कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
"मेरे प्रारब्ध में इत्ता ही सुख था तो अधिक कहां से आता !" दीदी उड़ी-उड़ी-सी कभी दोहरा दिया करती थीं।
बड़े चाचा जी, मामा जी, बुआ जी-सबने कहा दूसरी शादी करने के लिए, पर यहां भी भावना पहेली बनी चुप बैठी रही।
कितना सहा दीदी ने ! कितना ! कितना-श्रुति बिछौने में मुंह छिपाकर सिसकने लगी।
"कौन, भावना...बहू ! कब आई?” ससुराल के रिश्ते की किन्हीं वृद्धा ने आंगन में पांव धरते ही पूछा।
"अभी मां जी... !”
“तार दिया था-बिन्नू ने?”
"जी हां।"
अटैची थामे भावना क्षणभर वैसी ही खड़ी रही-दरवाजे के पल्ले के सहारे...। फिर चुपचाप भीतर चली गई।
घर में कुहराम मचा था, परंतु भावना गुंगी, बहरी-सी चुप बैठी रही। न रोई, न चिल्लाई। मूक दर्शक की तरह यंत्रवत सब देखती रही-
वह औरत रो रही थी जिसे अब रतन की पत्नी कहते हैं, रतन जिसे ब्याहकर लाया था, जिसकी सूनी मांग में अब सूखे घाव की दरार-सी पड़ गई है।
भावना देखती रही !
दुबला-पतला सूखा शरीर !
पीली देह !
इसी के प्यार में पागल होकर रतन ने उसे इतनी यंत्रणाएं दी थीं ! क्या-क्या नहीं कहा था ! क्या-क्या नहीं किया था ! जब सब असह्य हो गया तो एक दिन घर से भी निकाल बाहर किया था।
पापा नहीं रहे, तो फिर किसी का भी भय न रहा... !
दो बच्चे बाहर खड़े थे। एक नन्हा-सा, किसी की गोदी में ख़रगोश की तरह दुबका बैठा था। अपनी मां को रोते देखता तो स्वयं भी मुंह फाड़कर रोने लगता...।
यह वही घर था, जहां भावना एक दिन दुल्हन बनकर आई थी। पापा कहते थे, "अपनी भावना को हमने चंदा और करुणा से भी अच्छा घर दिया है। खूब सुख से रहेगी... राज रचेगी..."
कैसा राज रचाया ! कितने सुख से बिताए चार साल ! —भावना का हृदय यह सोचने मात्र से सिहर उठा।
ढेर सारे गंदे चीथड़े, जिन्हें यहां कपड़ों की संज्ञा दी जा रही है, एक ओर पड़े हैं। पलंग टूटा हुआ है। मेज़ के एक पांव के नीचे ईंट का आधा टुकड़ा पड़ा है।
"रतन की बीमारी ने हमें कहीं का न रख छोड़ा। बरतन-भांडे तक बिक गए।” वृद्धा सासू मां कपाल पर हाथ रखे, अपने फूटे करम को रो रही थीं। किसी से कह रही थीं, “अंत में भाई तक मुंह बिरा गए मौसी ! मरते समय मेरे रत्तू के घर कफन तक के लिए पैसे नहीं थे....।”
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
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- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर