कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
वे रंग-बिरंगी मालाएं, उन्होंने फिर छुईं तक नहीं। गुमसुम-से कुछ देर बैठे रहे, फिर मंच से नीचे उतरकर, अपने कमरे में बंद हो गए। फिर कई दिनों तक उन्होंने किसी से कोई बात नहीं की।
कभी-कभी अकेले बाज़ार की तरफ घूमने निकल जाते। लौटने पर कहते, "आज चंद्रशेखर आज़ाद को मैंने राशन की दुकान पर कतार में खड़ा देखा था, भीड़ बहुत थी, इसलिए बातचीत न हो पाई।''
बिस्तर से, सुबह उठते ही कभी कहते बहके-बहके से, "कल रात सरदार भगत सिंह से जमकर बातें हुईं। कहते थे, 'अंग्रेजों से फिर लडूंगा।'...मैं कितना समझाता रहा, पर वे मानें तब न ! लड़ने-झगड़ने पर उतारू हो गए..." वे हंसने लगते, अपने पोले मुंह से-ही, ही, ही !
खाते-खाते कभी हाथ का कौर रोक लेते, "यशवंती ठीक कहती थी, आख़िर मैंने क्या दिया उसे? जिंदगी-भर संघर्ष करती रही बेचारी... मरते समय केवल हड्डियों की माला-सी रह गई थी... कभी देखी थीं सुबोध, तुमने उसकी सूखी कलाइयां !"
थाली परे छोड़कर वे उठ जाते और हाथ धोकर फिर अपने अंधेरे कमरे में छिप जाते।
बच्चों से भी अब कम बातें करते। समाचार-पत्र खोलकर सामने रख लेते और घंटों तक अपलक उसकी ओर ताकते रहते। सारी रात अंधेरे में बैठे-बैठे बिता देते... घर के लोगों को ही अब उनसे डर लगने लगा था। बच्चे उनके कमरे में जाने से कतराते थे।
एक दिन सुबह-सुबह दीपू अख़बार का पन्ना फड़फड़ाता हुआ, दौड़ता-दौड़ता उनके पास आया। बड़े उत्साह से बोला, “देखो दादा जी, इसमें छपा है सरकार उन स्वाधीनता-सेनानियों को मुफ्त में कालापोनी की सैर करने भेज रही है, जो कभी सज़ा झेलने वहां गए थे ! आप तो इत्ते बरस रहे वहां ! घूम आइए न...! मैं भी आपके साथ चलूंगा, आपका नौकर बनकर...।” वह हंसने लगा था, पर प्रत्युत्तर में उनसे कुछ भी नहीं कहा गया। वे विस्फारित नेत्रों से केवल समाचार-पत्र की ओर देखते रहे।
उस सारे दिन सागर की तूफानी लहरें चट्टानों से टकरा-टकराकर टूटती रहीं। टुकड़ा-टुकड़ा होकर जल की अनगिनत बूंदें छितराती रहीं। रात को भी पलकें उसी तरह खुली रहीं। एक क्षण के लिए भी वे सो न पाए। सेल्युलर जेल की ऊंची-ऊंची दीवारें... छोटी-छोटी अनगिनत अंधेरी काल-कोठरियां... बाबा भान सिंह की चीखें... कोल्हू में सावरकर का सारा दिन जुता रहना... किशोर नानी गोपाल के शव का सागर की सतह पर तैरना...
क्या वह सब इसी दिन के लिए था ! चिथड़ों से बना एक मानचित्र ! कटा-फटा एक अधूरा सपना...
भीख मांगते बच्चे ! दंगों से जले घर ! सड़कों पर पड़े शव ! चारों ओर कचरे के ढेर ! पशु और आदमी एक ही पोखर से पानी पी रहे हैं...
भ्रष्टाचार की कीचड़ में गले-गले तक डूबा देश !
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर