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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


पूजा की सामग्री पोटली में बंधी थी। ताजे फूल थे। अक्षत थे। रोली। धूप। दीप। चंदन-सब कल ही समेटकर, सहेजकर, श्रद्धा से धर लिए थे।

आज तुमने जल तक ग्रहण नहीं किया था। पूजा के पश्चात ही प्रसाद लेंगे-मैंने भी व्रत लिया था...।

अब नाव दूसरे तट के निकट पहुंच रही थी। झील पर 'भांछी पुंच्छ' का प्रतिबिंब अब नहीं दीख रहा था। मेरा मन यहां नहीं, कहीं और था। इस आधे घंटे में ही पता नहीं कितना कुछ नहीं सोच लिया था मैंने !

हमारी आशाओं, आकांक्षाओं, अपेक्षाओं की यह अंतिम यात्रा थी। मृत्यु से आंख-मिचौली करते हुए हम यहां तक आए थे। अब इसके बाद-एक बहुत बड़ा प्रश्न-चिह्न था, तो अदृश्य के हाथ कुछ समाधान भी। इसी उम्मीद पर तो हम एक-एक कदम आगे बढ़ रहे थे।

साये की तरह जिंदगी, साये की तरह साथ-साथ मौत भी चल रही थी। चलते समय तुम कितनी उखड़ी-उखड़ी-सी थीं।

“सुनो, मेरे गहने दीदी को दे देना। यह कड़ा हमारी कांछी को। कपड़े गरीबों में बांट देना... हां, ये बालियां सोमू को...” तुम्हारे मन का वीतराग आंखों से रह-रहकर झांक रहा था...।

तभी झटके से नाव रुकी।

हम तट पर आ गए थे।

किनारे पर घास के दो-तीन छप्पर थे। वह लाल छत वाला मकान शायद घने वृक्षों के उस पार था कहीं। दीख नहीं रहा था।

मांझी किनारे पर सबसे पहले कूदा। नाव पर बंधी रस्सी हौले से खींची तो नाव का कुछ हिस्सा गीली मिट्टी से आ लगा।

एक-एक कर हम नीचे उतरे।

तुम्हारा हाथ पकड़कर मैं सहारा दे रहा था, तो मैंने देखा तुम्हारी सूनी-सूनी आंखों में, कई प्रश्न एक साथ झांकते दिखलाई दे रहे थे।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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