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संभोग से समाधि की ओर...
एक-एक परिवार में कलह है। जिसको हम गृहस्थी कहते हैं, वह संघर्ष, कलह, द्वेष,
ईर्ष्या और चौबीस घंटे उपद्रव का अड्डा बनी हुई है। लेकिन न मालूम हम कैसे
अंधे हैं कि इसे देखते भी नहीं हैं? बाहर जब हम निकलते हैं तो मुस्कराते हुए
निकलते हैं। घर के सब आंसू पोंछकर बाहर जाते है-पत्नी भी हंसती हुई मालूम
पड़ती है, पति भी हंसता हुआ मालूम पड़ता है। ये चेहरे झूठे हैं। ये दूसरों को
दिखाई पड़ने वाले चेहरे हैं। घर के भीतर के चेहरे बहुत आंसुओं से भरे इए हैं।
चौबीस घंटे कलह और संघर्ष में जीवन बीत रहा है। फिर इस कलह ओर संघर्ष के
परिणाम भी होंगे ही।
प्रेम के अतिरिक्त जगत के किसी व्यक्ति के जीवन में आत्मतृप्ति नहीं उपलब्ध
होती।
प्रेम जो है, वह व्यक्तित्व की तृप्ति का चरमबिंदु है। और जब प्रेम नहीं
मिलता है तो व्यक्तित्व हमेशा मांग करता है कि मुझे पूर्ति चाहिए! व्यक्तित्व
हमेशा तडूफता हुआ अतृप्त, हमेशप्त अधूरा, बेचैन, रहता है। यह तड़फता हुआ
व्यक्तित्व समाज में अनाचार पैदा करता है; क्योंकि तड़फता हुआ व्यक्तित्व
प्रेम को खोजने निकलता है। उसे विवाह मेँ प्रेम नहीं मिलता। वह विवाह के
अतिरिक्त प्रेम को खोजने की कोशिश करता है।
वेश्याएं पैदा होती हैं विवाह के कारण।
विवाह है मूल, रूट। विवाह है जड़, वेश्याओं के पैदा करने की। और अब तक तो
स्त्री वेश्याएं थीं, किंतु अब तो सभ्य मुल्कों में पुरुष वेश्याएं, मेल
प्रास्टीट्यूट उपलब्ध हैं। वेश्याएं पैदा होगी। क्योंकि परिवार में जो प्रेम
उपलब्ध होना चाहिए था, वह नहीं उपलब्ध हो रहा है। आदमी दूसरे घरों में झांक
रहा है उस प्रेम के लिए। वेश्याएं होंगी।
और अगर वेश्याएं रोक दी जाएंगी तो दूसरे परिवारों में पीछे के द्वारों से पाप
के रास्ते निर्मित होंगे। इसीलिए तो सारे समाज ने यह तय कर लिया है कि कुछ
वेश्याएं निश्चित कर दो, ताकि परिवारों का आचरण सुरक्षित रहे। कुछ स्त्रियों
को पीड़ा में डाल दो, ताकि बाकी स्त्रियां पतिवता बनी रहें, सती-सावित्री बनी
रहें।
लेकिन जो समाज ऐसे अनैतिक उपाय खोजता है, जिस समाज में वेश्याओं जैसी अनैतिक
संस्थाएं ईजाद करनी पड़ती हैं; जान लेना चाहिए कि वह पूरा समाज बुनियादी रूप
से अनैतिक होगा। अन्यथा यह अनैतिक ईजाद की आवश्यकता नहीं थी।
वेश्या पैदा होती है, अनाचार पैदा होता है, व्यभिचार पैदा होता है, तलाक पैदा
होते हैं। यदि तलाक न होता, न व्यभिचार होता, और न अनाचार होता, तो घर एक
चौबीस घंटे का मानसिक तनाव एंगजाइटी बन जाता।
सारी दुनिया में पागलों की संख्या बढ़ती गयी है। ये पागल परिवार के भीतर पैदा
होते हैं।
सारी दुनिया में स्त्रियां हिस्टीरिया और न्यूरोसिस से पीड़ित हो रही हैं।
विक्षिप्त उन्माद से भरती चली जा रही हैं। बेहोश होती हैं गिरती हैं चिल्लाती
हैं।
पुरुष पागल होते चले जा रहे हैं। एक घंटे मे जमीन पर एक हजार आत्महत्याएं हो
जाती हैं! और हम चिल्लाए जा रहे है-समाज हमारा बहुत महान् है,
त्रदृषि-मुनियों ने निर्मित किया है। हम चिल्लाए जा रहे हैं कि बहुत
सोच-समझकर समाज के आधार रखे गए हैं। कैसे ऋषि-मुनि और कैसे ये आधार! अभी एक
घंटा मैं बोलूं, तो इस बीच एक हजार आदमी कहीं छुरा मार लेंगे, तो कहीं ट्रेन
के नीचे लेट जाएंगे, तो कोई जहर पी लेगा! उन एक हजार लोगों की जिंदगी कैसी
होगी, जो हर घंटे मरने को तैयार हो जाते हैं?
आप यह मत सोचना कि वे जो नहीं मरते हैं वे बहुत सुखमय हैं। कुल जमा कारण यह
है कि वे मरने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। उनके सुख का कोई भी सवाल नहीं है,
वे कायर हैं। मरने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं तो जिए चले जाते हैं धक्के
खाए चले जाते हैं। सोचते हैं आज गलत है, तो कल ठीक हो जाएगा, परसों सब ठीक हो
जाएगा। लेकिन मस्तिष्क उनके रुग्ण होते चले जाते है।
प्रेम के अतिरिक्त कोई आदमी कभी स्वस्थ नहीं हो सकता है।
प्रेम जीवन में न हो तो मस्तिष्क रुग्ण होगा, चिता से भरेगा, तनाव से भरेगा।
आदमी शराब पिएगा, नशा करेगा कहीं जाकर अपने को भूल जाना चाहेगा। दुनिया में
बढ़ती हुई शराब शराबियों के कारण नहीं है। परिवार ने उस हालत में ला दिया है
लोगों को कि बिना बेहोश हुए थोड़ी देर के लिए भी रास्ता मिलना मुश्किल हो गया
है। तो लोग शराब पीने चले जाएंगे, लोग बेहोश पडे रहेगे, लोग हत्या करेंगे,
लोग पागल होते जाएंगे।
अमरीका में प्रतिदिन बीस लाख आदमी अपना मानसिक इलाज करवा रहे हैं। ये सरकारी
आकड़े हैं और आप तो भलीभांति जानते हैं सरकारी आकड़े कभी भी सही नहीं होते। बीस
लाख सरकार कहती है, तो कितने लोग इलाज करा रहे होंगे, यह कहना मुश्किल है। जो
अमरीका की हालत है, वह सारी दुनिया की हालत है।
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