कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
|
8 पाठकों को प्रिय 61 पाठक हैं |
हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
भावना सुनती रही। एक-दो दिन तक चुप देखती रही।
तीसरे दिन अपने घर लौटते समय जब रहा न गया तो बूढ़ी सास को एकांत में ले जाकर बोली, “ये कुछ रुपए हैं मां जी ! क्रिया-कर्म में लगा देना। बच्चों को दुख न देना। विनोद कह रहे थे-बच्चों का स्कूल जाना छुड़वा दिया है। उन्हें फिर स्कूल भिजवा देना...। जो कुछ बन सकेगा, मैं करूंगी....”
“बहू, यह तू क्या कह रही है? तेरे साथ उसने जो कुछ किया, उसके बाद तो..."
“जो कुछ उन्होंने किया, उनके साथ ही चला गया मां जी ! पर इन अबोध बच्चों का क्या दोष?" साथ लाई दो-तीन साड़ियां भावना छोड़ गई। बच्चों के लिए कुछ अतिरिक्त रुपए भी। रिक्शे पर बैठती-बैठती बोली, “मां जी, कभी उधर चली आना। मन बहल जाएगा। हमें भी खुशी होगी। मां तो बचपन में ही हमें छोड़कर चल बसी थीं। जब से होश संभाला, आपको ही मां की ठौर पर पाया।"
"बहू, अब तू इत्ता दुख न दे ! हमारे किए की इत्ती बड़ी सज़ा नहीं !" बूढी सास का अब तक थमा बांध टूट बहा, “उसके ऐसे धन्न भाग कहां थे ! ...अपने किए की सारी सज़ा भुगत गया पगला...!”
रिक्शे पर टूटी टहनी की तरह निढाल पड़ी भावना बैठी रही। मांग का सिंदूर न जाने कब, कैसे पुंछ गया था। उसका अब कोई निशान न था, पर हां, नौ साल लंबी थकान उसके मुरझाए मुखड़े पर आज अवश्य उभर आई थी।
|
- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर