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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


''तू अपने एग्जाम की तैयारी क्यों नहीं करती ! फाइनल ईयर है। अरी, खड़ी-खड़ी मुंह क्या देख रही है?" इस बार तनिक तुनककर भावना ने कहा तो श्रुति सहम-सी गई। डरती-डरती बोली, बिना खाना खाए ही चली जाओगी दीदी !”

“हां, कह तो दिया !"

''कुछ बांध दूँ...?"

“नहीं !!!”

यों ही हड़बड़ी में भावना चली गई तो श्रुति को सब अजीब-अजीब-सा लगा–एक विचित्र-सी पहेली।

दीदी ने यह भी नहीं बतलाया कि तार किसका था? क्या लिखा था...?

सुक्को मौसी बड़े कमरे में खर्राटे भरती हुई सो गईं, पर श्रुति भावना के कमरे में बैठी देर तक पढ़ती रही।

तभी पन्ने पलटते-पलटते पता नहीं किस तरह पेन ज़मीन पर गिर पड़ा। उसे उठाने के लिए श्रुति झुकी ही थी कि नीचे वही गुलाबी रंग का कागज़ मुड़ा-तुड़ा पड़ा था।

बड़ी सावधानी से फटे कागज़ की सलवटें ठीक करके पढ़ने का प्रयास किया। लिखा था-'रतन एक्सपायर्ड ! नीचे दस्तख़त की जगह किन्हीं 'विनोद' नामक सज्जन का नाम अंकित था !

"तो जीजा जी चल बसे !"

श्रुति बुदबुदाई।

फिर लाख कोशिश करने के बाद भी पढ़ने में मन न लगा। दीदी की आंतरिक व्यथा साकार होकर आंखों के आगे घूमती रही।

सारी रात पड़ी-पड़ी सोचती रही-जीवन-भर दीदी को क्या मिला? जीजा जी द्वारा अपमानित होकर, घर से निकाली जाने के पश्चात उन्होंने कितना कुछ नहीं सहा !

उसे याद आया-वह बालकनी में बैठी, जाड़ों की पीली, पथराई धूप में गीले बाल सुखा रही थी, तभी किसी ने बतलाया, “सुनो बिटिया, रतन ने दूसरी शादी कर ली है।”

दीदी ने सुने का अनसुना कर दिया, जैसे पहले से सब जानती हों। उन्हें तनिक भी अचरज न हुआ...।

दीदी चाहतीं तो क्या-क्या नहीं कर सकती थीं ! क़ानून साथ था। बड़े मौसा जी जाने-माने वकील। किंतु न जाने क्या सोचकर वे होंठ सिए चुप बैठी रहीं।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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