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संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


और बड़े मजे की बात है कि जोर से हमे वही बात कहनी पड़ता है, जो सच्ची नहीं होती है। अगर तुम कहो कि मैं बहुत बहादुर आदमी हूं तो समझ लेना कि तुम पक्के नंबर एक के कायर हो।

अभी हिदुस्तान पर चीन का हमला हुआ। सारे देश में कवि पैदा हो गए जैसे बरसात में मेंढक पैदा हो जाते हैं। 'हम सोए हुए शेर हैं हमें मत छेडो!' कभी सोए हुए शेर ने कविता की है कि हमकी मत छेड़ो? कभी सोए शेर को छेड़कर देखो तो पता चल जाएगा कि छेड़ने का क्या मतलब होता है। लेकिन हमारा पूरा मुल्क कहने लगा है कि हम सोए शेर हैं। हम ऐसा कर देंगे, वैसा कर देंगे। चीन लाखों मील जमीन दबाकर बैठ गया है और हमारे सोए शेर फिर से सो गए कविता बंद करके। यह शेर होने का खयाल शेरों को पैदा नहीं होता। वह कायरों को पैदा होता है। शेर शेर होता है। चिल्ला-चिल्लाकर कहने की उसे जरूरत नहीं होती।

तो जितने जोर से हम कहते हैं ठीक उससे उल्टा हमारे भीतर होता है। इसलिए जोर से कुछ कहते समय जरा संभलकर कुछ कहना। अगर किसी से कहो कि तुम्हें बहुत प्रेम करता हूं, तो संदिग्ध है वह प्रेम। प्रेम कहीं बहुत किया जाता है! बस, किया जाता है या नहीं किया जाता है। लेकिन आदमी का मन पूरे वक्त नासमझियों के चक्कर में घूमता है।

कह तो दिया नसरुद्दीन ने कि कपड़े-कपड़े इन्हीं के हैं। लेकिन सुनकर वह स्त्री हैरान हुई। मित्र भी हैरान हुआ कि फिर वही बात! बाहर निकलकर उस मित्र ने कहा कि क्षमा करो, अब मैं लौट जाता हूं। गलती हो गई है कि तुम्हारे साथ आया। क्या तुम्हें कपड़े ही कपड़े दिखाई पड़ रहे हैं।

नसरुद्दीन ने कहा, मैं खुद भी नहीं समझ पाता। आज तक जिंदगी में कपड़े मुझे दिखाई नहीं पड़े। यह पहला ही मौका है! क्या हो गया है मुझे? मेरे दिमाग मे क्या गड़बड़ हो गई? पहले एक भूल हो गई थी, अब उससे उल्टी भूल हो गई। अब मैं कपड़े की बात ही नहीं करूंगा। बस एक मित्र के घर और मिलने चलना है। फिर हम वापस लौट चलेंगे। और एक मौका मुझे दो। नहीं तो जिंदगी भर के लिए अपराध मन में रहेगा कि मैंने मित्र के साथ कैसा दुर्व्यवहार किया।

मित्र साथ जाने को राजी हो गया। सोचा था अब और क्या करेगा भूल। बात खत्म हौ गई। दो ही बाते हो सकती थीं और दोनों बातें हो गई हैं। लेकिन उसे पता न था भूल करने वाले बड़े इनवेंटिव होते हैं नई भूल ईजाद कर लेते हैं। शायद आपको भी पता न हो।
वे तीसरे मित्र के घर गए। अब की बार तो नसरुद्दीन अपनी छाती को दबाए बैठा हैं कि कुछ भी हो जाए, लेकिन कपड़ों की बात न निकालूंगा।
जितने जोर से किसी चीज को दबाओ, उतने जोर से वह पैदा होनी शुरू होती है। किसी चीज को दबाना, उसे शक्ति देने का दूसरा नाम है। दबाओ तो और शक्ति मिलती है उसे। जितने जोर से आप दबाते हैं उस जोर में जो ताकत आपकी लगती है, वह उसी मे चली जाती है, जिसको आप दबाते हैं। ताकत मिल गईं उसे।

अब वह दबा रहा और पूरे वक्त पा रहा है कि मैं कमजोर पड़ता जा रहा हूं, कपड़े मजबूत होते जा रहे हैं। कपड़े जैसी फिजूल चीज भी इतनी मजबूत हो सकती है कि नसरुद्दीन जैसा ताकतवर आदमी हारा जा रहा है उसके सामने। जो किसी चीज से न हारा था, आज उसे साधारण से कपड़े हराए डालते हैं। वह अपनी पूरी ताकत लगा रहा है। लेकिन, उसे पता नहीं है कि पूरी ताकत हम उसके खिलाफ लगाते है, जिससे हम भयभीत हो जाते हैं जिससे हार जाते हैं, उससे हम कभी नहीं जीत सकते।

ताकत से नहीं' जीतना है, अभय सै जीतना है, 'फियरलेसनेस' से जीतना है। बड़े से बड़ा ताकतवर हार जाएगा, अगर भीतर भय हो तो। ध्यान रहे, हम दूसरे से कभी नहीं हारते, अपने ही भय से हारते हैं। कम से कम मानसिक जगत में तो यह पक्का है कि दूसरा हमें कभी नहीं हराता है, हमारा भय ही हमें हरा देता है।

नसरुद्दीन जितना भयभीत हो रहा है, उतनी ही ताकत लगा रहा है। और वह जितनी ताकत लगा रहा है, उतना भयभीत हुआ जा रहा है, क्योंकि कपड़े छूटते नहीं हैं। वे मन में बहुत चक्कर काट रहे हैं। तीसरे मकान के भीतर घुसा हैं। लगता है वह होश में नहीं है, बेहोश है। उसे न दीवालें दिख रही हैं न घर के लोग दिखाई पड़ रहे है। उसे केवल वही कोट-पगड़ी दिखाई पड़ रहे है। मित्र भी खो गया है, बस कपड़े हैं और वह है। हालांकि ऊपर से किसी को पता नहीं चलता है। जिस घर में गया, फिर आंखें टिक गई वही, उसके मित्र के कपड़े पर। पूछा गया, कौन है यह? लेकिन नसरुद्दीन जैसे बुखार में है, वह होश में नहीं है।

दमन करने वाले लोग हमेशा बुखार में जीते हैं कभी स्वस्थ नहीं होते। सप्रेशन जो है, वह मेंटल फीवर है। दमन जो है, वह मानसिक बुखार है।

दबा लिया है और बुखार पकड़ा हुआ है। हाथ-पैर कांप रहे हैं उसके। वह अपने हाथ-पैर रोकने को बेकार कोशिश कर रहा है। जितना रोकता है, वै उतने कांपे जा रहे है। कौन है यह?...यह तो अब उसे खुद भी याद नहीं आ रहा है। कौन है यह? शायद कपड़े हैं सिर्फ कपड़े! साफ मालूम पड़ रहा है कि कपड़े है, लेकिन यह कहना नहीं है। लगा जैसे बहुत मुश्किल में पड रहा है उसे याद करना। फिर बहुत मुश्किल से कहा, मेरे बचपन के मित्र हैं नाम है फलां। और रह गए कपड़े, सो कपड़े की तो बात ही नहीं करनी है! वे किसी के भी हों, उनकी बात नहीं उठानी है!

लेकिन बात उठ गई। जिसकी बात न उठानी हो, उसी की बात ज्यादा उठती है।
यह छोटी-सी कहानी क्यों मैंने कही? सैक्स की बात नहीं उठानी है और उसकी ही बात चौबीस घंटे उठती है। नहीं किसी सै बात करनी है, तो फिर अपने से ही बात चलती है। न करें दूसरे से, तो खुद ही करनी पड़ेगी बात अपने आप से। और दूसरे से बात करने में राहत भी मिल सकती है, खुद से बात करने में कोई, राहत भी नहीं हें। कोन्तु के बैल की तरह अपने भीतर हइा? घूमते रहो। रgएक्स का बात नहीं करनी है, उसकी बात ही नहीं उठानी है। मां अपनी बेटी के सामने नहीं उठतिा। बेटा अपने बाप के सामने नहीं उठाता, मित्र, मित्र के सामने नहीं उठाते! क्योंकि उठानी ही नहीं है बात। जो उठाते हैं वे अशिष्ट हैं। जबकि चौबीस घंटे सबके मन में वही बात चलती है।
सेक्स उतना महत्वपूर्ण नहीं हैं जितना कि बात न उठाने से महत्त्वपूर्ण हो गया है। सेक्स उतना महत्वपूर्ण बिल्कुल नहीं है, जितना कि हम समझ रहे हैं उसे।

लेकिन किसी भी व्यर्थ की बात को उठाना बंद कर दें तो वह सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाएगी। इस दरवाजे पर एक तख्ती लगा दें कि यहां झांकना मना है और यहां झांकना बड़ा महत्त्वपूर्ण हो जाएगा। फिर चाहे आपकी यूनिवर्सिटी में कुछ भी हो रहा हो, भले आइंस्टीन ही अगर गणित पर भाषण दे रहे हो-बेकार है सब। यह तख्ती ही महत्त्वर्प्ण हैँ, यही झांकने की जरूरत हौ जाएगी। हर विद्यार्थी यही चक्कर लगाने लगेगा। लड़के जरा जोर से लगाएंगे, लड़कियां जरा धीरे से।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga