रोज नया होता चला जाता है, पुराने पत्ते गिर जाते हैं, नए आ जाते हैं। जीवन की यह सृजनात्मकता, क्रिएटिविटी ही तो परमात्मा है, यही तो प्रभु है। जो इसको पहचानेगा, वही तो उसे पहचानेगा।

लेकिन न मां बच्चे को प्रेम कर पाती है, न पिता बच्चे को प्रेम कर पाता है और जब मां और बाप बच्चे को प्रेम नहीं कर पाते हैं तो बच्चे जन्म से ही पागल होने के रास्ते पर संलग्न हो जाते हैं। उनको दूध मिलता है, कपड़े मिलते है, मकान मिलते हैं, लेकिन प्रेम नहीं मिलता है। प्रेम के बिना उनको परमात्मा नहीं मिल सकता है; और सब मिल सकता है।

अभी रूस का एक वैज्ञानिक बंदरों के ऊपर कुछ प्रयोग करता था। उसने कुछ नकली बंदरिया बनायी। नकली बिजली के यंत्र हाथ-पैर उनके बिजली के तारों का ढांचा। जो बंदर पैदा हुए, उनको नकली माताओं के पास धर दिया गया। नकली माताओं से वे चिपक गए। वे पहले दिन के बच्चे थे, उनको कुछ पता नहीं कि कौन असली है, कौन नकली। वे नकली मां के पास ले जाए गार। पैदा होते ही उसकी छाती से जाकर चिपक गए। नकली दूध है, वह उनके मुंह में जा रहा है, वे पी लेते हैं। वह चिपके रहते हैं। वह बंदरिया नकली है, वह हिलती रहता, है, बच्चे समझते हैं मां उनको हिल-हिल कर झुला रही है। ऐसे बीच बंदर के बच्चों को नकली मां के पास पाला गया और उनको अच्छा दूध दिया गया मां ने उनको अच्छी तरह हिलाया-डुलाया। मां कूदती-फांदती, सब करती; वे बच्चे स्वस्थ दिखाई पड़ते थे। फिर वे बड़े भी हो गए। लेकिन वे सब बंदर पागल निकले। वे सब असामान्य, एबनार्मल साबित हुए! उनको...उनका शरीर अच्छा हो गया; लेकिन उनका व्यवहार विक्षिप्त हो गया!

वैज्ञानिक...दूध मिला...बड़े हैरान हुए कि इनको क्या हुआ? इनको सब तो मिला फिर ये विक्षिप्त कैसे हो गए?
एक चीज जो वैज्ञानिक की लेबोरेटरी में नहीं पकड़ी जा सकी थी, वह उनको नहीं मिली-प्रेम उनको नहीं मिला जो उन 20 बंदरों की हालत हुई वही साड़े तीन अरब मनुष्यों की हो रही है। झूठी मां मिलती है, झूठा बाप मिलता है। नकली मां हिलाती रहती है, नकली बाप हिलता रहता है और ये बच्चे विक्षिप्त हो जाते हैं। और हम कहते हैं कि ये शांत नहीं होते, अशांत होते चले जाते हैं। ये छुरेबाजी करते हैं, ये लड़कियों पर एसिड फेंकते हैं, ये कालेज में आग लगाते हैं, ये बस पर पत्थर फेंकते हैं, ये मास्टर को मारते हैं! मारेंगे, मारे बिना इनको कोई रास्ता नहीं।

अभी थोड़ा-थोड़ा मारते हैं कल और ज्यादा मारेंगे।
तुम्हारे कोई शिक्षक, तुम्हारे कोई नेता तुम्हारे कोई धर्मगुरु इनको नहीं समझा सकेंगे। क्योंकि सवाल समझाने का नहीं है, आत्मा ही रुग्ण पैदा हो रही है। यह रुग्ण आत्मा प्यास पैदा करेगी, यह चीजों को तोड़ेगी, मिटायेगी। तीन हजार साल से जो चलती थी बात, वह चरम परिणति क्लाइमैक्स पर पहुंच रही है। सौ डिग्री तक हम पानी को गरम करते हैं पानी भाप बनकर उड़ जाता है। निन्यानबे डिग्री तक पानी बना रहता है, फिर सौ डिग्री पर भाप बनने लगता है।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga