कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
अम्मा को मालूम है-एक अर्से के अंतराल के बाद हमेशा ऐसा ही होता रहता है। बेटा बार-बार हाल-चाल पूछता है। अपनी ममता जतलाता है। पत्नी को झिड़कता है। बच्चों को डांटता है कि वे अम्मा का ख़याल नहीं रखते।
अम्मा तब घबरा जाती है। अपने दोनों हाथ जोड़ती है, कांपती हुई कहती है, "रेवा बेटे, ऐसा न कह। बच्चे कितना ध्यान रखते हैं मेरा, तुझे क्या पता? तू तो बाहर रहता है सारा दिन।”
वह जानता है, मां उसका मन रखने के लिए ऐसा कह रही है।
मां चुपचाप चाय पीती चली जाती है-सुङ-सुड़ करती। जैसे न जाने कित्ते अर्से के बाद पी रही है !
एक तरह की आकुलता है, जल्दी-जल्दी सब सुड़क जाने की।
मां को चाय बहुत पसंद है। खाना न मिले, कोई बात नहीं, पर गर्म पानी कभी-कभी मिलता रहे, तो बूढ़ी सांस सुगम गति से चलती रहती है।
एक-एक बूंद चाय के लिए कभी-कभी वह तरस जाती है। किससे कहे, कोई सुनता नहीं, सब सुनी की अनसुनी कर देते हैं। बार-बार जोर से बोलने की शक्ति नहीं। बोलने का प्रयास भी करती है। तो सांस उखड़ आती है।
बहू को बाल-बच्चों, गाय-बछिया और खेतों से ही समय कहां?
पहले जब शरीर में कुछ शक्ति थी, मरती-जीती काम पर जुटी रहती थी। परंतु जब से गठिया-वात का प्रकोप हुआ, अब हाथ-पांव भी चल नहीं पाते। चाहने के बावजूद कुछ कर पाने में समर्थ नहीं हो पाती।
तब एक तरह की विवशता का भाव घिर आता है-एक तरह की गहरी निराशा का। तब देह में रही-सही ताक़त भी जाती रहती है। वह अपने को और भी अधिक शक्तिहीन अनुभव करने लगती है। और भी असहाय।
इजा, कैसा अनुभव कर रही हो?” वह अम्मा से पूछता है।
"ठीक...हूं...अब चला-चली की बेला है बेटा... क्या मानना...क्या खाना रह गया है...?" वह कराहती हुई कहती है तो उसका दम भी बैठने लगता है।
"ऐसा न कह अम्मा ! तुझे अभी बहुत जीना है...।”
वह इस तरह से, विवश भाव से कहता है, जैसे कहना चाह रहा हो, “हमें अभी बहुत जीना है !”
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