कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
|
8 पाठकों को प्रिय 61 पाठक हैं |
हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
तभी नोर्मा हंसती हुई तुम्हारा हाथ पकड़कर ले गई। देखा, कुछ ही दूरी पर एल्मा भी खड़ी थी। न चाहते हुए भी तुम्हें जाना पड़ रहा था।
नोर्मा तुम्हारी 'रूग पार्टनर' थी। अगले वर्ष वह किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में इजिप्ट जाने का कार्यक्रम बना रही थी। इसलिए वह अधिक-से-अधिक सूचनाओं के लिए तुम्हारे सान्निध्य का लाभ उठाना चाहती थी।
पड़े-पड़े मैं भी क्या करता ! मैंने बैग में से कुछ पत्र निकाले और बांचने लगा। चूंकि मुझे इंग्लैंड होते हुए ही भारत लौटना था, इसलिए लंदन में ठहरने आदि की यथासमय व्यवस्था करनी थी।
पत्रों में देश के, प्रदेश के महत्त्वपूर्ण समाचारों की कुछ पंक्तियां थीं। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि भारत या तीसरी दुनिया के समाचारों को यहां के नार्वेजियन पत्रों में हाशिए पर भी स्थान नहीं मिल पाता।
कागज़ समेटकर मैं बाहर निकलता हूं। कहां जाऊं? क्या करूं? कुछ सूझता नहीं।
स्वेटर कंधे पर डाले मैं इधर-उधर भटकता घूमता दूर निकल जाता हूं।
पहाड़ की इस हाथी की पीठ-जैसी सपाट चोटी से दूर नीचे घाटी की ओर झांकता हूं तो दहशत-सी होती है।
नीचे सांप की तरह नदी लेटी है। बांध जैसा भी है कुछ। शायद बिजलीघर है।
मैं देवदार के घने वृक्षों की छांह में लेट जाता हूं पीठ के बल और निरभ्र आकाश की ओर देखता हुआ, न जाने क्या-क्या खोजने-टटोलने लगता हूं।
उस दिन आकेर बेग्गे से लौटते समय तुम चर्चिल की प्रतिमा के निकट बाजार में अकेली घूमती मिल गई थी।
"हवाई जहाज के टिकट के संबंध में कुछ सूचना लेने आई थीं..।” तुमने कहा था।
ट्रेन से साथ ही लौटे थे बिलिंडून।
“गेस्ट-हाउस के सामने ढलान पर मुलायम हरी दूब के कालीनसे बिछे थे। कुछ बैंचें इधर-उधर। चुपचाप हम बैठ गए।”
हां, अपने बारे में, तुम विस्तार से कुछ बतला रही थी, "हम। लोग क़ाहिरा के पास लक्सर में रहते हैं। वहां हमारा पुश्तैनी मकान है। कभी इजिप्ट आने का कार्यक्रम बने तो अवश्य हमारे घर तक आने का कष्ट कीजिएगा। दो-चार दिनों में ही मैं पूरा क़ाहिरा दिखला देंगी।” कुछ रुककर तुमने कहा, “पिरामिड लक्सर के बहुत निकट हैं। दर्शनीय हैं। उन्हें देखकर तुम्हें अच्छा लगेगा....।”
लगा कि कहती-कहती तुम बहुत भावुक हो आई हो।
|
- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर