कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
|
7 पाठकों को प्रिय 2 पाठक हैं |
कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
“आप तशरीफ रखें।"
“ठीक है, बैठ जाऊँगा। मैं चाहता हूं, आप बयान दे दें। क्या बहुत तकलीफ है?"
कप्तान ने पूछा।
"हां। दिल में।" हमदम साहब धीरे से बोले, “जनाब, मैं अर्ज करूं, इस मुल्क को
किसी बहुत बड़ी साजिश का शिकार बनाया जा रहा है। मैं जानता हूं, आप एक
ईमानदार और सच्चे सफसर हैं। आप खुद जानते होंगे। इसी की तकलीफ है मेरे दिल
में।"
"वो ठीक है, मगर इस गोलीकांड के बारे में आप तफसील से हमें बताएं।"
“गोलीकांड! जी हां। देखिए, इस वक्त हमारे मुल्क के वजीरे आजम जनाब राजीव
गांधी साहब पर चारों तरफ से हमले हो रहे हैं। अपोजीशन जनाब, विदेशी ताकतों की
कठपुतली बनकर हमारे वजीरे आजम को हटाना चाहता है। उनकी कोशिशें हैं जनाब कि
मुल्क टूट जाए। इसीलिए उन्होंने राजीव गाँधी पर गंदे-गंदे इल्जामात लगाना शरू
कर दिया है। जनाब, आप तो जानते हैं, इतने बड़े खानदान के वारिस और सारे मुल्क
के मालिक हैं वो, भला तोपों-पनडुब्बियों के कमीशन से उनका क्या बनता है
जनाब।"
"सही है जनाब, लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि आप लोगों को गोलियां किसने
मारी?" कप्तान ने अपने धीरज को बटोरकर फिर पूछा।
"अल्लाह की मर्जी हुजूर, आप जैसा नेकदिल इंसान बखूबी जानता है।" हमदम साहब ने
थोड़ी सांस लेकर कमजोर आवाज में अपनी बात फिर शुरू की, “जनाब, लोग कहते हैं
कि सूब-ए-उत्तर परदेश के वजीरे आला जनाब वीरबहादुर सिंह साहब ने, खुदा उन्हें
लंबी उम्र दे, मेरठ में दंगे करवा दिए, वो भी इसलिए कि बोफोर्स की तरफ से
लोगों का ध्यान हट जाए और अम्नोकानून के नाम पर विशनाथ परतापसिंह के बागी
जलसे रोके जा सकें। मैं पूछता हूं हुजूर कि उसमें बुरा क्या था? आखिर ये
सियासत है जनाब, कोई हंसी-खेल नहीं है। अगर इस मुल्क को टुकड़े होने से बचाने
के लिए और अपने हरदिलअजीज राजीव गाँधी साहब के हाथ मजबूत करने के लिए मेरठ से
चंद कुर्बानियां मांगी गईं तो बुरा क्या था? रिआया का फर्ज है वतन के लिए
कुर्बानी देना। जनाब, शायर ने कहा है-सबसे पहले मर्द बन।"
कप्तान ने बेचैनी से बालों में उंगलियां घुसाई और सिर को इस तरह झटका दिया,
जैसे बालों की गर्द झाड़ रहा हो, फिर हलकी खीझ के साथ बोला, "देखिए भाई, मैं
जो पूछ रहा हूं वो बताइए।"
"जी? बेहतर है। बेहतर है हुजर!" हमदम साहब खासे ही निराश हो गए।
"क्या यह सच है कि आप लोगों को यहां लाकर पी. ए. सी. वालों ने गोली मारी?"
"जनाब, फिरकापरस्त और मुल्क को तोड़ने वाली ताकतें कहां नहीं हैं हुजूर!
"मैं अर्ज करना चाहता हूं।"
कप्तान ने बहुत लंबी सांस खींचकर कहा, "हमदम साहब, मेरा खयाल है, अब आप आराम
करिए।"
“जी? जी हां, जी हां। शुक्रिया।" हमदम साहब के चेहरे पर मायूसी और गहरी हो
गई।
अस्पताल में उन्हें ज्यादा दिन नहीं लगे। कंधे से लेकर पसलियों के नीचे तक
पलस्तर में लिपटे हुए वे वाहर आए और मेरठ जाने वाली बस पर बैठ गए। मलियाना तक
पहुंचते-पहुंचते उन्होंने यह फैसला कर लिया था कि मलियाना में बीवी-बच्चों से
मिलने के बाद वे जल्दी से जल्दी जनाव गवर्नर साहब से मुलाकात करेंगे। पी. ए.
सी. के द्वारा छिहत्तर आदमियों की गाजियाबाद सीमा में हत्या को लेकर बहुत-से
अखबारों ने शोर मचाना शुरू कर दिया था। इस मामले में उन्हें पहल करनी होगी,
यह उनकी जिम्मेदारी है।
मलियाना वैसा ही नहीं था, जैसा उन्होंने छोड़ा था, बल्कि कहना चाहिए, जैसा
मलियाना उन्होंने जिया था। मलियाना की मुख्य सड़क पर सीमा के पास वाली पुलिया
के ऊपर दोनों तरफ पी. ए. सी. के कुछ सिपाही बैठे थे। खड़खड़े वाले ने उन्हें
मलियाना से थोड़ा पहले दाहिनी ओर मुड़ने वाली सड़क के मोड़ पर उतार दिया था।
वहां से पैदल रास्ता ज्यादा नहीं था। उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि इस तरह
कस्बा शुरू होते ही ये सिपाही उन्हें मिल जाएंगे। अनचाहे ही वे सहम गए। लेकिन
अब पीछे लौटना भी मुमकिन नहीं था। उन्होंने अपने कलेजे को मजबूत किया और सधे
कदम पुलिया की तरफ बढ़ चले।
वे अजब बदइख्लाक किस्म के सिपाही थे। बजाय इसके कि वे अपने काम से काम रखते,
उन्होंने हमदम साहब को घूरना शुरू कर दिया। उन निगाहों से बिंधे हुए चलना ऐसा
लगा, जैसे उन्हें किसी ने तीरों से बेधकर उठा लिया हो। सिपाही शायद कौतुक के
लिए ज्यादा उत्सुक थे। जब वे ठीक उनके बीचोबीच पहुंच गए तब एक सिपाही ने बेहद
अभद्र लहजे में आवाज दी, “एई मियां जी!"
"मुल्लाजी कहो, मुल्लाजी। कहां चले?"
"आपने कुछ फर्माया?" हमदम साहब ने रुककर बेहद संजीदगी से पूछा।
सिपाही हंसने लगे, “अबे, शायरी बोलता है!"
हंस चुकने के बाद एक सिपाही ने गंभीरता से पूछा, "कहां जा रहे हो?"
"जी? घर जा रहा हूं जनाब!"
"कहां से आए हो?"
“जी, अस्पताल से। चोट लग गई थी।"
|