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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...


चाय पीने के बाद उन्हें लगा कि लगभग सभी थक गए हैं। कनु दा चारपाई पर आधे लेट गए। उन्हें उठने में जल्दी करने की जरूरत अब नहीं महसस हो रही थी।

"वापस लौटने में अंधेरा न हो जाए। इजाजत हो तो वो जगह आपको दिखा दूं?" वन अधिकारी ने कहा।

"हां, जरूर।" दयाल सबसे पहले उठ गया।

"अगर इजाजत हो तो मैं कुछ बातें, इस वाकये से संबंधित, विस्तार से..."

जीवन राय ने वन अधिकारी को रोक दिया, "बाकी बातों का हम खुद अपने ढंग से पता लगाएंगे।"

वो जगह ज्यादा दूर नहीं थी। सिर्फ पीठ और कंधे भर बाकी थे एक घर के। उसी पीठ से सटाकर तेईस लोग खड़े कर दिए गए थे और उन्हें गोली मार दी गई थी। दयाल ने फोटो खींचना शुरू कर दिया। महादेव भाई और जेतली झुकंकर जमीन देखने लगे, देर तक। वहां धूल और सड़े पत्तों के अलावा और कुछ नहीं था।

“साहब, वहां अब खून वगैरह का पता नहीं लगेगा। खून तो उसी रात चींटियों ने खत्म कर दिया।" वन अधिकारी ने कहा।

"चींटियां?"

“जी, लाखों की तादाद में निकल आती हैं।"

महादेव भाई एकदम उठ गए। गोलियों से थोड़ी और जख्मी हो गई दीवार देखते हुए बोले, "बयान ले लिए जाएं?"

"मगर वे बोलते कहां हैं?"

"हां, शायद दहशत में हैं या चिढ़े हुए।"

"आप गांववालों के बयान लेना चाहेंगे?" वन अधिकारी ने उत्साहित होकर पूछा।

"बयान? इनके सामने जो बयान हुए हैं वो तो हम छाप ही चुके हैं।" शंकरलाल ने थोड़ी तिक्तता के साथ कहा।

"कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम लोग नाहक अंधेरे कमरे में काली बिल्ली खोजने निकल पड़े हों?" जेतली ने सारे अभियान पर प्रश्नचिह्न लगा दिया, "हो सकता है, घटना उतनी और वैसी ही हो, जितनी अब तक छपी है? आखिर इसमें और गुत्थी हो भी क्या सकती है?"

शंकरलाल थोड़ी देर सोचते रहे, फिर वन अधिकारी से बोले, "आप इनके बयान दिलवाने में मदद करेंगे?"

"खुशी से, थोड़ी-सी चतुराई से ये वश में आते हैं। आप अभी बयान लेंगे?"

सभी ने एक-दूसरे की तरफ देखा। हर किसी की आंखों में हल्का-सा यह अपराध-बोध था कि अंततः उन्होंने पीड़ितों से संवाद के लिए एक अफसर को ही माध्यम बनाया।

बयान खत्म होते-होते धूप उतर गई थी। सिर्फ आसमान का पीला गंदलापन और ज्यादा बढ़ गया था।

"अभी काफी वक्त लगेगा वापसी में। अंधेरा हो जाएगा।" जीवन राय ने चिंता प्रकट की।

लोगों का ध्यान बंटा। बात सही थी। वापसी में काफी वक्त लगना था। अंधेरा हो जाने पर वापसी की वह यात्रा बहुत सुखद नहीं होगी, यह सभी को लगा।

"वापसी के लिए..." वन अधिकारी ने तत्परता से कहा, "वही लड़का साथ रहेगा। आप चिंता न करें।"

"चिंता नहीं है कोई। उसे बुला लीजिए।" शंकरलाल ने हल्की कठोरता से कहा और उठ गए।

आसपास खड़ी औरतों से वन अधिकारी ने कुछ कहा। वे तुरन्त वहां से हट गई। ऊपर आसमान की उस बासी धुंध में आसपास ही कहीं से एक तीखी आवाज झींगुरों की उठकर लटक गई, एकरस, कचोटनेवाली।

वापसी में सचमुच अंधेरा कुछ ज्यादा ही तेजी से पास आने लगा। उस अंधेरे में एक ऐसी धूर्तता थी जो किसी को भी बहुत अच्छी नहीं लग रही थी। उन्हें लगा वह गंदे शरीरवाला अंधेरा बहुत जल्दी ही उनसे सटकर चलना शुरू कर देगा।

"कोई छोटा रास्ता नहीं है?" जेतली ने पूछा। साथ चल रहे युवक ने कुछ नहीं कहा सिर्फ उनकी तरफ देखा। जेतली ने अनचाहे ही सहमकर उधर से आंखें हटा लीं। उन्हें ताज्जुब हुआ कि एकाएक उसकी निगाह के बाद ही जाते वक्त देखे गए चीते के निशान क्यों याद आ गए? वे निशान सभी को एक साथ याद आए। इससे जुड़े अनजाने डर से लज्जित अपने को निरापद महसूस करने के लिए वे जोर-जोर से बोलने लगे।

"यह यात्रा भी याद रहेगी।"

"कैसा रहस्यलोक लगता है सब कुछ।"

“यहीं ये लोग पूरी जिंदगी बिता देते हैं। इसी तरह के अंधेरे और खौफ से लड़ते हुए।"

"खौफ से लड़ते हुए!" कनु दा ने दुहराया और दरख्तों के उस पार देखने की कोशिश की। जो अंधेरा अभी काफी दूर था वह अगले दरख्तों के उस पार आ खड़ा हुआ था। वे अपने-आप से बोले, "इतनी जल्दी अंधेरा हो गया?"

"अभी तो और अंधेरा होगा। कोई डेढ़ घंटे का सफर अभी बाकी है।" शंकरलाल ने कहा।

जेतली आसपास बिखरे पत्थर के टुकड़े देख जरूर रहे थे लेकिन उनके प्रति कुतूहल मर गया था। उन्होंने सिगरेट सुलगाने की कोशिश की। तीली जली नहीं। वह फेंककर दो तीलियां इकट्ठी जलाई।

उन दो तीलियों से वहां उजाले की एक गुफा-सी बन गई और तीलियां बझाने के बाद उन्होंने देखा, वह अंधेरा जो अभी अगले पेड़ों के पीछे था, ठीक उनके सामने खड़ा है, उनके कंधे पर अपनी कुहनी गड़ाए।

दूर अंधरे में कुछ चमक-सा गया। सबने देखा।

जेतली धीरे से बोले, "वहां है क्या?"

"शायद जुगनू होगा।"

"शेर तो नहीं ही होगा।"

"पत्रकारों को ही खाएगा।" महादेव भाई ने कहा।

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