कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
यात्रियों को रोमांच हो आता है। तुम नन्ही बच्ची की तरह किलककर हंस पड़ती हो।
अभी आगे घोषणा हो रही है। तुम्हें चुप कराने के लिए अपने होंठों पर उंगली रखकर इशारा करता हूं।
“सात जून से आठ जुलाई तक यहां आधी रात को, जगमगाता सूरज दीखता है... !"
लोदिंगन में ट्रेन का सफर समाप्त होता है तो उतरते समय कहता हूं, “बहिरा, अपना सामान गिन लो, सही तो है न !”
तुम कहती कुछ नहीं, शर्मा-सी जाती हो।
ट्रेन से बाहर उतरकर चाय पीते हैं।
आगे समुद्र है।
"इस सागर में आगे जाना है क्या?" तुम पूछती हो।
“हां !", मैं मात्र सिर हिलाता हूं।
सामने बस खड़ी है। सभी यात्री उसमें सवार हो जाते हैं।
"समुद्र को पार करने के लिए बस... !”
"थोड़ा इंतजार करो। अभी सब समझ में आ जाएगा।”
बस चलने लगती है और थोड़ी-सी दूरी के बाद सामने खड़े जहाज़ के पेट में समा जाती है। यात्री बस से उतरकर जहाज़ के डेक पर चहलकदमी करने लगते हैं।
दूसरा किनारा आने पर फिर बस जहाज़ से बाहर निकलकर सड़क पर आ जाती है-हास्ता के मार्ग पर।
"जीवन में कभी ऐसे बर्फीले क्षेत्र में आने की मैंने कल्पना नहीं की थी। नार्वे आना मेरे लिए एक विचित्र अनुभव है।" जब तुम यह कह रही थीं, मैं तुम्हारे चेहरे की ओर देख रहा था। तुम्हारे होंठ ठंड से नीले पड़ रहे थे।
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर