कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
अदालत में मुकदमा चला तो शिव'दा ने केवल इतना ही कहा था अपनी सफ़ाई में मैंने जो कुछ कहा, सच कहा था। सच बोलने की सज़ा अगर मृत्युदंड है तो मुझे वह भी मंजूर है।
शिव'दा का सारा शरीर लहूलुहान था, कपड़े तार-तार !
फिर पता नहीं किस काल-कोठरी में ढूंस दिया था उन्हें, तड़प-तड़पकर मरने के लिए। जहां से एक दिन बाहर निकला था–सिर्फ उनका अस्थि-पिंजर !
सूखा हुआ शरीर, हड्डियों का ढांचा मात्र। बढ़ी हुई दाढ़ी। कैदियों के फटे कपड़े। खुली हुई निष्प्राण आंखों में विचित्र-सी वेदना।
शव आलमगंज लाया गया तो एक भी आदमी बाहर नहीं निकला-पुलिस के आतंक से। पादरी समेत केवल चार-पांच लोग थे।
शव को ताबूत में रखते समय मैंने देखा-उनके सारे शरीर पर जगह-जगह कीलों के जैसे नीले निशान थे। लगता था, अब भी जख्मों से लहू टपक रहा है... सूखे होंठ कुछ कहने के लिए फड़फड़ा रहे हैं...।
मैं निर्निमेष उनकी ओर ताकता रहा...
उन्हें दफनाए आज कितने दिन हो गए ! पर लोग कहते हैं-रात के अंधियारे में शहीद चौक' पर शिवदा आज भी बैठे हुए दिखलाई देते हैं। आज भी अकाल-पीड़ितों के लिए भीख मांगते हुए भटकते हैं। रात के अंधकार में आज भी अपने खंडहर के द्वार खटखटाते हैं तो सीमा भाभी दहाड़ मारकर रोती हैं। रूही चीख़ पड़ती है। पर उस वीरान खंडहर में सारी आवाजें विलीन हो जाती हैं और फिर छा जाता है-मौत का-सा सन्नाटा !
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- इस बार बर्फ गिरा तो
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