कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
कहां विलीन हो गए वे सपने?
कहां रह गया खोट?
क्या पता हमारे त्याग, हमारी तपश्चर्या में ही कुछ कमी रह गई हो? शायद इसीलिए यात्रा अधूरी रही !
एक दिन सुबह-सुबह देखा बच्चों ने कि बाबा पोटली बांध रहे।
कहां जा रहे हैं, बाबा?” ऋचा ने डरते-डरते पूछा।
"तीर्थ-यात्रा के लिए।”
''बनारस, काशी?"
"नहीं...!"
तो फिर ऋषिकेश-हरिद्वार...?"
"नहीं...!"
“बद्रीनाथ-केदारनाथ...?"
"नहीं-नहीं, कालापानी।”
"...कालापानी?"
"हां, बेटे, हां !” सामान समेटते-समेटते वे कहते गए, जैसे स्वयं को सुना रहे हों, "पहली बार की तपस्या लगता है अधूरी रह गई रे... कौन जाने, इस बार शायद पूरी हो जाए..."
उठते-उठते वे गिर पड़े। बच्चे उन्हें संभालते, उससे पहले ही उनकी पुतलियों का रंग सफेद पड़ गया। वे फिर हिले नहीं, डुले नहीं, बस जैसे थे वैसे ही पड़े रहे !
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर