कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
"मम्मा, आते समय वरुण कांपती आवाज़ में धीरे से कान में कह गया था, यदि तुमने यह बात किसी से कही तो देख लेना, मैं आत्महत्या कर लूंगा। हां, तुम चाहो तो बाद में तलाक ले सकती हो। पर, तलाक भी किस मुद्दे पर लोगी, क्या मेरी लाश पर..."
देर तक कमरे में निस्तब्धता रही। उस असह्य मौन को तोड़ती रंजना बोली, “दीपेन, यह बात मैं किसी और से कह नहीं सकती। तुम्हीं बतलाओ, अब क्या करूं?" प्रश्न-चिह्न की तरह वह मेरी ओर देखने लगी।
"तो फिर धीरा क्या कभी ससुराल नहीं गई?" मैंने कुछ सोचते हुए पूछा।
"कैसे जाती?" रंजना बोली, "अर्से बाद उसका ममिया ससुर जगत प्रकाश आया था, बुलाने ! पर धीरा ने अंदर से अपने कमरे के किवाड़ बंद कर लिए। जब अच्छी तरह पता चला कि वह चला गया है, तभी द्वार खोले।"
मैं अजीब-सी स्थिति में था। इस सबकी तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था।
यों ही बैठे-बैठे जब बहुत वक्त बीत गया तो मैंने मौन तोड़ते हुए कहा, "देखो रंजना, इसका कोई स्पष्ट-सा समाधान सूझ नहीं रहा है। एक हल यह हो सकता है कि धीरा ससुराल वालों को कचहरी तक ले जाए और तलाक ले ले। लड़का आत्महत्या करना चाहे तो करे। दूसरा यह कि पांच पंचों को बिठला ले। पर इसके लिए वे तैयार नहीं होंगे। समाज में बदनामी होगी। तीसरा यह कि धीरा सहज भाव से ससुराल चली जाए और अपनी सुविधा से जीने का कोई मार्ग स्वयं निकाल ले। पति विरोध करने की स्थिति में नहीं होगा। बल्कि परोक्ष, अपरोक्ष रूप से उस सबको स्वीकार करने में उसे असुविधा नहीं होगी...।"
रंजना उदास-सी चली गई।
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