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ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर

संभोग से समाधि की ओर

ओशो

प्रकाशक : डायमंड पब्लिकेशन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :440
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7286
आईएसबीएन :9788171822126

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संभोग से समाधि की ओर...


जिंदगी का ड्रामा, वह जो जिदगी की कहानी है, वह बहुत उलझी हुई है। वह इतनी आसान नहीं है। खाट पर मरने वाले हमेशा के लिए मर जाते है, गोली खाकर मरने वालों का मरना बहुत मुश्किल हो जाता है।

सुकरात से किसी ने पूछा उसके मित्रों ने कि अब तुम्हें जहर दे दिया जाएगा, अब तुम मर जाओगे तो हम तुम्हारे गाड़ने की कैसी व्यवस्था करेंगे? जलाएं, कब बनाएं क्या करे? सुकरात ने कहा, पागलो, तुम्हें पता नहीं है कि तुम मुझे नहीं गाड़ सकोगे। तुम जब सब मिट जाओगे, तब भी मैं जिदा रहूंगा। मैंने मरने की तरकीब जो चुनी हैँ वह हमेशा जिंदा रहने वाली है।
तो वह मित्र अगर कही हो तो उनको पता होना चाहिए जल्दी न करें। जल्दी में नुकसान हो जाएगा उनका। मेरा कुछ होने वाला नहीं है। क्योंकि जिसको गोली लग सकती है, वह मैं नहीं हूं और जो गोली लगने के बाद भी पीछे बच जाता है, वही हूं। तो वह जल्दी न करें। और दूसरी बात यह है कि वह घबराएं भी न। मैं हर तरह की कोशिश करूंगा कि खाट पर न मर सकू। वह मरना बड़ा गड़बड़ है। वह बेकार ही मर जाना है। वह निरर्थक मर जाना है। मर जाने की भी सार्थकता चाहिए।

और तीसरी बात यह कि वह दस्तखत करने से न घबराएं न पता लिखने से घबराएं। क्योंकि अगर मुझे लगे कि कोई आदमी मारने को तैयार हो गया है तो वह जहां मुझे बुलाका मैं चुपचाप बिना किसी को खबर किए वहां आने को हमेशा तैयार हूं ताकि उसके पीछे कोई मुसीबत न आए।
लेकिन ये पागलपन सूझते हैं। इस तरह के धार्मिक और जिस बेचारे ने लिखा है, उसने यही सोच कर लिखा है कि वह धर्म की रक्षा कर रहा है। उसने यही सोचकर लिखा है कि मैं धर्म को मिटाने की कोशिश कर रहा हूं वह धर्म की रक्षा कर रहा है! उसकी नीयत में कही कोई खराबी नहीं है! उसके भाव बड़े अच्छे और बड़े धार्मिक हैं। ऐसे ही धार्मिक लोग तो दुनिया को दिक्कत में डालते रहे हैं। उनकी नीयत बड़ी अच्छी है, लेकिन बुद्धि मूढ़ता की है।

तो हजारों साल से तथाकथित नैतिक लोगों ने जीवन के सत्यों को पूरा-पूरा प्रकट होने में बाधा डाली है, उसे प्रकट नहीं होने दिया। नहीं प्रकट होने के कारण एक अज्ञान व्यापक हो गया और उस अज्ञान-अंधेरी रात में हम टटोल रहे हैं भटक रहे हैं गिर रहे हैं। और वे मॉरल टीचर्स, वे नीतिशास्त्र के उपदेशक, हमारे इस अंधकार के बीच में मंच बनाकर उपदेश देने का काम करते रहते है!

यह भी सच है कि जिस दिन हम अच्छे लोग हो जाएंगे, जिस दिन हमारे जीवन में सत्य की किरण आएगी, समाधि की कोई झलक आएगी; जिस दिन हमारा सामान्य जीवन भी परमात्म-जीवन में रूपांतरित होने लगेगा उस दिन उपदेशक व्यर्थ हो जाएंगे। उसकी कोई जगह नहीं रह जाने वाली है। उपदेशक तभी तक सार्थक हैं जब तक लोग अंधेरे में भटकते हैं।

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Bakesh  Namdev

mujhe sambhog se samadhi ki or pustak kharidna hai kya karna hoga