कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
इस बीच मेरा तबादला रांची हो गया। जहां बाद में घर बनाकर मैं स्थायी रूप से बस गया। कुछ अर्से तक पत्रों के माध्यम से संपर्क बना रहा। पर बाद में वह भी धुंधला गया। वर्ष में एक बार भेजे जाने वाले 'ग्रीटिंग कार्डस' का आना-जाना भी अतीत बन गया। धीरा के बारे में कभी कुछ पूछा तो उसने कोई स्पष्ट-सा उत्तर नहीं दिया।
सुना था, रंजना दिल्ली छोड़कर झांसी चली गई थी, अपने मायके। वहीं किसी निजी संस्थान में कुछ काम मिल गया था। और फिर वहां से पुणे-धीरा के पास।
धीरा और उसका भविष्य मेरे लिए अर्से तक रहस्य बना रहा। एक बार किसी सेमीनार के सिलसिले में पुणे जाने का अवसर मिला तो खोजता-खोजता रंजना के घर तक जा पहुंचा, यानी कहूं कि बड़ी मुश्किल से खोज पाने में सफल रहा। झांसी में रहने वाले अपने एक पुराने सहयोगी की सहायता ली तो मालूम पड़ा, पता अधूरा है।
खैर, अंत में रंजना के घर तक पहुंचा. तो बाहर से ही चमक-दमक देखकर चकित रह गया। विशाल कोठी के द्वार पर दरबान खड़ा था।
अकस्मात मुझे सामने देखकर रंजना चौंकी।
"यहां कैसे?" उसने सुखद विस्मय से पूछा। फिर कुछ रुककर बोली, “यह घर धीरा का है। उसने जिद करके बुला लिया। मैं आना तो नहीं चाहती थी, पर उसका आग्रह टाल न सकी। झांसी वाली संपत्ति का मुकद्दमा वर्षों से चल रहा था न ! उसका निर्णय हमारे पक्ष में रहा...।"
अपनी पुरानी आदत के अनुसार रंजना बतियाती रही। न जाने कहां-कहां की कितनी बातें !
"धीरा का सब ठीक चल रहा है अब?" मैंने पूछा तो रंजना कुछ गंभीर हो आई, "न पूछो दीपेन, पता नहीं किन-किन हादसों से नहीं गुजरना पड़ा। उधर वरुण की बदनामी हो रही थी। जितने मुंह उतनी बातें। इसमें उसके अपने ही ख़ास सगे-संबंधी भी पीछे नहीं रहे। वरुण यह सब सह नहीं पाया। नींद की गोलियां खाकर उसने दो बार आत्महत्या की कोशिश की...।
"धीरा को समझा-समझाकर मैं हार गई। इधर या उधर, वह कोई निर्णय लेने में स्वयं को असमर्थ पा रही थी। दूसरे विकल्पों के लिए भी उसमें कहीं कोई उत्साह नहीं झलक रहा था। इसी में वर्ष बीत गया। अंत में नहीं रहा गया तो एक दिन स्पष्ट शब्दों में दो टूक कह देना ही उचित समझा।
“बेटे, अभी तुम बच्ची हो। तुमने दुनिया देखी नहीं। औरत के साथ भिन्न-भिन्न नामों से भिन्न-भिन्न रूपों में प्रायः एक-सा ही व्यवहार होता है, चाहे वह अविवाहिता हो, विवाहिता हो या कुछ और। अपनी चंदा को देखो। न जाने क्या सोचकर पहले शादी नहीं की, बाद में वक्त निकल गया, उसकी व्यक्तिगत जिंदगी के किस्से-कहानियां तुमसे छिपे नहीं... "
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
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- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर