कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
कुत्ता
वह परेशान होकर, इस गंभीरता से छत पर खड़ा हो गया जैसे 'आत्महत्या करने वाला हो। दूर किसी पॉटरी मिल की धुआं उगलती, काली चिमनियों की ओर देखता हुआ सोचने लगा कि अब क्या किया जाए?
नीचे पत्नी रो रही थी। उसने कल रात से खाना नहीं खाया था और आज फिर सत्याग्रह कर बैठी थी। कुत्ता बासी, रूखी रोटियां चबाने के बाद, आंगन में पेड़ के नीचे पांव पसारे, आंखें मूंदे निश्चिंत लेटा था। कभी-कभी अपनी पूंछ से भिनभिनाती सफेद मक्खियां उड़ा लेता था, फिर टाट के चिथड़े की तरह निर्जीव-सा पड़ा रहता।
कल भी इसी तरह झगड़ा हुआ था-कुत्ते को लेकर वह सीढ़ियों से नीचे उतर भी न पाया था कि पत्नी कपड़े धोने वाले मुग्दर को नचाती हुई कुत्ते पर पिल पड़ी थी। इस अप्रत्याशित 'आक्रमण से कुत्ता घबरा उठा था। पहले तो उसे सूझा ही नहीं कि किधर भागे, फिर एकाएक वह पिछले दोनों पांवों के बीच पूंछ सिकोड़े, कैं-कैं करता हुआ मंदिर वाली गली की ओर निकल भागा था।
इस दुर्घटना के पश्चात् घंटा भी न बीता होगा कि उसने देखा-बच्चे कुत्ते को मफलर से बांधकर फिर घर में घसीट लाए हैं और मां की आंख बचाकर, सीढ़ियों के नीचे गलियारे में हलवा खिला रहे हैं।
केसु उसके ऊपर घोड़े की तरह बैठा है। इना ज़ोर-ज़ोर से उसके कान खींच रही है। पर वह गर्दन झुकाए, आंखें मूंदे प्रश्नचिह्न की तरह पड़ा है।
और पास ही किवाड़ के सहारे खड़ी दो-तीन पड़ोसने अपने तेवर चढ़ाती हुई परस्पर कह रही हैं, "देख्या, मुंहजलेनू एनांने सिर ते चढ़ा रख्या है। सारी रात भौंकदा रैनदा है। तां सौन भी नहीं देंदा। जदनों ऐ कुत्ता आया है, मोहल्ले विच सब दी नींद हराम हो गई ए। मरदा भी नहीं ए सिर-सड़या..."
कुत्ते के प्रश्न पर पत्नी का सारी पड़ोसनों से हजार बार झगड़ा हो चुका है। हर बार वह साफ़-साफ कह चुकी है कि यह कुत्ता उनका पालतू नहीं, सड़क का है फिरवा। वे चाहें तो इसे खूब मारें-पीटें, गोली से उड़ा दें या कुएं में धकेल दें...।
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