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संभोग से समाधि की ओर...
नसरुद्दीन की आंखों में आंसू आ गए। क्षमा मांगने लगा। कहने लगा भूल हो गई।
जबान पलट गई। लेकिन जबान कभी नहीं पलटती है।
ध्यान रखना, जो भीतर दबा हो, वह कभी भी जबान से निकल जाता है। जबान पलटती कभी
भी नहीं। तो वह कहने लगा क्षमा कर दो, अब ऐसी भूल न होगी। कपड़े में क्या रखा
है! लेकिन कैसे निकल गई यह बात, मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि कपड़े किसके
हैं!
लेकिन आदमी वही नहीं कहता जो सोचता रहता है। कहता कुछ और है, सोचता कुछ और
है।
कहता था मैंने तो कुछ सोचा भी नहीं, कपड़े का तो मुझे खयाल भी नहीं आया, यह
बात कैसे निकल गई! जब कि घर से चलने में और घर तक आने में सिवाय कपड़े के उसको
कुछ भी खयाल नहीं आया था।
आदमी बहुत बेईमान है। जो उसके भीतर खयाल आता है,, कभी कहता भी नहीं है। और जो
बाहर बताता है, वह भीतर बिल्कुल नहीं होता है। आदमी सरासर झूठा है।
मित्र ने कहा, 'मै चलता हूं तुम्हारे साथ, लेकिन अब कपडे की बात न उठाना।'
नसरुद्दीन ने कहा, 'कपड़े तुम्हारे ही हो गए। अब मैं वापस पहनूंगा भी नहीं।
कपड़े में क्या रखा है?'
कह तो वह रहा था कि कपड़े में क्या रखा है, लेकिन दिखाई पड़ रहा था कि कपडे में
ही सब कुछ रखा है। वे कपड़े बहुत सुंदर थे। वह मित्र बहुत अद्भुत मालूम पड़ रहा
है। फिर चले रास्ते पर। और नसरुद्दीन फिर अपने को समझाने लगा कि कपड़े दे ही
दूंगा मित्र को। लेकिन जितना समझाता था उतना ही मन कहता था कि एक बार भी तो
पहने नहीं। दूसरे घर तक पहुंचे, संभलकर संयम से।
संयमी आदमी हमेशा खतरनाक होता है, क्योंकि संयमी का मतलब होता है कि उसने कुछ
भीतर दबा रखा है। सच्चा आदमी सिर्फ सच्चा आदमी होता है। उसके भीतर कुछ भी दबा
नहीं रहता है। संयमी आदमी के भीतर हमेशा दबा होता है। जो ऊपर से दिखाई देता
है, ठीक उल्टा उसके भीतर दबा होता। उसी को दबाने की कोशिश में वह संयमी हो
जाता है। संयमी के भीतर हमेशा बारूद है, जिसमें कभी भी आग लग जाए तो बहुत
खतरनाक है। और चौबीस घंटे दबाना पड़ता है उसे, जो दबाया गया है। उसे एक क्षण
को भी फुरसत दी छुट्टी
दी कि वह बाहर आ जाएगा। इसलिए संयमी आदमी को अवकाश कभी नहीं होता है-चौबीस
घंटे तक जागता है। नींद में बहुत गड़बड़ हो जाती है, सपने में सब बदल जाता है।
और जिसको दबाया है वह नींद में प्रकट होने लगता है। क्योंकि नींद में संयम
नहीं चलता। इसलिए संयमी आदमी नींद से डरता है। आपको पता है, संयमी आदमी कहता
है क्या सोना! इसके अलावा उसका कोई कारण नहीं है। नीदं तो परमात्मा का अद्भुत
आशीर्वाद है। लेकिन संयमी नींद से डरता है। क्योंकि जो दबाया है, वह नीद के
धक्के मारता है, सपने बनकर आता है।
किसी तरह संयम-साधना करके, वह बेचारा नसरुद्दीन उस दूसरे मित्र के घर में
घुसा। दबाए हुए मन को। सोच रहा है कि कपड़े मेरे नहीं, मित्र के ही हैं। लेकिन
जितना वह कह रहा है कि मेरे नहीं है, मित्र के ही हैं उतने ही कपड़े उसे अपने
मालूम पड़ रहे हैं।
इनकार बुलावा है। मन में भीतर 'ना' का मतलब 'हां' होता है। जिस बात को तुमने
कहा 'नहीं', मन कहेगा 'हां' यही।
मन कहने लगा, कौन कहता है, कपड़े मेरे नहीं हैं? और नसरुद्दीन की ऊपर की
बुद्धि समझाने लगी कि नहीं कपड़े तो मैंने दे दिए मित्र को। जब वे भीतर घर में
गए तब नसरुद्दीन को देखकर कोई समझ भी नहीं सकता था, वह भीतर कपड़े से लड़ रहा
है। घर में मित्र मौजूद नहीं था, उसकी सुंदर पत्नी मिली। उसकी आंखें एकदम अटक
गईं मित्र के ऊपर। नसरुद्दीन को फिर धक्का लगा। उस सुंदर स्त्री ने उसे कभी
इतने प्रेम से नहीं देखा था। पूछने लगी ये कौन हैं? कभी देखा नहीं इन्हे।
नसरुद्दीन ने सोचा, इस दुष्ट को कहां साथ ले आया। जो देखो, इसको देखता है। और
पुरुषों के देखने तक गनीमत थी। लेकिन सुंदर स्त्रियां भी उसी को देख रही हों
तो फिर बहुत मुसीबत हो गई। प्रकट में कहा, मेरे मित्र हैं, बचपन के साथी है।
बहुत अच्छे आदमी हैं। रह गए कपड़े, सो उन्हीं के हैं मेरे नहीं हैं। लेकिन
कपड़े अगर उन्हीं के थे तो कहने की जरूरत क्या थी? कह गया तब पता चला कि भूल
हो गई।
भूल का नियम है कि वह हमेशा अतियों पर होती है। एक्सट्रीम पर होती है। एक
एक्सट्रीम से बची तो दूसरे एक्सट्रीम पर हो जाती है। भूल घड़ी के पेंडुलम की
तरह चलती है। एक कोने से दूसरे कोने पर जाती है, बीच में नहीं रुकती। भोग से
जाएगी तो एकदम त्याग पर चली जाएगी। एक बेवकूफी से छूटी, दूसरी बेवकूफी पर
पहुंच जाएगी। जो ज्यादा भोजन से बचेगा वह उपवास करेगा। और उपवास ज्यादा भोजन
से भी बदतर है। क्योंकि ज्यादा भोजन भी आदमी दो एक बार कर सकता है, लेकिन
उपवास करने वाला आदमी दिनभर मन ही मन भोजन करता है। वह चौबीस घंटे भोजन करता
है।
एक भूल से आदमी का मन बचता है तो दूसरी भूल पर चला जाता है। अतियों पर वह
डोलता है। एक भूल की थी कि कपड़े मेरे हैं, अब दूसरी भूल हो गई कि कपड़े उसी
के हैं, तो साफ हो जाता है कि कपड़े उसके बिल्कुल नहीं है।
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