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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


चिड़ियाघर के सारे जीव-जंतुओं को हटाकर, उनके स्थान पर प्रत्येक पिंजरे में कुछ आदमियों को रख छोड़ा है-उस नस्ल के आदमियों को, जो इस देश में दिन-पर-दिन दुर्लभ होते चले जा रहे हैं, जिनके भीतर इस यांत्रिक युग में भी मनुष्यत्व के अंकुर हैं।

चिड़ियाघर से सटा हुआ बंदियों के लिए बना नया बाड़ा है-एक बहुत ऊंची लोहे की इमारत, जिसमें हजारों लोग तरह-तरह की यातनाएं सह रहे हैं...

“तुम्हारा क्या अपराध है?” उनसे पूछता हूं तो सब गूंगे पशु की तरह मेरा मुंह ताकने लगते हैं।

जेलर के पास एक रजिस्टर है, जिसमें हर कैदी के इतिहास के विषय में कुछ लिखा है।

कैदी संख्या चार के सामने लिखा है-इस अपराधी को घूस न लेने तथा राष्ट्र के प्रति गद्दारी न करने के अपराध में सात साल के कठोर कारावास का दंड मिला है...

कैदी संख्या सत्रह-सत्य बोलने का उपदेश देकर इसने देश की होनहार युवा पीढ़ी को गुमराह करने की चेष्टा की थी...

कैदी संख्या इक्कीस-जातीयता एवं क्षेत्रीयता पर आस्था रखने से इस कैदी ने सरासर इनकार कर दिया था। अपना अमूल्य जीवन इसने देश-सेवा में लगाकर व्यर्थ किया। देशभक्ति एक मानसिक विकार है-भयंकर संक्रामक रोग। सरकार के पास इस बात के प्रमाण सुरक्षित हैं कि इसने जीवन-भर देश-प्रेम के इन्हीं दूषित विचारों का प्रचार किया था...

कैदी संख्या तीस-इसने सच बोलकर, अपने समाज की प्रतिष्ठा को जान-बूझकर आघात पहुंचाने का प्रयत्न किया... बंदी संख्या इक्कीस की भांति यह भी हर समय राष्ट्र के ऐक्य की बड़ी-बड़ी बातें किया करता था और देश की प्रगति के लिए व्यर्थ में चिंतित रहता था। देश का विभाजन अस्वीकार करके इसने क़ानून का अपमान किया था... जब-जब देश पर संकट आया-इसने अपनी संपत्ति ही देश के लिए नहीं लुटाई, बल्कि अपना रक्त तक देने की भूल की थी।

इस मानसिक रोगी ने कई विचित्र धारणाएं पाल रखी थीं।

कहता था-गरीबों को जीने का हक मिलना चाहिए। जबकि गरीबों को जिंदा रहने का हक क्यों मिलना चाहिए, उसके पास इस तर्क का कोई ठोस उत्तर नहीं था।

भावुक होना एक कमजोरी है। यह व्यक्ति बेहद भावुक था। समय के साथ न चल सकने के अपराध की इसे जितनी सज़ाएं दी जाएं, कम हैं...

कैदी संख्या चालीस, पैंसठ और एक सौ दो को आज प्रातः मृत्युदंड दिया गया। उन्होंने गांधी, अरविंद, रवींद्रनाथ ठाकुर और परमहंस को राष्ट्र का शत्रु घोषित करने से इंकार किया था और इस देश का अब और अधिक विभाजन न हो, इसके लिए आमरण उपवास भी।

सतलज की रेत अब तक गर्म है...उस काल-कोठरी के पास से हर रात रोने की आवाज़ आती है-जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ाया गया था... जलियांवाला बाग में आज भी गोलियां चलती दिखलाई देती हैं।

वंदेमातरम् की आवाज़ से गूंजता अंडमान अब निर्वासितों से भर गया है-कहीं तिल रखने को भी जगह नहीं।

कोहिमा की सरहद पर, लोग कहते हैं, उन्होंने अभी कुछ दिन पहले नेताजी को जंगलों में भटकते देखा है। पुकार-पुकारकर यह कहते सुना है-तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा...

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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