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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


कुछ आत्मीय लोगों ने कहा, “शिव दास, तुम्हारे पिता स्वाधीनतासंग्राम में शहीद हुए थे। यह फार्म भर दो। तुम्हारे बच्चों को कुछ सहायता मिल जाएगी।”

शिवदा ने फार्म के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और ‘हा-हा-हा' पागलों की तरह अट्टहास करते हुए हंसने लगे।

इस आदिवासी क्षेत्र में भूख से नब्बे लोग मरे... सरकारी अनाज चोर बाज़ारी में बिकता रहा, शहरों में।

दवाएं देखने तक को न मिलीं...दुर्भिक्ष-पीड़ितों ने जुलूस निकाले तो उन पर गोलियां बरसाई गईं। उन्हें देशद्रोही क़रार दिया गया। नेता लोग आए और फोटो खिंचवाकर चले गए। थाने के आगे धरना देने वालों को चौराहों पर घसीटा गया। आदिवासी औरतों के साथ बलात्कार किया गया।

वे रात-रात भर जागकर कागज के टुकड़ों पर पता नहीं क्या-क्या लिखते और उन्हें किसी डिब्बे में जतन से सहेजकर गड्ढे में डाल देते, ऊपर से मिट्टी आदि ढक देते।

कहते, “ये कालपात्र हैं। कभी कोई ज़माना आएगा जब लोग देखेंगे कि जनतंत्र और समाजवाद के नाम पर इस देश में क्या-क्या नहीं हुआ !"

शिवदा सचमुच पागल-से हो गए थे। पत्थरों पर कोयले से लिखते, बड़ी-बड़ी दीवारें रंग देते। चौराहों पर खड़े होकर भाषण देने लगते।

उनकी इन हरकतों से परेशान होकर पुलिस उन्हें स्वयं पीटती, गुंडों से पिटवाती। न जाने कितने इल्ज़ाम लगाकर, उन्हें कितने दिनों तक थाने में यों ही बंद रखती-भूखा-प्यासा।

इस बार, आपातकाल के दौर में लगान की वसूली के प्रश्न पर जो आंदोलन छिड़ा, उससे कानूनी व्यवस्था ही ख़तरे में पड़ गई थी। आंदोलनकारियों की धर-पकड़ शुरू हुई तो सबसे पहले पुलिस की निगाह शिवदा पर ही पड़ी। बेचारों को मेमने की तरह घर से घसीटकर ले गई !

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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