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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


होटल में पहुंचे तो तुममें बहुत सारा परिवर्तन झलकने लगा था। लगा था कि तुम जैसे वह नहीं, जो अभी कुछ क्षण पहले थीं। यहां की ठंडी हवा, हिमाच्छादित पर्वत श्रृंग, सामने मोती जैसी विशाल स्वच्छ फेवा झील ! अद्भुत, शांत वातावरण ! निर्मल वायु ! एक अनोखा-सा स्वप्न-लोक !

दूसरे दिन आस-पास के मंदिरों में गए-दर्शनों के लिए। हर मंदिर के फर्श पर सूखे रक्त के काले-काले छींटे बिखरे हुए। शायद ही कोई मंदिर हो, जहां 'पशुबलि' न दी जाती हो।

तीसरा दिन निर्धारित था-पूजा के लिए।

हम नाव पर अभी बैठ भी न पाए थे कि किनारे की, हरी घास पर, बेंत की कुर्सी पर आराम से बैठे होटल के मालिक ने कहा, "शील के उस पार, वह लाल छत वाला मकान मेरा है। वहां मेरी कई बकरियां हैं, आप जो चाहें पूजा के लिए ले आएं। पुजारी से मैंने बात कर ली है। कल आप के जाने के बाद वह आया था...आप निश्चिंत रहें। आपको परदेशी समझकर ठगेगा नहीं...।”

काठमांडू में मेरे एक परिचित भानु श्रेष्ठ ने परिचय-पत्र दिया था। उसके ये निकट के संबंधी थे, इसलिए इतनी रुचि ले रहे। थे। भानु ने जैसा बतलाया था, ठीक वैसे ही निकले। बड़े भले। भोले ! उदार ! सुना था, सक्रिय राजनीति में भी वर्षों तक रहे, पर अब सबसे मुक्त होकर, यहां एकांत-लाभ ले रहे हैं। सामने का आधे से अधिक पहाड़ इनका है...।

"बलि देने से अवश्य मनोकामना पूरी होती है। भगवान आपकी इच्छा पूरी करे...।” चलते-चलते आसमान की ओर हाथ जोड़ते हुए, वृद्ध ने जैसे आशीर्वाद देते हुए कहा।

हवा में लहलहाती सफेद दाढ़ी !

वैसे ही श्वेत केश !

वे ऋषि जैसे लग रहे थे ! श्रद्धाभाव से मैं उनकी ओर देखता रहा।

लहरों पर धीरे-धीरे तिरती नाव किनारे से दूर पहुंच गई थी। तुम्हारे चेहरे पर परम संतोष का भाव था। पश्चिम की दिशा में धवल हिमखंड की तरह दूर चमकता मंदिर दिख रहा था। मेरे दोनों हाथ अनायास उस ओर जुड़ गए। आंखें मूंदकर, अपने घुटनों में मैंने सिर टिका लिया था।

कौन जाने, परमात्मा हमारी भी सुन लें ! पूर्वजों का कोई पुण्य आज काम आ जाए। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया तो क्या हुआ? कौन-सा चमत्कार कब हो जाए? कौन जानता है !

अंतिम आशा के साथ हम बढ़ रहे थे। नाव धीरे-धीरे उस दिशा में आगे बढ़ रही थी, जहां लाल छत वाला वह मकान था।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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