कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
इतने प्रयत्नों के बावजूद तुम्हारी चप्पलें, साड़ी का निचला हिस्सा लहरों के हिचकोलों से भीग आया था।
सामने हल्की-सी चढ़ाई थी। छप्पर. के बाहर धूप में, बांस के एक किशोर वृक्ष के तने से दो बकरियां बंधी थीं। उन्हीं के पास तीन नन्हे-नन्हे मेमने आपस में सिर भिड़ाते हुए खेल रहे थे।
ताजा हरी पत्तियां जमीन पर बिखरी थीं, जिन्हें बकरियां बड़े चाव से पटर-पटर चबा रही थीं। कुछ ही कदमों की दूरी पर एक झबरैला, काला भोटिया कुत्ता खूटे से बंधा था। हमें देखते ही भुंकता हुआ झपटने के लिए कूदा।
कुत्ते का रखवाला लाठी नचाकर उसे चुप कराने का प्रयास कर रहा था, परंतु उसका आक्रोश कम होने की अपेक्षा बढ़ता चला जा रहा था। अपने अगले पंजों से मिट्टी खुरचकर, वह बार-बार हवा में उछाल रहा था।
पर तुम्हारा ध्यान कहीं और था। बकरी के मासूम बच्चों की ओर तुम मुग्ध भाव से देख रही थीं। बार-बार अकारण उनका मिमियाना, नन्ही-नन्ही पूंछ इधर-उधर हिलाना और छोटे-छोटे सफेद दांतों से जल्दी-जल्दी पत्तियां चबाना, तुम्हें बहुत भला लग रहा था।
“कौन-सा बच्चा रख लें–?" हमारी सुविधा के लिए होटल वाले ने अपने जिस आदमी को हमारे साथ भेजा, उसने मेरी ओर ताकते हुए पूछा।
"कोई भी- !” लापरवाही से मैंने कहा।
बकरी का एक गोल-मटोल सफेद मेमना उसने अपनी ओर खींचा। इस पर सुबह से हमारे साथ-साथ छाया की तरह चल रहे पुजारी-पुत्र ने चीख़ते हुए कहा, "नहीं, नहीं! देखते नहीं ! यह घोर अशुभ है। देवी को ऐसा बकरा नहीं चढ़ता।”
"क्यों?" सहज आश्चर्य से मैंने पूछा।
आस्तीन से अपनी नाक पोंछता हुआ, शिशु-पुजारी बोला, “इसके तीन खुर काले, एक लाल है। ऐसी बकरी चढ़ाने से पाप होता है। उलटा पाप।”
तब दूसरी बकरी की तलाश हुई। ऊपर से नीचे तक पड़ताल के पश्चात एक बच्चे को झटके से उठाया और घसीटते हुए नाव की तरफ ले आए।
बच्चा छटपटाया। मिमियाया।
उसे नाव पर जैसे ही बिठलाया, वह बिदकने लगा।
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